

Who will protect labourers’ lives? जिनकी जिम्मेदारी है जीवन बचाने की वो सिर्फ तमाशाई हैं!
रंजन श्रीवास्तव
ना इनके पास कोई कार थी और ना ही उसमें छिपाने के लिए 50 किलो सोना। ना इनके पास किसी पाश एरिया में आलीशान बंगले और कार्यालय थे और ना उसमें रखने के लिए करोड़ों की वैध या अवैध कमाई। इन्होंने सरकार के प्रति व्यक्ति आय के हवा हवाई आंकड़े भी नहीं देखे थे। इसलिए ये मजदूरी की तलाश में मध्य प्रदेश से गुजरात गए थे पर वहां भी इनको मौत ही मिली जिसके लिए जिम्मेदार अभी तक तो स्थानीय प्रशासन ही दिख रहा है जिसने अवैध पटाखा फैक्ट्री को बिना लाइसेंस चलने दिया।
अजय, विजय और कृष्णा तीन नाबालिग भाई और उनकी माँ गुड्डी बाई अब किसी से रोजगार नहीं मांगेंगे और ना ही सरकार और प्रशासन से बोलेंगे कि मजदूरों का जीवन नहीं सुधार सकते तो कम से कम उन फैक्ट्री पर ताला तो लगा दीजिये जो अवैध हैं और जो मजदूरों की जान ले सकते हैं, क्योंकि मंगलवार को चारों का जीवन गुजरात के डीसा स्थित अवैध पटाखा फैक्ट्री में ब्लास्ट की भेंट चढ़ गया। ये चारों उन 18 अभागे मजदूरों में शामिल हैं जिनके जीवन की आहुति इस अवैध पटाखे की फैक्ट्री में हुए ब्लास्ट ने ले ली। इन मजदूरों के नाम अब सरकारी रिकॉर्ड में मृतकों की सूची में इसलिए दर्ज हो गए क्योंकि जिनकी जिम्मेदारी इस अवैध पटाखा फैक्ट्री को ना चलने देने की थी और मजदूरों के जीवन को बचाने की थी उन्होंने इस फैक्ट्री के खिलाफ तब भी कोई कार्रवाई नहीं कि जबकि लगभग 20 दिन पूर्व निरीक्षण के दौरान यह तथ्य सामने आ चुका था कि इस फैक्ट्री के लाइसेंस का नवीनीकरण नहीं कराया गया था।
स्थानीय मीडिया के अनुसार मृतकों में मध्य प्रदेश के 18 लोग थे जिनमें 8 हरदा और 10 देवास के थे। ये मजदूरी की तलाश में गुजरात इसलिए गए थे क्योंकि पिछले वर्ष हरदा में अवैध पटाखा फैक्ट्री में ब्लास्ट और कई मौतों के बाद जिले में कई पटाखा फैक्ट्री बंद कर दिए गए। पर इन मजदूरों को क्या पता था कि हरदा से 700 किलोमीटर दूर जिस जिले की पटाखा फैक्ट्री में वे काम पाने से खुश थे वहां का प्रशासन भी उसी अव्यवस्था का शिकार था जो उन्होंने हरदा में देखा था। हरदा पटाखा फैक्ट्री का लाइसेंस 2022 में सस्पेंड किया गया था, लेकिन बाद में दीपावली के नाम इसे फिर से शुरू कर दिया गया। प्रशासन को इस फैक्ट्री को चलने नहीं देना चाहिए था क्योंकि इसका संचालन ही अवैध था। कारण : यह फैक्ट्री रिहायशी इलाके के बीच चल रही थी और फैक्ट्री में किसी भी विस्फोट से वहां के निवासियों को भी जान का खतरा था। वहां पूर्व में भी हादसे हो चुके थे पर फिर भी प्रशासन ने यह सुनिश्चित नहीं किया कि इस फैक्ट्री में सभी सुरक्षा मानकों का पूर्ण पालन किया जाए।
बताया जाता है कि फैक्ट्री में क्षमता से अधिक विस्फोटक सामग्री थी और फायर सेफ्टी के लिए अग्निशमन व्यवस्था या अन्य सुरक्षा उपकरण के लिए उचित व्यवस्था नहीं थी। हालाँकि हरदा में मृतकों की संख्या 13 बतायी गयी पर जिस तरह से पुलिस और प्रशासन ने मीडिया को घटनास्थल पर जाने से रोका उससे लोगों के मन में यह आशंका बलवती हुई कि संख्या कहीं ज्यादा है। घटना के बाद गुजरात में भी वही होगा जो हरदा में हुआ अर्थात किसी अधिकारी पर जिम्मेदारी तय नहीं करना। हरदा में जो तुरंत जानकारी सामने आयी थी वह यह था कि तत्कालीन कलेक्टर ने फैक्ट्री संचालन की अनुमति नहीं दी थी पर उनसे बड़े एक अधिकारी ने अपने स्तर पर दीपावली के नाम पर उक्त फैक्ट्री के संचालन की अनुमति दे दी। चाहे मध्य प्रदेश हो या गुजरात या अन्य कोई राज्य समस्या नियम और कानून की नहीं है। नियम और कानून पर्याप्त हैं पर समस्या है व्यवस्था को चलाने वालों की जिनकी जिम्मेदारी है कि वे हर वो कदम उठायें जो किसी भी फैक्ट्री में और खासकर ऐसी फैक्ट्री में जहाँ ज्वलनशील पदार्थ का भण्डारण हो किसी मजदूर या कर्मचारी की जान बचाने या उसके शरीर को किसी भी तरह की हानि से बचाने के लिए जरूरी है। पर हर घटना के बाद ही शासन और प्रशासन जगता है। कई कदम उठाने की घोषणा होती है। अवैध काम करने वालों को चेतावनी दी जाती है। जांच समिति बनती है और रिपोर्ट या तो बाहर नहीं आती या जो रिपोर्ट आती भी है वह सिर्फ जिम्मेदारों को बचाने की होती है।
हरदा में जो घटना हुई उसका सन्देश पूरे देश में जाना चाहिए था और राज्य कोई भी हो वहां के शासन और प्रशासन को यह सुनिश्चित करना था कि हरदा की घटना से सीख लेते हुए हर फैक्ट्री में सुरक्षा मानकों का पूर्ण पालन कराया जायेगा और कोई भी अवैध फैक्ट्री हो खासकर ज्वलनशील पदार्थों के भण्डारण वाली वहां पर ताला लगा दिया जाएगा। पर तमिलनाडु के शिवकाशी में 1991 में पटाखा फैक्ट्री में हुए ब्लास्ट जिसमें 39 मारे गए और 65 घायल हुए, के बाद पिछले 30 वर्षों में कई राज्यों में सिर्फ पटाखा इकाइयों में कुल मिलाकर 14 बड़े ब्लास्ट हो चुके हैं जिनमें लगभग 160 लोग मारे जा चुके हैं। यह दर्शाता है कि औसतन हर दो वर्ष में पटाखा फैक्ट्री ब्लास्ट की घटना होती है। लोग मारे जाते हैं और फिर से शासन और प्रशासन इन घटनाओं से सीख लेने से इंकार करता है।