

आदमी भटकता क्यों है?
मुकेश नेमा
भटकना तो आदमी का स्वभाव है। यदि आदमी ना भटके तो हमारे इतने सारे धर्म ,बाबा ,साधु संत ,रिश्तेदारों और हमारी आपकी पत्नियों के पास फिर काम ही क्या रह जायेगा ?किसे रास्ते पर लाने के उपदेश देंगे ये ? इन सभी की दुकानें बंद हो जायेंगीं। ये सभी दिल से चाहते हैं कि आप रास्ता भटक जायें ताकि ये आपको रास्ता दिखा सकें।
और भी इसमें हमारी आपकी गलती है भी क्या ? इतने सारे रास्ते है ही क्यों ? एक होता हम नाक की सीध में चलते और पहुँच जाते। गलती उसकी है जिसने इतने सारे रास्ते बनाये। आदमी भटकना नहीं चाहता पर इतने सारे रास्ते उसे कन्फ्यूज कर देते है ,बहुत बार वो नया रास्ता बनाना चाहता है इसलिये भी एक नई दिशा की तरफ़ निकल पड़ता है। ऐसे में या तो वो खुद खो जाता है या दूसरों को रास्ता दिखाने में कामयाब हो जाता है। कोलंबस को ही ले लीजिए। भटकने के कारण नाम कमा गया वो। चटोरा आदमी था वो। उसे मसालो से इश्क़ था। बस इसी वजह से वह भारत आने का नया और छोटा रास्ता तलाशना चाहता था अब ये बात अलग है कि वो भटक कर अमेरिका पहुँच गया।
भटकने से बचने के ध्यान की दुकानें भी है हमारे यहाँ। पर बहुत बार यहाँ ध्यान खुद भटका मिलता है आपको। आप इस नतीजे पर पहुँचते हैं कि दुकान खोले बैठे महारथी खुद अंधे हैं और अंधों से रास्ता दिखाने की उम्मीद रखना बेकार ही है।
और फिर भटके हुये को भटकना मानना ही क्यो है ? हो सकता है उसे ये खबर हो कि दुनिया गोल है। आप जहां जाना चाहते है वहाँ एक ना दिन पहुँच ही जाएँगे। हरिवंश राय बच्चन ऐसे ही थोड़े बता गये हैं कि राह पकड ले एक चला चल । पा जायेगा मधुशाला। ऐसे में किसी को भटकता हुआ देखें तो उसे एकदम से शराबी ना मान लें हो सकता है वो कोई पहुँचा हुआ संत हो और आपको राह दिखाने आया हो।
भटको हुओ को रास्ता दिखाने की ज़िम्मेदारी सबसे पहले ध्रुव तारे ने सँभाली फिर गुरू तलाशे गये। कंपास भी आगे आया उसके लिये और आजकल इन सबका काम गूगल कर रहा है। इन सारे तरीक़ों के बावजूद जो भटकना चाहता है वो भटक ही जाता है। और फिर भटकने का अपना रोमांच है। भटकने वाला इंसान ,नई जगहों और नये लोगों से मिलाता है ।भटकना आपको ज्ञानी तो बनाता ही है ,बहुत बार जवान भी कर जाता हैं।
आदमी भटकता क्यों है ? बंदा शातिर हो जेब भारी हो तो भटकना आसान।काम का बोझ हो ,फालतू हों। बाप के ताने हों। दूसरों से आगे निकलने की छटपटाहट हो ,तो भी आदमी भटक जाता है। और इन सब से बड़ी बात कि विधाता ने आपके लिए अर्श या फर्श क्या तय किया हुआ है। ऐसे मे जब पहुँचे, जहाँ पहुँचे उससे राजी रहे और आप कर भी क्या सकते हैं ?
आदमी जीते जी भटकता है ,मरने के बाद भूत बनकर भटकता है। हमें बताया गया है कि लीक छोड़कर भटकना ,शायर ,सिंह और सपूत बना सकता है। भटकना फ़ितरत है हमारी। आदमी की छोड़िये बहुत बार पूरा समाज ,पूरा देश तक भटक जाते हैं। ऐसे में किसी के भटकने पर बहुत हैरान होने की ज़रूरत है नहीं। उम्मीद का दामन पकड़े रहिए। यह सोच कर इत्मिनान बनाये रखिये कि सुबह का भटका शाम तक घर लौट ही आता है।