गांव-नगर की उत्पत्ति के समय किस भूमि का स्वामी कौन था, बताएगा रेवन्यू खसरा

धर्मस्थलों, पुरातात्विक महत्व के स्थलों के मालिकाना हक का इतिहास पता कर सकेंगे लोग

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भोपाल: प्रदेश का राजस्व महकमा आने वाले दिनों में राजस्व खसरे के जरिये जमीन के मालिकाना हक की जानकारी देने बड़ा चेंज लाने जा रहा है। इस बदलाव का असर यह होगा कि अगर सदियों पुराने किसी धार्मिक या पुरातात्विक स्थल की भूमि पर किसी का बेजा कब्जा है तो सौ साल या उससे अधिक समय के पुराने दस्तावेज के आधार पर सरकारी रिकार्ड में आई जानकारी उसके मालिकाना हक का निर्धारण कर सकेगी। इसके साथ ही यह भी पता चल सकेगा कि किस गांव या शहर की कौन सी जमीन कब किसके नाम पर दर्ज रही? इसके बाद साल दर साल उसमें मालिकाना हक कैसे बदलते रहे।
राजस्व विभाग द्वारा किसानों और भूमि स्वामियों की जमीन के मालिकाना हक के दस्तावेज उपलब्ध कराने की प्रक्रिया को लेकर लगातार बदलाव कर रहा है। इसके पीछे शासन की मंशा है कि लोगों को बगैर किसी विवाद और लेन देन के सुविधा मिले। इसके लिए भू राजस्व संहिता में बदलाव का काम भी किया गया है। अब इसी कड़ी में विभाग खसरों में रजिस्ट्री के साथ ही नामांतरण की सुविधा देने के साथ एक नया बदलाव यह भी करने की तैयारी में है कि आज से सौ या दो सौ साल पहले किसी भी गांव या नगर की उत्पत्ति के समय उस स्थान की जमीन के मालिकाना हक वाले दस्तावेजों की जानकारी खसरे में उपलब्ध हो। उदाहरण के तौर पर ऐसे भी कह सकते हैं कि वर्ष 1850 में अगर किसी गांव या नगर की जमीन का रिकार्ड उपलब्ध है तो उस जमीन का तब से लेकर अब तक कौन-कौन मालिक रहा, इसका ब्यौरा लोगों को उपलब्ध हो सकेगा।

ऐसे समझें बदलाव और हक का गणित
खसरे में दर्ज होने वाली जानकारी के मामले को ऐसे समझा जा सकता है। मान लीजिए कि भोपाल का एमपी नगर इलाके में जमीन के मालिकाना हक की जानकारी दो सदियों तक की अवधि में चाहिए तो जब से एमपी नगर का नाम हुआ तब से लेकर अब तक इस इलाके की भूमि का कौन सा टुकड़ा राजस्व रिकार्ड में कब किस नाम पर दर्ज रहा। इसका पूरा ब्यौरा अब लोगों को खसरे में मिल सकेगा। इससे जमीन के मालिकाना हक के मामले में असली स्थिति साफ हो सकेगी।

पुरातात्विक महत्व के स्थलों की जानकारी मिलेगी
इस व्यवस्था का एक फायदा यह भी होगा कि प्रदेश के धार्मिक और प्राचीन नगरों, गांवों की जमीन के वास्तविक मालिक सामने आ सकेंगे। इसके आधार पर भूमि के मालिकाना हक को लेकर अदालतों में जाने वाले और चल रहे विवादों के निपटारे में मदद मिलेगी क्योंकि खसरे में जो भी जानकारी दर्ज होगी वह सौ साल या उसके पहले की अवधि तक के उपलब्ध सरकारी दस्तावेजों के आधार पर होगी।