कौन है किंग क्लाउडियस और कौन हैं संत वैलेंटाइन…

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कौन है किंग क्लाउडियस और कौन हैं संत वैलेंटाइन…

आज लव मंथ का सबसे प्यारा दिन है। दरअसल इस तारीख को प्रेम दिवस के रूप में मनाया जाता है और वैलेंटाइन डे कहा जाता है‌‌। यह वैलेंटाइन एक संत थे, जिन्होंने किंग क्लाउडियस के प्रेम विरोधी फरमानों का खुलकर विरोध किया था।270 ईसवी में रोम के किंग क्लाउडियस जहां एक तरफ प्रेम के विरोधी थे। क्लाउडियस का मानना था कि प्रेम को बढ़ावा देने से रोम के सैनिकों का ध्यान भंग होने लगेगा। जिससे रोम की सेना कमजोर हो जाएगी। यही कारण था कि किंग क्लाउडियस ने सैनिकों के शादी करने और लव मैरिज पर भी पाबंदी लगा दी थी। तो वहीं दूसरी तरफ संत वेलेंटाइन प्रेम का खुलकर प्रचार किया करते थे। इसी कड़ी में संत वेलेंटाइन ने ना सिर्फ क्लाउडियस की विचारधारा को गलत ठहराया बल्कि राजा के खिलाफ जाकर कई शादियां भी करवाई। जिसके चलते किंग क्लाउडियस ने संत वेलेंटाइन को फांसी की सजा सुना दी और 14 फरवरी के दिन ही संत वेलेंटाइन को फांसी दे दी गई थी। जिसके बाद इस दिन को रोम सहित पूरी दुनिया में प्यार का दिन कहा जाने लगा और विश्वभर में वेलेंटाइन डे मनाने का प्रचलन शुरु हो गया।
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इस वैलेंटाइन डे यानि प्रेम दिवस को कपल्स अपने प्यार के इजहार का दिन मानते हैं। पर वे यह नहीं जानते कि अब कोई किंग क्लाउडियस नहीं है, जो उन्हें प्रेम की अभिव्यक्ति करने से वंचित कर रहा हो। भारत जैसे देश में तो हर दिन प्रेम का है। वैलेंटाइन डे पर फूहड़ता के विरोध में कहीं पुलिस को तो कहीं बजरंग दल जैसे संगठनों को किंग क्लाउडियस बनना पड़ता है और लगता है जैसे वह प्रेम के विरोधी हों। पर ऐसा नहीं होता, दरअसल भारतीय संस्कृति तो प्रेम से ओतप्रोत रही है। ऐसे में यूरोपीय‌ प्रेम दिवस पर हद पार कर भारतीय संस्कृति को तार-तार करना समझ से परे होता है। हालांकि तब भी भारतीय संविधान किसी को भी किंग क्लाउडियस बनने की इजाजत नहीं देता।
हमारा देश तो सांस्कृतिक समृद्धि का जीवंत उदाहरण है। उत्तर से दक्षिण तक पहुंचते-पहुंचते धोती लुंगी बन जाती है। फाल्गुन का महीना और ब्रज की होली प्रेम के रंग बिखेरने को तैयार है। राधा और कान्हा का प्रेम तो जग में प्रसिद्ध है। राधा और कान्हा का नाम जहां आ जाए, वहीं जगह ब्रज बन जाती है और प्रेम का समुद्र दिलों में हिलोरें मारने लगता है। आगे की पंक्तियां हमें ब्रज, राधा और कृष्ण के करीब ले जाने वाली हैं, खुद ही महसूस कर लीजिए।
ब्रज रज जाकूँ मिल गयी,वाकी चाह न शेष। ब्रज की चाहत मैं रहैं, ब्रह्मा, विष्णु, महेश। ब्रज के रस कूँ जो चखै, चखै न दूसरो स्वाद। एक बार राधे कहै, तौ रहै न कछु और याद। ब्रज की महिमा को कहै, को बरनै ब्रज धाम। जहाँ बसत हर साँस में,श्री राधे और श्याम।
तो यहां भारत की भूमि ब्रजमय ही है। जहां प्रेम की गंगा हर जगह बहती है। यहां हर दिन प्रेम से सराबोर है। हर दिल प्रेममय है। राजनैतिक तौर पर भले ही नफरत छोड़ो, भारत जोड़ो जैसे नारे आकार ले लें, लेकिन वास्तव में सामाजिक-सांस्कृतिक तौर पर प्रेम दिलों को जोड़े हुए है। यहां क्लाउडियस मानसिकता की दिलों में कोई जगह नहीं है और संत वैलेंटाइन मानसिकता हर नेक दिल का हिस्सा है…। कबीर, सूर, तुलसी, मीरा, रसखान, चैतन्य की परंपरा प्रेम में ही तो समाई है यहां…।