क्यों तोड़फोड़ में सिद्धहस्त हैं समाजवादी

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क्यों तोड़फोड़ में सिद्धहस्त हैं समाजवादी

आईएनडीआईए [इंडिया ] का सीराजा बिखर रहा है । बोलचाल की भाषा में आप कह सकते हैं कि ‘ रायता फैलने ही वाला है ‘ और इसका श्रेय जाएगा समाजवादी पार्टी के खाते में। समाजवादी पार्टी मध्य्प्रदेश विधानसभा में कांग्रेस के खिलाफ अपने प्रत्याशी उतारकर इसकी शुरुवात कर चुकी है। समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो अखिलेश यादव ने कहा है कि – मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने छह सीटों को छोड़ने का आश्वासन दिया था लेकिन एक भी सीट नहीं छोड़ी। अखिलेश ने संकेत दिए कि दिल्ली के गठबंधन पर सपा भी यही व्यवहार करेगी।’ जाहिर है कि भविष्य में यही होकर रहेगा।

समाजवादियों का नैसर्गिक स्वभाव है कि वे एक होकर न रह सकते हैं और न किसी के साथ चल सकते हैं। समाजवादी विचारधारा के अनुसार नि:स्वार्थ सेवा, त्याग और आध्यात्मिक प्रवृत्ति – इनमें शोषक और शोषित के लिए कोई स्थान नहीं। यदि किसी के पास कोई संपत्ति है तो वह समाज की धरोहर मात्र है, देखा जाये तो इसके अनुसार सभी लोग एक समान स्थिति में होने चाहिए। सबके लिए समानता। किन्तु आज देश के तमाम समाजवादियों का आचरण इस स्थापित सिद्धांत के खिलाफ है। फिर चाहे वे कहीं के समाजवादी हों। भारत में किसान मजदूर पार्टी की स्थापना से लेकर आज की समाजवादी पार्टी के अलावा कितने समाजवादी दल देश में हैं इसकी गणना करना कठिन काम है। किसी के पास साइकल है तो किसी के पास लालटेन लेकिन हैं सबके सब अँधेरे में।

पहले समाजवादी कांग्रेस की कोख में थे,लेकिन जब बात नहीं बनी तो कांग्रेस से बाहर आकर अलग राजनीतिक दल बना बैठे। पहले की , कृषक मजदूर प्रजापार्टी फिर प्रजा सोशलिस्ट पार्टी बनी । इससे भी काम नहीं चला तो डॉ राम मनोहर लोहिया की एक अलग समाजवादी पार्टी बनी। समाजवाद के नाम पर कांग्रेस कि तरह वामपंथी भी बटे। और फिर समाजवादी पार्टी लगातार विभाजित होती रही। आज उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी है । बिहार में लालू प्रसाद यादव की अपनी पार्टी है। नीतीश कुमार की अपनी पार्टी है ,ओडिशा में नवीन पटनायक की अपनी । सबके मूल में समाजवाद है ,लेकिन कैसा समाजवाद है ये दुनिया जानती है।

आज देश में जब भाजपा के खिलाफ एक साझा मंच बनाया गया है तब उसमें पहला वार उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव ने किया है। मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव इसका बहाना बने। मध्यप्रदेश में समाजवादी कांग्रेस से 6 सीटें चाहते थे ,लेकिन बात नहीं बनी और अब यादव धमकी दे रहे हैं कि उनके साथ जो भोपाल में हुआ वही सब वे दिल्ली में कांग्रेस के साथ करेंगे। हमारे समाजवादी मित्र रमाशंकर सिंह इस बाबद बहुत पहले ही भविष्यवाणी कर चुके हैं कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के बाद विपक्षी एकता का सीराजा बिखरेगा और अब ये भविष्यवाणी सही साबित होती दिखाई दे रही है।

मध्य्प्रदेश की राजनीति में समाजवादी हों या बहुजन समाज पार्टी वाले उनकी उपस्थिति ऊँट के मुंह में जीरे जैसी रही है । ये दोनों दल कभी भी एक दर्जन सीटों से ज्यादा नहीं जीते और जीते भी तो हमेशा सत्तारूढ़ दल के हाथों खरीद लिए गए। समाजवादी पार्टी के पास अपने नेता हैं ही नही। मध्यप्रदेश में समाजवादी पार्टी कांग्रेस और भाजपा के बागियों का किराये का मंच है । इस बार भी सपा के विधायक संजीव सिंह आखिर में भाजपा में चले गए थे।वे पटवारी भर्ती घोटाले के आरोपी भी हैं। उनके पिता भाजपा के अनेक बार संसद रहे। समाजवादी मध्यप्रदेश में चुनाव लड़कर उसी भाजपा का लाभ कर सकते हैं जो उन्हें ईडी ,सीबीआई और ऐसे ही दूसरे हथियारों से डराती-धमकाती रहती है। मध्यप्रदेश में फिलहाल कांग्रेस को किसी तीसरे दल के सहयोग की जरूरत नहीं है । न समाजवादी पार्टी की और न आम आदमी पार्टी की। इस हकीकत को इन छोटे-मोटे दलों को समझना चाहिए था ,लेकिन नहीं समझा और अब अपने ही पांवों पर कुल्हाड़ी मारने लगे है। आम आदमी पार्टी भी मध्यप्रदेश में चुनाव लड़ रही है और समाजवादी पार्टी भी। बहुजन समाज पार्टी तो चुनाव लड़ने का अनुआ करती ही है ,इससे उसे कुछ पैसा मिल जाता है। इस बार भाजपा के तमाम असंतुष्ट बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं।

आईएनडीआईए के सदस्य समाजवादी दल के सुप्रीमो अखिलेश यादव अपने पिता मुलायम सिंह यादव की तरह परिपक्व नहीं है। आपको याद होगा कि सत्ता को लेकर समाजवादी आपस में ही लड़ते आये हैं। पहले अखिलेश और उनके चच्चा शिवपाल में जूतम-पैजार हुई थी । बिहार में शरद यादव और नीतीश कुमार लड़े थे। राजद में भी तनातनी चलती ही रहती है। एक ओडिशा में नवीन पटनायक अपने पिता की बीजद को बिखरने से बचाये हुए हैं ,लेकिन वे किसी तीन- पांच में नहीं हैं। वे न भाजपा के दुश्मन हैं और न कांग्रेस के मित्र। अखिलेश यादव को या तो नवीन पटनायक से राजनीति सीखना चाहिए या फिर बहन मायावती से। वे घमंड में भूल गए हैं कि यदि समाजवादी पार्टी विपक्षी गठबंधन से अलग रही तो भाजपा सत्ता में आये या कांग्रेस उसे ‘हप्पा’ की तरह निगल जाएगी।

समाजवादी पार्टी के व्यवहार को दरकिनार कर कांग्रेस ने मध्यप्रदेश विधानसभा की 230 सीटों में से 229 सीटों के लिए अपने प्रत्याशियों के नामों का ऐलान कर दिया है । कांग्रेस ने अंत में दो-तीन प्रत्याशियों को बदला भी है। यानि कांग्रेस अपनी धुन में अपना काम कर रही है। अखिलेश भूल जाते हैं कि वे उत्तर प्रदेश में नहीं मध्यप्रदेश में राजनीति करना चाहते हैं जहां उनकी पार्टी की हैसियत भी ठीक वैसी है जैसी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की। लेकिन कांग्रेस उत्तर प्रदेश में शून्य होकर भी आज देश के चार राज्यों की सत्ता में है। अर्थात कांग्रेस के समाने अखिलेश की पार्टी की हैसियत बहुत कम है । अखिलेश किन शर्तों पर आईएनडीआईए में शामिल हुए थे ये वे जाने और कांग्रेस जाने ,लेकिन इस समय उनकी भूमिका भाजपा के शुभचिंतक जैसी नजर आ रही है। अखिलेश को उनकी इस भूमिका का लाभ होगा या नुकसान ये भी उन्हें ही पता है ,किन्तु बाहर से लगता है कि वे न सिर्फ अपने पांव पर कुल्हाड़ी मार बैठे हैं बल्कि विपक्षी एकता के लिए भी वे खलनायक बन रहे हैं।

समाजवादी अपनी फक्क्ड़ शैली की वजह से कम से कम मुझे तो पसंद है। वे भले ही धन कुबेर बन गए हों लेकिन रहते फकीरों की तरह ही हैं। बात भी वैसी ही करते हैं लेकिन दुर्भाग्य ये है कि वे तोड़फोड़ के अपने आचरण को नहीं बदल पाए । तोड़फोड़ उनके डीएनए का अविभाज्य अंग बन गया है। समाजवादियों की ये खसलत है कि वे अपने आपको सबसे बड़ा राजनीतिज्ञ मानते है। जबकि देश का राजनीतिक इतिहास उठाकर देख लीजिये समाजवादी पिछले 75 साल में कभी राष्ट्रीय दल नहीं बन पाये । कभी अकेले सत्ता में नहीं आ पाए । वे कब ,किस पार्टी के बगलगीर हो जाएँ ये उन्हें खुद पता नहीं होता । समाजवादियों के लिए न कांग्रेस अस्पृश्य है और न भाजपा । न बीएसपी अछूत है और न कोई तीसरा दल। वे सबके साथ खिचड़ी पका सकते हैं और सबको एक झटके में पटकनी दे सकते हैं। रायता फैलाना समाजवादियों का जन्मसिद्ध अधिकार है । जो भी उन्हें उनके इस अधिकार से वंचित करता है ,संकट में पड़ जाता है।