निकाय चुनाव से इतना खुश क्यों हैं कांग्रेस और आप ?

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जिस कांग्रेस ने छह दशक तक देश पर और मध्य प्रदेश में 47 साल तक राज किया, आज उसकी यह दशा हो गई कि तीन,चार शहरों में उसका महापौर चुन लिया जाता है तो वह ताक धिना धिन करने लग जाती है। ऐसी ही बावरी आम आदमी पार्टी भी हो रही है,महज एक जगह महापौर चुन लिये जाने से। कोई उन स्थानों के समग्र परिणामों पर गौर करना चाहेगा? जिस ग्वालियर,जबलपुर और सिंगरौली के महापौर चुनावों को क्रांतिकारी,परिवर्तनकारी और भाजपा के लिये चुनौती,सबक के तौर पर प्रचारित किया जा रहा है, वहां सभी वार्ड के परिणामों का जिक्र भला क्यों नहीं हो रहा? जबकि इन तीनों जगह पर सदन में बहुमत भाजपा के पास ही है। आपको बता दें कि ग्वालियर में 34 भाजपा,26 कांग्रेस और 6 अन्य हैं। जबलपुर में 44 भाजपा,26 कांग्रेस,7 निर्दलीय और 2 ओवेसी की पार्टी के हैं। इसी तरह से सिंगरौली में 23 भाजपा,12 कांग्रेस, 5 आप और 2 बसपा है।

     यह ठीक है कि सर्वोच्च पद पर कांग्रेस और आप का कब्जा हुआ है,जो भाजपा को ठेस पहुंचाने के लिये पर्याप्त है,लेकिन इससे भाजपा उन जगहों पर अपना प्रभुत्व खो चुकी है, यह पूरी तरह गलत और आत्म मुग्धता है। ग्वालियर,जबलपुर और सिंगरौली में कांग्रेस व भाजपा ने इतिहास रचा है, जिसकी अनदेखी नहीं की जाना चाहिये।ऐसे ही दो स्थानों पर ओवैसी के दल के पार्षद चुने जाने को मप्र में ओवैसी और आप की भी आमद के तौर पर प्रचारित किया जारहा है। ऐसा होता है तो लोकतंत्र में इसका स्वागत किया जाना चाहिये, किंतु पहले इन बातों की हकीकत जान ली जाये तो बेहतर रहेगा। इसे तात्कालिक तौर मप्र में औवेसी और आप के प्रवेश का संकेत माना जा सकता है, किंतु प्रदेश की राजनीति को प्रभावित करने वाला मुद्दा मानना जल्दबाजी ही होगी।ऐसा तो तब होगा जब ये दल विधानसभा,लोकसभा चुनाव में दमदार मौजूदगी दर्ज कर लेंगे। हां, इसकी तैयारी करने के लिये उन्हें मौका और माहौल मिलता दिख रहा है। इन दलों का नेतृत्व इसके मद्देनजर रणनीति बनाकर चलेंगे तो आगे संभावनायें बन सकती हैं। बहरहाल।

     पहले बात करते हैं आम आदमी पार्टी की। उसने जहां सिंगरौली में जीत दर्ज कर इतिहास रचा, वहां ग्वालियर में खेल बिगाड़कर खेल दिखाया। दोनों जगह आप की रणनीति का समान पहलू यह है कि उसने अग्रवाल,वैश्य प्रत्याशी मैदान में उतारा। ग्वालियर में रुचि गुप्ता तो सिंगरौली में रानी अग्रवाल। हम जानते ही हैं कि आप मुखिया अरविंद केजरीवाल अग्रवाल हैं। वे इस वैश्य पत्ते को बेहद कुशलता के साथ खेल रहे हैं। उनका मकसद इससे भाजपा के पारंपरिक मत कोष में सेंध लगाना है। भाजपा को हमेशा से वैश्यों,ब्राहम्णों का हितैषी माना जाता है। दूसरे दल यह प्रचारित भी करते ही हैं कि भाजपा ब्राहम्ण,बनियों का दल है। यह और बात है कि भाजपा का राष्ट्रपति दलित वर्ग से,प्रधानमंत्री पिछड़े वर्ग से है और भविष्य के राष्ट्रपति आदिवासी तथा उप राष्ट्रपति जाट वर्ग से होने जा रहे हैं। बहरहाल।

     आप ने सिंगरौली में जिस रानी अग्रवाल को प्रत्याशी बनाया, पह मूलत भाजपा परिवार से है। उनके ससुर कभी भाजपा के कोषाध्यक्ष रहे हैं। ऐसे में कांग्रेस को जहां उसके तयशुदा मत मिले,वहीं भाजपा के कोष में सेंध लगी और झाड़ू लग गई। वहां बेशक आम आदमी पार्टी के 5 प्रत्याशी वार्ड का चुनाव जीते हैं, लेकिन उनकी परिषद नहीं बन सकती। वहां से भाजपा के 23 और कांग्रेस के 12 तथा बसपा के 2 पार्षद हैं। जाहिर है कि रानी सिंगरौली की महारानी नहीं बन पायेगी। भाजपा उनकी राह में कांटों का खेत ही बिछा देगी। दूसरा विकल्प भी आजमाया जा सकता है कि पुराने तकाजे देकर उन्हें भाजपा में घर वापसी करा दी जाये, जिसमें अब भाजपा को महारत होती जा रही है। ग्वालियर में भी आप का खेल यही था,भाजपा का खेल बिगाड़ना। वह उसने बखूबी किया।

यहां भाजपा ने ब्राहम्ण प्रत्याशी सुमन शर्मा को उतारकर आधी बाजी पहले ही कांग्रेस के हाथों में दे दी थी। उस इलाके में ब्राह्मण,ठाकुर विवाद पुराना है। वहां से माया सिंह सशक्त प्रत्याशी थी,जिन्हें ज्योतिरादित्य सिंधिया और नरेंद्र सिंह तोमर का भी समर्थन था। संगठन के ऐतराज के चलते अन्य नाम के चक्कर में सुमन शर्मा आ गईं। जबकि कांग्रेस ने जिन शोभा सिकरवार को आगे किया,उनका परिवार राजनीति में गहरे तक डूबा हुआ है, जिनका खासा प्रभाव समूचे इलाके में है। साथ ही उनके ससुर तो भाजपा के नेता भी रहे हैं। साथ ही पति सतीश सिकरवार भी भाजपा विधायक रहे हैं, जो पिछले उप चुनाव में कांग्रेस में शामिल होकर विधायक बने हैं। इस परिवार के कुछ सदस्य भाजपा तो कुछ कांग्रेस में होने से समान प्रभाव दोनों जगह रखते हैं। इस बार महापौर चुनाव में भाजपा की रस्साकसी का लाभ इसीलिये शोभा को मिला। बाकी खेल बिगाड़ा आप प्रत्याशी रुचि गुप्ता ने।उ्न्होंने भाजपा के वैश्य मतों का विभाजन कर 45 हजार मत हासिल किये और सुमन शर्मा 28 हजार मतों से हार गई। संभव है कि आप प्रत्याशी न होने या भाजपा की ओर से भी ठाकुर प्रत्याशी होने से सीट भाजपा के ही पास रहती। ग्वालियर में भी परिषद भाजपा की ही है। भाजपा के 34,कांग्रेस के 26 और अन्य 6 की विजय हुई है। तो राज तो भाजपा का ही रहेगा।

जबलपुर की दशा इससे अलग नही है। वहां महापौर तो कांग्रेस का है, लेकिन परिषद इस प्रकार रहेगी-भाजपा 44, कांग्रेस 26 ,7 निर्दलीय और ओवैसी की पार्टी के 2 सदस्य हैं। यहां भाजपा के निष्ठावान कार्यकर्ताओं की कमी या मैदान नहीं पकड़ना पराजय की प्रमुख वजह बताई जा रही है।

भाजपा ने खोया है, यह अपनी जगह सच है, किंतु कांग्रेस या आप के हाथ कुछ नायाब तोहफा लग गया है,ऐसा सोचना पूरी तरह सच नहीं कहा जा सकता। एक बात जरूर है कि इससे कांग्रेस और आप का मनोबल बढ़ेगा, जो उन्हें आगामी विधानसभा चुनाव में मैदान में उतरने का उत्साह देगा। लेकिन चुनाव केवल उत्साह से कहां जीते जाते हैं। आप ने सिंगरौली और ग्वालियर में जो वैश्य कार्ड खेला,उसे वह आम तौर पर आजमाती रही है और आगे भी जारी रखेगी, क्योंकि वह मानती है कि इससे भाजपा में सेंधमारी की जा सकती है। इसी वजह से उसने पंजाब से अशोक मित्तल को राज्य सभा में भेजा। साथ ही दिल्ली से दो वैश्य भेजे हैं। सुशील गुप्ता और नारायण दास गुप्ता।इस तरह से आप के 10 राज्यसभा सांसदों मे 3 वैश्य हैं। जातिवाद के पत्ते को वह दलित-पिछड़े वर्ग से निकालकर विशिष्ट वर्ग में ले आई है। इसके सहारे वह भविष्य की राजनीति को जारी रखना चाहेगी। भाजपा के लिये निकाय चुनाव अच्छी नसीहत साबित हो सकते हैं, बशर्तें, वह कमजोरी दूर कर सके तो। यदि सत्ता के नशे का उतारा नहीं किया तो बड़ा झटका भी लग सकता है।