Why IAS Anirudh Mukherjee Removed : अंततः दिल्ली से विदा हुए रेसीडेंट कमिश्नर IAS अनिरुद्ध मुखर्जी, केवल 3 महीने ही रहे इस कुर्सी पर!

560

Why IAS Anirudh Mukherjee Removed : अंततः दिल्ली से विदा हुए रेसीडेंट कमिश्नर IAS अनिरुद्ध मुखर्जी, केवल 3 महीने ही रहे इस कुर्सी पर!

जानिए, पहले भी कई बार मनमर्जी के फैसलों की वजह से विवादों में रहे ये अफसर!

Bhopal : Why IAS Anirudh Mukherjee was Removed : मध्य प्रदेश भवन नई दिल्ली में रेजिडेंट कमिश्नर अनिरुद्ध मुखर्जी अंततः दिल्ली से विदा हो गए। मध्य प्रदेश भवन के कार्यालय में कल शाम उन्होंने रेजिडेंट कमिश्नर का पदभार 1994 बैच की IAS अफसर रश्मि अरुण शमी को सौंपा। इस प्रकार केवल 3 महीने के चर्चित कार्यकाल के बाद मुखर्जी अब दिल्ली से विदा हो गए।

भारतीय प्रशासनिक सेवा में 1993 बैच के IAS अधिकारी अनिरुद्ध मुखर्जी केवल 3 महीने ही इस कुर्सी पर रह सके! मुखर्जी का तबादला 31 जनवरी को ही हो गया था और परंपरा अनुसार उन्हें अगले दिन ही भार मुक्त हो जाना चाहिए था। वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों की यही परंपरा रही है कि तबादला आदेश मिलते ही वे कार्य मुक्त हो जाते हैं और नए पद स्थापना का कार्यभार ग्रहण करते हैं लेकिन मुखर्जी ने ऐसा नहीं किया।

उन्होंने मुख्यमंत्री के जापान से आने का इंतजार किया और जब मुख्यमंत्री आए तो मुख्यमंत्री ने उन्हें समय नहीं दिया। बताया गया है कि रस्ते चलते आधा मिनट उनकी बात मुख्यमंत्री से हो पाई। मुख्यमंत्री से बात होने के बाद वे सोमवार और मंगलवार दोनों दिन ऑफिस में डटे रहे, बावजूद इसके की रश्मि उनसे कार्यभार लेने के लिए लगातार संपर्क में रही लेकिन शायद वह इसे टालते रहे। न सिर्फ टालते रहे वरन इस दौरान उन्होंने कई कार्यालय आदेश भी जारी कर डाले जिसमें कार्यालय के अधिकारी कर्मचारियों के बीच वर्क डिस्ट्रीब्यूशन का आदेश भी था। यह बात समझ से परे हैं कि जिस अधिकारी का तबादला हो चुका है वह क्यों वर्क डिस्ट्रीब्यूशन कर रहा है! बहरहाल उनका तबादला आदेश निरस्त नहीं हुआ और उन्हें अंततः मंगलवार की शाम अपना कार्यभार सौंपना ही पड़ा।

प्रदेश की ब्यूरोक्रेसी में कुछ अफसर ऐसे हैं, जो हमेशा चर्चा में बने रहते हैं। उनके चर्चा में रहने का कारण उनकी कार्यप्रणाली नहीं, बल्कि उनकी हेकड़ी वाली आदतें और स्टाफ के साथ उनका व्यवहार माना जाता है। यही वजह है कि ऐसे अफसरों हमेशा विवादों में रहने के साथ ही तबादलों की लिस्ट में उनका नाम दिखाई देता है। ऐसे ही अफसरों में सबसे अग्रणी भारतीय प्रशासनिक सेवा में 1993 बैच के IAS अधिकारी अनिरुद्ध मुखर्जी कहे जा सकते है।

तीन महीने पहले अनिरुद्ध मुखर्जी को रेसीडेंट कमिश्नर बनाकर दिल्ली स्थित मध्य प्रदेश भवन भेजा गया था। मात्र 3 महीने के कार्यकाल में उनके विवादास्पद कार्यों के कारण सरकार ने उन्हें दिल्ली से ग्वालियर भेज दिया है। उन्हें राजस्व मंडल (ग्वालियर) के अध्यक्ष जैसे कम महत्व वाले पद पर नियुक्त किया गया। इसके अलावा उन्हें लोक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग व इसकी कंपनी के एमडी का अतिरिक्त प्रभार दिया गया। दरअसल, दोनों अतिरिक्त प्रभार उनके पास पहले से थे, जिन्हें राजस्व मंडल के अध्यक्ष के साथ बरकरार रखा गया।

सूत्र बताते हैं कि मध्य प्रदेश भवन नई दिल्ली के रेसीडेंट कमिश्नर पद से उनकी वापसी भी कुछ विवादों की वजह से हुई। बताया गया कि सबसे बड़ा कारण उनका सीएम प्रोटोकॉल का न मानना रहा। बता दे कि अभी तक की यह परंपरा रही है कि जो भी अफसर इस पद पर पदस्थ होता है, उसकी जिम्मेदारी का एक बड़ा हिस्सा यह होता है, कि जब भी मुख्यमंत्री दिल्ली आए उन्हें एयरपोर्ट से रिसीव किया जाए और वापसी पर उन्हें विदा किया जाए।

इसके पीछे मुख्य कारण यह होता है कि जब CM दिल्ली पहुंचे तो उन्हें दिल्ली से जुड़े कार्यक्रमों और अन्य जानकारी तत्काल मिल जाए। लेकिन, बताते हैं कि अनिरुद्ध मुखर्जी ने कभी इस प्रोटोकॉल का पालन नहीं किया। हद तो तब हो गई जब मुख्यमंत्री जापान के लिए रवाना हुए तब भी अनिरुद्ध उन्हें विदा करने एयरपोर्ट नहीं गए और जब CM जापान से वापस दिल्ली लौटे तब भी वे नदारद पाए गए। इसके पहले जितने भी रेसीडेंट कमिश्नर रहे ,वे हर बार सीएम के दिल्ली आगमन और बिदाई के समय एयरपोर्ट पर मौजूद रहते थे। लेकिन, मुखर्जी ने इसकी कभी परवाह नहीं की। बताया जाता है कि उनका यह मानना है कि यह कार्य उनका नहीं है!

इसके अलावा उन्होंने दफ्तर के निर्धारित मानदंड भी तोड़े और मनमर्जी के फैसले लिए। दिल्ली दफ्तर में हमेशा कार्यालय प्रमुख 1996 बैच के प्रमुख सचिव स्तर के IFS अधिकारी प्रकाश उन्हाले रहे हैं। पिछले कई वर्षों से प्रकाश के पास ही ये जिम्मेदारी रही या यह कहा जाए की पहले भी, जो भी IAS अफसर मध्य प्रदेश भवन के रेजिडेंट कमिश्नर रहे हैं, उन्होंने प्रकाश उन्हाले पर पूरा भरोसा करके उन्हें कार्यालय प्रमुख बनाया था।। लेकिन, अनिरुद्ध मुखर्जी ने यह पद बजाय प्रकाश के उनसे कही जूनियर एकाउंट ऑफिसर नीरू शर्मा को बिना शासन अनुमति के सौंप दिया था।

बताते है कि अनिरुद्ध ने इस संबंध में एक प्रस्ताव मंजूरी के लिए भी राज्य सरकार को भेजा था लेकिन सरकार ने उसे नहीं माना। इसके बावजूद मुखर्जी ने नीरू शर्मा को जिम्मेदारी सौंपी। आश्चयर्जनक बात तो यह है कि नीरू की मूल पद स्थापना इस कार्यालय की न होकर दिल्ली स्थित विशेष कमिश्नर के कार्यालय में है। वे अतिरिक्त प्रभार के रूप में यहां काम देख रही है। लेकिन, इसके बावजूद उन्हें कार्यालय प्रमुख बना दिया गया। मुखर्जी ने राज्य शासन को दो तीन बार स्मरण भी कराया, व्यक्तिगत निवेदन भी किया। लेकिन, सरकार ने अनुमति नहीं दी तो अपनी मनमर्जी से नीरू को कार्यालय प्रमुख बना दिया।

जानकारियां बताती है कि रेसीडेंट कमिश्नर अनिरुद्ध मुखर्जी ने दिल्ली ऑफिस के स्टाफ को भी तीन महीने में खूब परेशान किया। उन्हें छुट्टियां नही दी गई, अपने मनमर्जी के आदेश थोपे और एक तरह से कार्य करने लायक माहौल को खराब किया। ये सारी बातें दिल्ली से भोपाल पहुंची और अंततः अनिरुद्ध मुखर्जी की वापसी तय हो गई।

पहले कब-कब विवादों में रहे

ये पहली बार नहीं है जब इस IAS को हटाने का फैसला जल्दबाजी में लेना पड़ा हो। पहले भी उनकी पदस्थापना वाली जगहों पर ऐसी कई घटनाएं हुई, जब उन्हें हटाना पड़ा। बताते हैं कि जब अनिरुद्ध मुखर्जी जबलपुर नगर निगम कमिश्नर थे, तब स्थानीय लोगों ने किसी गंभीर मामले को लेकर उन्हें कमरे में बंद करके सबक सिखाया था। वह तो बड़ी और गंभीर घटना होने से बच गई क्योंकि तत्कालीन ADM और एडिशनल SP ने उन्हें वहां से जैसे तैसे निकालकर ले गए। इस घटना के अगले ही दिन शासन को उन्हें वहां से हटाना पड़ा था।

एक मामले में हाईकोर्ट में दिए गए जवाब में सरकार के हितों की अनदेखी करने का आरोप लोकायुक्त ने फरवरी 2023 में अनिरुद्ध मुखर्जी पर लगाया है। मुखर्जी तब विमानन विभाग के PS थे। लोकायुक्त ने राज्यपाल मंगुभाई पटेल को पत्र लिखकर मुखर्जी के विरुद्ध कार्रवाई की सिफारिश भी की थी। वित्त विभाग में PS रहते हुए भी उन्होंने कई ऐसे फैसले लिए थे, जिनका उन्हें अधिकार नहीं था।

ऐसे में यह प्रश्न भी उठना वाजबी हैं कि जब मुखर्जी की कार्य प्रणाली से शासन कभी संतुष्ट नहीं रहा, वे किसी न किसी कारण से हमेशा विवाद में रहे, फिर उन्हें राजस्व मंडल के अध्यक्ष के साथ लोक परिसंपति प्रबंधन विभाग और इसकी कंपनी के MD का अतिरिक्त प्रभार क्यों दिया गया। यह बात न्यायिक और प्रशासनिक गलियारों में चर्चा का विषय बनी हुई है। जाहिर है उनका एक पांव तो अभी भी राजधानी भोपाल में ही जमा रहेगा। बता दें कि इससे पहले राजस्व मंडल के अध्यक्ष को ग्वालियर में ही रहना पड़ता है और इस पद के अलावा यदाकदा को छोड़कर अतिरिक्त प्रभार देने की परंपरा नहीं रही है।