Arun Yadav का आखिर टिकट मिलने से पहले क्यों हुआ मोहभंग?
कौशल किशोर चतुर्वेदी की विशेष रिपोर्ट
भोपाल: एक दूल्हा महीनों से यानि मान लो छह महीने से अपनी शादी की तैयारियों में जुटा था। दुल्हन भी खूब सुंदर और दूल्हे के मन में रची बसी थी। शादी के पहले ही शादी के बाद के सभी सपने बुन लिए गए थे। और लग रहा था कि फेरे भर हो गए तो फिर वही खुशी मिलने वाली है जो किसी गेंदबाज को अंतर्राष्ट्रीय मैच में हैट्रिक लेकर मिलती है।
दूल्हे के घर में भी तैयारियां जोरों पर थीं। यहां तक कि वरनिकासी से पहले टीका करने वालों की भी खूब खुशामद और आवाभगत हो रही थी। सब कुछ तय था कि भव्य तरीके से विवाह संपन्न होना ही है।
कि वरनिकासी के कुछ दिन पहले दूल्हे को अचानक याद आता है कि उसकी दो शादी तो पहले हो चुकी हैं और उसके परिवार ने उसे बहुत सारी खुशियां पहले ही दी हुई हैं। 46 साल की उम्र में ही दो शादी और बेटा, बेटी सब तो हैं, फिर हमें और किसी खुशी की चाह क्यों करना? और ऐन शादी से पहले ही दूल्हा जोर-जोर से चिल्लाने लगता है कि मुझे शादी नहीं करना, मुझे इतनी कम उम्र में ही मेरे समाज ने सब कुछ दिया हैं।
मैं निजी-पारिवारिक कारणों से शादी करने का अपना फैसला वापस लेता हूं। और यह भी कहे बिना नहीं रहता कि अब शादी करने का मौका किसी नौजवान को मिलना चाहिए। और मैं कोशिश करूंगा कि शादी धूमधाम से हो। मैं उस नौजवान की शादी की तैयारियों में जी जान से जुटूंगा और भरोसा दिलाता हूं कि उसे सारी खुशियां मिलेंगीं।
लेकिन उसकी जमात के लोगों को यह समझ में नहीं आया कि आखिर उसने ऐसा बेतुका फैसला क्यों किया ? जमात में तो ऐसी परंपरा थी कि आठ-आठ शादियों के बाद भी कोई शादी के लिए मना नहीं करता था। और दस शादियां भी हो जाएं तो रिकार्ड बनाकर खुश होता था। और शादियां करने की ललक ऐसी थी कि पत्नी मरती नहीं थी और दिल किसी और पे आ जाए तो तलाक लेकर भी शादी करने से कोई गुरेज नहीं था।
फिर ऐसा क्या हो गया कि दो शादी के बाद ही पारिवारिक कारण कहकर दूल्हे ने तीसरी शादी से इंकार कर दिया। कहीं ऐसा तो नहीं कि जमात के उपद्रवी लोगों ने भ्रम पैदा कर दिया हो कि शादी की बात तो ठीक है, लेकिन दुल्हन तो किसी दूसरे दूल्हे के गले में वरमाला डालने का मन बना चुकी है। शादी का ख्याल मन से निकाल दो बाबा, वरना जगहंसाई होने से कोई रोक नहीं सकता।
और अगर वरमाला गले में भी डल गई तो भी शादी की उम्र बहुत थोड़ी है। जो सपने देखे हैं, वह तो चकनाचूर हुए बिना नहीं रहेंगे। मतलब कि शादी हो भी गई तो भी हिस्से में बर्बादी के अलावा और कुछ नहीं है। इससे तो अच्छा बिना शादी के ही बर्बादी बेहतर है। लेकिन जमात के लोगों ने ठान लिया कि असली वजह जानकर ही दम लेंगे तो पता चला कि उसकी जमात के मुखिया की मंशा नहीं थी कि बेचारे की तीसरी शादी हो।
मुखिया का संशय था कि 46 की उम्र में इतना मिलने के बाद अगर इसकी तीसरी शादी भी हो गई तो इसकी निगाह मुखिया की कुर्सी पे भी पड़ सकती थी। सो मुखिया ने ही सबसे योग्य दूल्हे की तीसरी शादी में अड़ंगा डाल दिया था। फिर इज्जत बचाने के लिए दूल्हे को कहानी बनानी पड़ी। क्योंकि उसे अपनी योग्यता पर भरोसा था कि कब तक कौन अड़ंगा बनेगा…! पर दूल्हे का मन खिन्न था और दिल टूट चुका था।
यदि हम खंडवा से कांग्रेस से लोकसभा उम्मीदवारी की अघोषित तौर पर दावेदारी करते रहे युवा नेता अरुण सुभाष यादव की बात करें तो शायद इससे अलग नजर नहीं आएगी।
इंदौर में मीडिया से रूबरू होते हुए अरुण यादव ने कहा कि “हमारी कांग्रेस पार्टी की अध्यक्षा सोनिया जी, राहुल जी, प्रदेश के हमारे यशस्वी पूर्व मुख्यमंत्री श्री कमलनाथ जी, दिग्विजय सिंह जी, अजय सिंह जी, तमाम वरिष्ठ नेताओं का आभार व्यक्त करता हूं, मुझे खंडवा लोकसभा से तीन बार चुनाव लड़ने का मौका मेरी पार्टी ने दिया, मुझे 46 साल की उम्र में हर चीज मिली।
कांग्रेस पार्टी से अध्यक्ष बना, केंद्रीय मंत्री बना, सांसद बना दो बार, राष्ट्रीय सचिव बना, कांग्रेस कार्यसमिति सदस्य रहा और क्या चाहिए मुझे पार्टी से।
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मैं आभारी हूँ और कांग्रेस पार्टी का कृतज्ञ हूँ । इस उपचुनाव में हम लोग लगातार पिछले 6 महीने से पार्टी का काम कर रहे हैं और हमारी पूरी कोशिश होगी कि चारों उपचुनाव में कांग्रेस पार्टी विजय हो और मिशन 2023 का आगाज़ भी हम लोग यहीं से करेंगें।
मैंने अपनी उम्मीदवारी मेरे निजी कारणों की वजह से, पारिवारिक कारणों की वजह से वापिस की है, मुझे एवं मेरे परिवार को सदैव अध्यक्ष जी का और सभी वरिष्ठ नेताओं को आशीर्वाद प्राप्त हुआ।
मैंने खुद ने कहा था कि किसी निष्ठावान कांग्रेसी नौजवान को मौका मिलना चाहिए, जो भी पार्टी का अधिकृत उम्मीदवार होगा हम सब पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ काम करेंगे और हमारी कोशिश होगी कि हम पूर्ण बहुमत से चारों सीटें जीतें।”
इससे एक दिन पहल Arun Yadav ने एक शेेर रिट्वीट किया था कि “मुझे भी यकीन था हर शख्स की तरह यही।। मेरी बर्बादी के पीछे हाथ मेरे दुश्मनों का था।।
और पलट कर देखा जो मैंने बदन पर खाकर जख्म।। फेंका हुआ तीर मेरे दोस्तों का था।।” तो एक शेर ट्वीट भी किया था कि “मेरे दुश्मन भी मेरे मुरीद हैं शायद,वक़्त-बेवक्त मेरा नाम लिया करते हैं,मेरी गली से गुजरते हैं छुपा के खंजर,रुबरू होने पर सलाम किया करते हैं।”
अरुण यादव के दुश्मन कौन हैं, जो उनके मुरीद भी हैं और दुश्मन भी। गली से भी गुजर रहे हैं और खंजर भी छिपाए हैं। सामना होता है तो सलाम करते हैं पर शायद मौका मिलते ही खंजर मारने से नहीं चूक रहे। सारी वस्तुस्थिति उन्होंने रिट्वीट वाले शेर में साफ कर भी दी कि जख्म खाने के बाद जब उन्होंने पलटकर देखा तो दोस्त ही दुश्मन निकले और जख्मी करने वाले भी वही थे।
शायद यह दोनों शेर अरुण यादव की दुःख भरी दास्तान की अभिव्यक्ति हैं। और इसके बाद लिखी हुई पटकथा पर कांग्रेस के समर्पित कार्यकर्ता के रूप में वह जो अभिनय कर रहे हैं, वह कम उम्र में स्टारडम हासिल कर चुके एक सुपरस्टार का अभिनय ही है।
फिल्म कॉमन है, पर अभिनय अपना लोहा इस कदर मनवा रहा है कि दर्शक की निगाह प्रिय कलाकार पर टिकी है। हो सकता है कि इस तरह की दुखांत फिल्म के बाद कलाकार का उस निर्माता-निर्देशक से ही मन भर जाए और फिर कोई नया निर्माता-निर्देशक कलाकार के हुनर को सेल्यूट करते हुए उसे राष्ट्रभक्ति और देशहित की पटकथा से ओतप्रोत फिल्म के लिए साइन कर ले।
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या फिर हो सकता है वक्त की मार समझकर सुपरस्टार विपरीत दौर में धैर्य रखकर ही सही खिन्न मन और टूटे दिल से ही अच्छे समय का इंतजार करता रहे। यह आने वाला समय ही बताएगा। हालांकि गुजरे वक्त ने साफ कर दिया है कि स्टार वक्त के साथ पाला बदलने में देर नहीं करते।
खैर फिलहाल तो हम यही समझने की कोशिश करें कि योग्यतम दावेदार अरुण सुभाष यादव का टिकट मिलने से पहले ही चुनाव लड़ने से मोहभंग क्यों हो गया?
और क्या सिंधिया से लेकर सुलोचना-विशाल रावत तक मध्यप्रदेश में इसी तरह के फार्मूले से त्रस्त होकर कांग्रेस नेता पार्टी छोड़ने को मजबूर तो नहीं हुए? यह बात तय है कि अरुण यादव एपीसोड मध्यप्रदेश में होने वाले उपचुनावों में कांग्रेस कार्यकर्ताओं का मनोबल कमजोर करेगा, जिसका फायदा सत्तारूढ़ दल भाजपा को मिलना तय है।