केन्द्र सरकार द्वारा पेट्रोल और डीज़ल के दाम में कमी करने से लोगों ने मामूली राहत महसूस की है, लेकिन वह काफी नहीं है।
सरकार ने यह कदम अनायास नहीं उठाया। महंगाई इतनी उच्च पहुँच चुकी है कि आम जनता के लिए वह असहनीय हो चुकी है।
पिछले सप्ताह ही वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने जो आंकड़े जारी किये थे उसके अनुसार अप्रैल में थोक मूल्य सूचकांक 15.1 प्रतिशत ऊपर रहा। यह थोक मूल्यों की महंगाई का चरम कहा जा सकता है।
यह सूचकांक पिछले 11 साल में कभी इतना ज्यादा नहीं रहा। उस पर भी खास बात यह है कि पिछले 13 महीनों से थोक मूल्य सूचकांक लगातार डबल डिजिट में बना हुआ है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार थोक मूल्य सूचकांक वास्तव में 11 वर्ष नहीं, बल्कि 30 वर्षों में सबसे ज्यादा है। हालांकि आरबीआई इसकी पुष्टि नहीं करता।
सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार अप्रैल में फुटकर मूल्य सूचकांक भी लगातार 7.79 प्रतिशत रहा। रिजर्व बैंक द्वारा रेपो रेट बढ़ाने के बाद अब इसमें और भी बढ़ोत्तरी की आशंका कही जा सकती है।
आम आदमी के जरूरत की हर चीज महंगाई के चरम पर है। फल, अनाज, दालें, सब्जियां, दूध यहां तक कि चाय की कीमतें भी आसमान पर हैं।
इसके अलावा आधारभूत धातु, रसायन, रसायन उत्पाद, मशीनें, उपकरण, कपड़ा, बिजली की सामग्री आदि के दाम भी चरम पर हैं।
पेट्रोल, डीजल, प्राकृतिक गैस आदि के दाम पहले से ही ऊपर है ही। इसका मतलब यह है कि रोजमर्रा काम आने वाली चीजें महंगी है ही, वे चीजें भी बहुत महंगी है, जिन्हें खरीदने की जरूरत कभी-कभार पड़ती रहती है।
सीमेंट, स्टील आदि के दाम इतने बढ़ चुके हैं कि घर का सपना और अब और कठिन होता जा रहा है।
पिछले एक साल की तुलना में ईंधन की कीमतें लगभग 37 प्रतिशत बढ़ चुकी हैं। इसमें भी पेट्रोलियम पदार्थ लगभग 69 प्रतिशत महंगे हो चुके हैं।
सब्जियां लगभग 23 प्रतिशत और गेहूं 10.7 प्रतिशत तक महंगे हैं। आलू जैसी रोज काम आने वाली सब्जी लगभग 20 प्रतिशत महंगी हैं।
मुद्रा स्फीति के कारण चीजें महंगी होती ही जा रही है। आधारभूत वस्तुओं के दाम जैसे खनिज पदार्थ बेहद महंगे होते जा रहे हैं।
रूस और यूक्रेन की लड़ाई ने इसमें और तेजी ला दी है। पेट्रोल, डीजल की महंगी कीमतों ने परिवहन लागत बढ़ा दी है और किसी भी वस्तु को पुराने दामों पर बेच पाना लगभग मुश्किल हो गया है।
फिलहाल रूस और यूक्रेन की लड़ाई थमने की कोई संभावना नजर नहीं आ रही है। इससे हालात और जटिल होते जा रहे हैं।
आर्थिक मामलों के जानकार कहते हैं कि आरबीआई अभी रेपो रेट में और बढ़ोत्तरी करेगी। यह बढ़ोत्तरी अगस्त तक चलती रहेगी।
इसका मतलब यह हुआ कि ब्याज दरें अभी और ऊपर की ओर जाएगी। रेपो रेट बढ़ाने का क्रम 2023 तक जारी रह सकता है।
आरबीआई के सामने सीधा सा तर्क है कि अगर रूस-यूक्रेन युद्ध नहीं रूकता, तो हम रेपो रेट नीचे करने में समर्थ नहीं होंगे।
दूसरी तरफ अमेरिका में ब्याज दर लगातार बढ़ रही है, इस कारण अमेरिकी निवेशक शेयर बाज़ार से अपना धन लेकर वापस अमेरिका में निवेश कर रहे हैं।
अनुमान है कि करीब दस लाख करोड़ डॉलर का निवेश वापस अमेरिका ले जाया गया है जिससे भारत में डॉलर महंगा होता जा रहा है।
परिणाम यह है कि भारत को अपने ईंधन, सोने और अन्य आयात के लिए ज़्यादा कीमत चुकानी पड़ रही है। अप्रत्यक्ष रूप से महंगाई पर इसका असर भी पड़ रहा है।
थोक मूल्य सूचकांक कुछ चुनी हुई वस्तुएं के सामूहिक औसत मूल्य का प्रतिनिधित्व करता है। फुटकर मूल्य सूचकांक और थोक मूल्य सूचकांक में अंतर है।
इसीलिए कई लोग मानते हैं कि थोक मूल्य सूचकांक को ही महंगाई का पैमाना मानना उचित नहीं। थोक मूल्य सूचकांक में 697 पदार्थ शामिल हैं, इसमें हर तरह की खाने-पीने की वस्तुएं, रसायन, पेट्रोलियम पदार्थ आदि शामिल हैं।
कई बार ऐसा होता है कि थोक मूल्य सूचकांक ऊपर होने के बावजूद फुटकर मूल्य सूचकांक उतना ऊपर नहीं होता।
इसका कारण आमतौर पर यह भी होता है कि फुटकर व्यापारी अपने मुनाफे के मार्जिन को घटाने को बाध्य होते हैं।
थोक मूल्य सूचकांक का आंकलन करने के लिए सभी सामानों को 3 श्रेणी में बांटा गया है। पहला प्राइमरी आर्टिकल्स, जिसकी दो श्रेणियां हैं – खाद्य उत्पाद और गैर खाद्य उत्पाद।
जैसे अनाज, दाल, सब्जी, फल, दूध, अंडे, मांस-मछली। इसके अलावा गैर खाद्य उत्पाद जैसे तेल के बीज, खनिज और सस्ता पेट्रोलियम आदि।
ईंधन को दूसरी श्रेणी में रखा गया है यानी पेट्रोल-डीजल, एलपीजी, एविएशन फ्यूल आदि की कीमतें लगातार परखी जाती है। उस पर आरबीआई और सरकार की निगाह रहती है।
इसके बाद उन वस्तुओं को शामिल किया जाता है, जो मैन्यूफैक्चर्ड, गुड्स में शामिल हैं। जैसे कपड़ा, रेडिमेड कपड़े, दवाइयां, केमिकल, प्लास्टिक, सीमेंट, धातुएं, शक्कर, तम्बाकू और उससे बनी हुई चीजें, खाने-पीने की तमाम चीजें, जैसे बिस्किट, वेफर्स आदि।
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक या खुदरा मूल्य सूचकांक बताता है कि कोई भी वस्तु या सेवा ग्राहक को किस कीमत पर उपलब्ध हो रही है।
रेस्टोरेंट में मिलने वाली खाने की थाली कितने में उपलब्ध है, चाय कितने में है। अगर कोई इलाजके लिए अस्पताल में भर्ती है, तो उसकी लागत कितनी आ रही है।
स्कूलों की फीस कितनी है। रोजमर्रा के काम आने वाली टेलीफोन और मोबाइल सेवा, बिजली के बिल, बसों और रेल्वे का किराया ये सब चीजें उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में शामिल होती हैं।
थोक मूल्य सूचकांक के लगातार ऊंचे होने पर नीति नियामकों ने चिंता जताई है।
उनका यह कहना है कि भले ही थोक मूल्य सूचकांक का बढ़ना वैश्विक अर्थव्यवस्था का प्रतिनिधित्व करता है, लेकिन इसका असर तो हर नागरिक पर पड़ता ही है।
थोक मूल्य सूचकांक के ऊपर जाते ही उसका असर फुटकर मूल्य सूचकांक पर भी पड़ने लगता है।
ऐसा भी होता है कि थोक मूल्य सूचकांक के ऊपर जाने के बाद उपभोक्ताओं को उसके प्रभाव में आने में समय लगता है क्योंकि उपभोक्ता वस्तुएं ऊंचे मूल्यों की चपेट में धीरे से आती है, जब सामान का परिवहन होकर वह उपभोक्ता तक पहुंचता है।
उत्पादित वस्तुएं भी कुछ समय बाद थोक मूल्य सूचकांक की चपेट में नजर आती हैं। संसद में भी इस बारे में लगातार चर्चाएं होती हैं, लेकिन इस पर चिंता जताने के अलावा कोई ठोस काम अभी तक होता नजर नहीं आ रहा।
थोक मूल्य सूचकांक की वृद्धि के साथ ही जरूरी चीजों की लगातार कमी का असर भी उपभोक्ता मूल्यों पर पड़ता है। फर्टिलाइजर, धातुएं, बिजली और अन्य कई चीजें लगातार अनुपलब्ध होती जा रही है।
कई वस्तुएं आयात पर निर्भर है, लेकिन उसका असर आम उपभोक्ता पर पड़ता ही है। बिजली की रिकॉर्ड मांग के बाद भी बिजली की लगातार कमी बनी हुई है और कई राज्यों में बिजली कटौत्री करनी पड़ रही है।
बिजली घरों में कोयले की कमी के कारण यह स्थिति बनी है और आयातित कोयला लगातार महंगा हो रहा है, जिसका असर बिजली उत्पादन पर भी पड़ रहा है।
कोरोना के संकट के बाद बढ़ती बेरोजगारी और महंगाई ने जनजीवन को मुश्किल में डाल दिया है। केन्द्र और राज्य सरकारें अपनी तरफ से प्रयास कर रहे है, लेकिन कुछ चीजें उनके बस में भी नहीं है।
जाहिर है हमें अपनी नीतियों पर लगातार विचार करने और बदलाव करने की जरूरत है। हो सकता है इन नीतियों में परिवर्तन के बाद हम महंगाई और बेरोजगारी पर कुछ हद तक नियंत्रण पा सकें।