प्रेम में असफलता आत्महत्या की वजह क्यों बन रहा!
प्रेम में असफलता आजकल आत्महत्या का कारण बन रहा है। नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ो के मुताबिक 2017 से 2019 के बीच 24,568 युवाओं ने आत्महत्या की। इनके पीछे का सबसे बड़ा कारण प्रेम प्रसंग था। प्रेम में असफल व्यक्ति के लिए मानो कुछ शेष नहीं रहता। उन्हें जीने से ज्यादा मरना आसान लगता है। अब प्रेम के प्रति वो समर्पण नहीं रहा, दिलों में रिश्तों के प्रति वो सम्मान भी नहीं रहा, जिसकी जरूरत होती है। आपसी संवाद भी घट रहा है। रिश्तों में बढ़ता तनाव भी आत्महत्या की वजह बन रहा है।
प्रेम प्रसंग में आत्महत्याएं आजकल मीडिया की सुर्खियां बन रही है। रोज ऐसी कोई न कोई खबर पढ़ने में आती है। लोग इन दिनों एक अजीब सी बेचैनी में जी रहे हैं। उन्हें किसी चीज से सुकून नहीं मिलता। युवा वर्ग की बात करें, तो प्रेम प्रसंग के चलते आए दिन नौजवान युवा आत्महत्या जैसे कदम उठा रहे हैं। उनकी ये बेचैनी उनकी जान पर बन आती है। ये सत्य है, कि जिसने जन्म लिया उसका मरना तय है। लेकिन, ऐसी भी क्या बेचैनी कि समय से पहले मौत को गले लगा लिया जाए! आज के युवाओं के लिए आत्महत्या करना जैसे फैशन बन गया है। जरा सी तकलीफ़ हुई नहीं कि, मौत के आग़ोश में समा गए। ख़ासकर प्रेम में असफल हुए व्यक्ति के लिए मानो जिन्दगी में कुछ शेष रहा ही न रहा हो। उनको जिंदगी जीने से कहीं ज्यादा मर जाना आसान लगता है। वे यह तक भूल जाते है कि उनके मरने के बाद उनके परिवार का क्या होगा! वे किस दर्द किस पीड़ा से गुजरेंगे! उन्हें तो सिर्फ याद रहता है तो अपना स्वार्थ। प्रेम के दर्द में ऐसे डूब जाते है कि बाकि दुनिया की कोई खबर ही नहीं रहती है और यही दर्द मौत की वजह बन जाती है।
कहने को हम 21वीं सदी में जी रहे हैं। तरक़्क़ी की नई बुलंदियों को छू रहे हैं। लेकिन, कितने आश्चर्य की बात है कि इतनी तरक़्क़ी के बाद भी दुनिया में हर 40 सेकंड में एक व्यक्ति अपनी जान दें रहा है। ख़ासकर प्यार में धोखा खाए युवा! उन्हें तो मानों मरने का बहाना चाहिए होता है। ऐसा शायद ही कोई दिन बीतता हो जब प्रेम प्रसंग के चलते युवा अपनी जान न देते हों। हम आधुनिक होने का भले ही कितना ढोंग क्यों न कर ले, पर जब बात प्रेम की बात आती है, तो सारी आधुनिकता धरी रह जाती है। हमारा अपना ही परिवार उस प्रेम के बंधन में रोड़े डालना शुरू कर देता है। यहां तक कि समाज भी प्रेम को गलत नज़रों से देखना शुरू कर देता है। कई बार तो यही बदनामी भी मौत का कारण बन जाती है। लेकिन, समाज के ठेकेदारों को भला किसी की मौत से क्या फर्क पड़ेगा। उन्हें तो अपनी झूठी शान की परवाह रहती है। यही वजह है दुनिया में सबसे ज्यादा आत्महत्या कहीं होती है, तो वह हमारे देश में।
नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के साल 2021 के आंकड़ो पर गौर करे तो साल 2017 से 2019 के बीच करीब 24,568 युवाओं ने आत्महत्या कर ली। इन मौतों के पीछे का सबसे बड़ा कारण प्रेम प्रसंग था। एक अन्य ख़बर के मुताबिक पश्चिमी राजस्थान के बाड़मेर जिले में हर तीसरे दिन एक व्यक्ति सुसाइड कर रहा है। 2016 से 2019 के बीच करीब 484 लोगों ने आत्महत्या की। इन आत्महत्या में प्रेमी जोड़े व सामूहिक आत्महत्या करने वालो का आंकड़ा सबसे अधिक था। प्रेम संबंधों में बढ़ती आत्महत्या चिंता का कारण बनती जा रही है। देखा जाए तो वर्तमान दौर में प्रेम के प्रति वो समर्पण भाव नहीं रहा। लोग रिश्तों को वो मान नहीं देते है। यहां तक कि आपसी संवाद भी कम हो रहा है। जिससे रिश्ते में तनाव बढ़ रहा है। वर्तमान दौर में समाज में एकल परिवार का चलन बढ़ गया है। जिससे लोग रिश्तों को वो अहमियत नहीं देते है। जो संयुक्त परिवार में होती थी। यही अलगाव व अकेलापन कई बार मौत का कारण बन जाता है।
इसके अलावा विश्व स्वास्थ्य संगठन की माने तो दुनिया में हर साल 7.03 लाख लोग आत्महत्या करते है। यानि 4 सेकंड में एक व्यक्ति अपनी जान गंवा रहा है। 2019 के आंकड़ो के मुताबिक, 19 से 25 साल के युवाओं में आत्महत्या मौत का चौथा सबसे बड़ा कारण रहा है। जिस उम्र में युवाओं को अपने बेहतर भविष्य का निर्माण करना चाहिए देश की उन्नति और तरक्की में सहयोग करना चाहिए उस उम्र में युवा मौत की तरफ़ जा रहे है। यह न केवल परिवार या समाज बल्कि राष्ट्र के लिए भी दुखदाई है। पिछले कुछ समय के आंकड़ो पर गौर करें तो हम देखेंगे कि आत्महत्या के मामले पहले की तुलना में कहीं अधिक बढ़ गए है। आज ऐसा कोई वर्ग नहीं जहां प्रेम संबंधों के चलते युवा आत्महत्या न कर रहे हो। यहां तक कि टेलीविजन जैसे क्षेत्र से जुड़े लोग भी दिल टूट जाने के दर्द में जान गंवा बैठते है। आए दिन मीडिया सुर्खियों में प्रेम प्रसंग के चलते आत्महत्या की खबरे दिखाई देती है। हमारा समाज कभी इस बात को गंभीरता से लेता ही नहीं! न सरकार इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाती है।
आत्महत्या करने की प्रवृत्ति जितनी मनोवैज्ञानिक है, उतनी ही सामाजिक भी। एक आत्महत्या ही है, जिसे कहीं न कहीं समाज के प्रयासों से रोका जा सकता है। मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि लव ब्रेकअप के कारण युवा डिप्रेशन का शिकार होते है। इन युवाओं में अकेले रहने की भावना हावी हो जाती है। वे वास्तविक दुनिया से दूरी बना लेते है। फोन इंटरनेट में समय गुजरना शुरू कर देते है। यहां तक कि ऐसे युवाओं को परिवार से भी भावनात्मक जुड़ाव कम हो जाता है। ऐसे युवा अक्सर जिद्दी प्रवृत्ति के हो जाते है। कई बार नशे के आदी हो जाते है। ऐसे लोगों का जिंदगी से भी मोह भंग हो जाता है। वे आत्महत्या की तरफ कदम बढ़ा लेते है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि जब एक व्यक्ति आत्महत्या करता है, तो उससे जुड़े 135 लोगों का जीवन प्रभावित होता है। मरने वाला व्यक्ति तो आसानी से अपनी जीवनलीला समाप्त कर लेता है। वहीं उससे जुड़े लोग गहरे दुख और अवसाद में चले जाते है। ये सच है कि आत्महत्या के कारण केवल एक जान ही नहीं जाती बल्कि उससे जुड़े लोग भी मानसिक पीड़ा और दर्द के दलदल में फंसते चले जाते है।
हमारे देश में होने वाली आत्महत्याओं की सबसे बड़ी वजह पारिवारिक समस्या मानी जाती है। देश में 33% आत्महत्या की प्रमुख वजह परिवार ही होता है। समाज में परिवार जीवन का आधार स्तम्भ है, जब यही परिवार मौत की वजह बन जाए तो परिवार जैसी संस्था पर भी सवाल उठना स्वभाविक है। देश में 5% लोगों की मौत का कारण शादी को माना जा रहा है। वर्तमान दौर का ये कड़वा सच ही है, कि हमारे समाज में शादियां तो भव्य हो रही है लेकिन रिश्तों के प्रति वो प्रेम और समर्पण अब नहीं दिखता है। लोग छोटी-छोटी बातों में परिवार से अलग हो जाते है और यही अकेलापन उन्हें मौत की तरह बढ़ाता है। गौर करने वाली बात है कि देश में 4.4% आत्महत्या की वजह प्रेम संबंध है। प्रेम जैसे पवित्र बन्धन ही जब मौत की वजह बन जाए तो फिर समझा जा सकता है कि समाज में रिश्तों के क्या मायने रह गए है!
आत्महत्या की कई वजह होती है। लेकिन, जर्नल साइंटिफिक में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन भी आत्महत्या की वजह बन रहा है। वातावरण में बढ़ती नमी और लू आत्महत्या के मामलों के लिए कहीं अधिक जिम्मेदार है। खासकर युवा वर्ग और महिलाएं इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हुए है। वातावरण में बढ़ती नमी मानसिक स्वास्थ्य पर असर डालती है। वर्तमान दौर में वैश्विक स्तर पर तापमान में वृद्धि हो रही है उसी के साथ ही नमी और लू की आर्द्रता में भी वृद्धि हो रही है। वैज्ञानिकों का मानना है कि हवा में बढ़ती नमी, लू से भी घातक असर करती है। क्योंकि, इससे पसीना नहीं सूखता है जिससे हमारा शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है। यही वजह है कि मानसिक अवसाद कहीं अधिक बढ़ रहा है। जिससे युवा पीढ़ी आत्महत्या की तरह बढ़ रही है।
बॉलीवुड का एक मशहूर गाना ‘महलों ये तख्तों ये ताजों की दुनिया, ये दौलत के भूखे रवाजों की दुनिया, ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है!’ ये गाना बॉलीवुड के हाल को बखूबी बयां करता है। इन दिनों फिल्मी सितारे भी आत्महत्या की और रुख कर रहे है। कहने को तो फिल्मी दुनिया चमक-धमक से भरी नजर आती है। लेकिन, इस चमक के पीछे का अंधेरा कई बार सितारों को मानसिक अवसाद की ओर धकेल देता है। प्रेम में असफलता उनसे बर्दाश्त नहीं होती है। यहां तक कि ये सितारे मौत तक को गले लगा लेते है। अभी हाल के दिनों में बंगला फ़िल्म उद्योग में टेलीविजन में काम करने वाली तीन कलाकार और एक मॉडल ने आत्महत्या कर अपनी जीवन लीला को समाप्त कर लिया।
ये सच है कि बॉलीवुड की चमक युवाओं को आकर्षित करती आई है। लेकिन जब सच्चाई से उनका सामना होता है तो भावनात्मक रूप से टूट जाते है। मानसिक रोगी बन जाते हैं। हमारे समाज में मनोरोगियों को एक अलग ही नजर से देखा जाता है। यही वजह है कि अक्सर युवा मानसिक अवसाद को छुपाने के प्रयास करते हैं और समय पर इलाज नहीं करवाने के कारण ये समस्या गम्भीर हो जाती है। जिससे वे धीरे धीरे मौत की तरह कदम बढ़ा लेते है। वर्तमान पीढ़ी को यह समझना होगा कि मरना किसी भी समस्या का हल नहीं हो सकता हैं।