लोकायुक्त और डीजी में क्यों ठनी!

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लोकायुक्त और डीजी में क्यों ठनी!

मप्र लोकायुक्त जस्टिस एनके गुप्ता और विशेष पुलिस स्थापना महानिदेशक कैलाश मकवाना में ऐसा क्या विवाद हुआ कि लोकायुक्त उन्हें हटवाने पर अड़ गये। लोकायुक्त संगठन से छन छनकर बाहर आ रही खबरों पर भरोसा किया जाए तो मकवाना के कुछ पत्रों से लोकायुक्त बेहद नाराज हो गये थे।

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मकवाना ने भ्रष्टाचार की शिकायतों पर जांच की अनुमति न देने पर नाराजगी व्यक्त कर दी थी। एक पत्र में उन्होंने लोकायुक्त संगठन के पुराने और खटारा कम्प्यूटर विशेष पुलिस स्थापना को देने और नये कम्प्यूटर लोकायुक्त संगठन में रखने पर भी एतराज जता दिया था। लगभग 58 वर्ष पुराने जर्जर रिकार्ड को नियमानुसार नष्ट करने की प्रक्रिया तय करने भी मकवाना पत्र लिखते रहे, लेकिन लोकायुक्त जस्टिस एनके गुप्ता निर्णय नहीं ले पाए थे। मकवाना ने ज्वाइन करने के एक माह बाद ही संगठन में सुधार के अनेक सुझाव दिए, लेकिन इन सुझावों पर लोकायुक्त ने 5 महीने में भी कोई निर्णय नहीं लिया। संभवत दोनों के बीच सबसे तीखा मतभेद इस बात को लेकर था कि लोकायुक्त महोदय विशेष पुलिस स्थापना के एसपी, डीएसपी और इंस्पेक्टर को बुलाकर सीधे चर्चा करते थे। इसे लेकर भी मकवाना ने आपत्तिजनक दर्ज की थी। जस्टिस गुप्ता से पहले कभी किसी लोकायुक्त ने डीएसपी और इंस्पेक्टर से कभी सीधे संवाद नहीं किया था।

ईमानदार लोकायुक्त फिर भी विवादों से वास्ता!

मप्र के लोकायुक्त जस्टिस एनके गुप्ता बेहद ईमानदार और सख्त प्रशासक माने जाते हैं, फिर भी विवादों से उनका वास्ता बना हुआ है। उज्जैन की हवाई पट्टी के मामले कई अफसरों के खिलाफ कार्रवाई को लेकर लोकायुक्त और राज्य सरकार के बीच खींचतान पुरानी हो गई है।

कमलनाथ सरकार के समय तत्कालीन आईजी रवि गुप्ता को लोकायुक्त से हटाने को लेकर भी लोकायुक्त का सरकार से टकराव हो चुका है। तब लोकायुक्त को पीछे हटना पड़ा था। तत्कालीन लोकायुक्त पुलिस महानिदेशक संजय राणा से लोकायुक्त के मतभेद इतने बढ़ गये थे कि राणा ने जिन जांच प्रकरणों में खात्मा लगाया था, लोकायुक्त ने उन्हें कोर्ट से वापस बुला लिया। उज्जैन के महाकाल लोक निर्माण को लेकर अफसरों को नोटिस देने से भी राज्य सरकार असहज महसूस कर रही है। इसी बीच महानिदेशक कैलाश मकवाना से हुआ टकराव मीडिया की जबरदस्त सुर्खियां बन गया है। बेहद ईमानदार आईपीएस कैलाश मकवाना की लोकायुक्त से विदाई ने लोकायुक्त संगठन की छवि को तार तार कर दिया है।

“कौन बचा रहा है करेप्शन क्वीन” को

ऐसे समय में जबकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान “नायक” फिल्म के हीरो की तरह भ्रष्ट व नकारा अफसरों के खिलाफ निलम्बन का चाबुक लेकर निकल पड़े हैं, मप्र में “करेप्शन क्वीन” के नाम से कुख्यात महिला अधिकारी को कौन बचा रहा है? इस महिला अफसर की शिकायतों के पुलिंदे सरकार से लेकर लोकायुक्त और ईओडब्ल्यु के साथ साथ अखबारों के दफ्तरों तक में पहुंच चुके हैं।इनके कथित भ्रष्टाचार का वीडियो भी वायरल हो चुका है। यह भी अटकलें लगाई जा रही हैं कि मेडम का भोपाल में एक पेट्रोल पम्प भी खुल चुका है। भोपाल में शानदार बंगला बन रहा है। जबकि मेडम अपने वेतन से अधिक बच्चों की पढ़ाई पर खर्चा करती हैं। मंत्रालय में चर्चा है कि एक वरिष्ठतम आईएएस का संरक्षण मेडम को मिला हुआ है। इस आईएएस के कारण ही मेडम को मनचाही पोस्टिंग मिलती रही है। अब तो लोग इन मेडम को मप्र की सौम्या चौरसिया भी बताने लगे हैं!

पुलिस ने किया यंग साइंटिस्ट का कैरियर बर्बाद!

ग्वालियर पुलिस की अवैध वसूली की शिकायत मुख्यमंत्री हेल्प लाईन में करना एक होटल मालिक को इतना भारी पड़ गया है कि पुलिस ने उसके युवा साइंटिस्ट बेटे को फर्जी केस में पिछले डेढ़ महीने से जेल में डालकर उसका जीवन बर्बाद कर दिया है। ग्वालियर के मयूर होटल के मालिक अशोक खंडेलवाल ने पड़ाव पुलिस की अवैध वसूली से तंग आकर सीएम हेल्प लाईन में शिकायत की थी। पुलिस ने उन्हें बर्बाद करने की धमकी दी थी। पुलिस ने उनके होटल से कुछ लड़कियों को देह व्यापार के आरोप में गिरफ्तार कर होटल मालिक के वैज्ञानिक बेटे डॉक्टर सौरभ खंडेलवाल पर देह व्यापार एक्ट के तहत कार्रवाई कर जेल भेज दिया है। मप्र सरकार ने सौरभ को यंग साइंटिस्ट अवार्ड दिया है। उसके 60 शोध लेख अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रकाशित हुए है। उसकी शोध पुस्तक को छापने अनेक अंतरराष्ट्रीय प्रकाशकों ने प्रस्ताव दिए हैं। खास बात यह है कि सौरभ न तो होटल में काम करता है और न ही होटल का मालिक है फिर भी पुलिस ने उसे आरोपी बनाकर जेल में डाल रखा है।

फूलनदेवी का आदर्श व सभ्य परिवार!

यह खबर बेहद चौंकाने वाली है, लेकिन पूरी तरह सही है। जिस डकैत फूलनदेवी के नाम से मप्र व उप्र की पुलिस थर्राती थी। उस फूलनदेवी का परिवार आज ग्वालियर में आदर्श व सभ्य परिवार की मिसाल है। फूलन के आत्म समर्पण के समय उसका भाई शिवनारायण नाबालिग था। मप्र सरकार ने उसे ग्वालियर में बाल आरक्षक की नौकरी दी थी। पुलिस के अनुशासन में रहकर फूलन के भाई ने अपने परिवार को संस्कारित किया। शिवनारायण के दो बेटे हैं। एक बैंक में और दूसरा दिल्ली की बड़ी कंपनी में अफसर है। शिवनारायण ने घर के ड्राइंग रूम में फूलनदेवी का फोटो लगा रहा है। लेकिन इसके अलावा कोई नहीं जानता कि ग्वालियर की पचासा लाईन के इस दो मंजिला घर में फूलनदेवी का परिवार रहता है। अधिकांश पड़ोसी इस परिवार को एक आदर्श व सभ्य परिवार के रूप में ही जानते हैं।

मंत्रालय से इंजीनियर के कारनामों की नस्ती गायब

मंत्रालय में लोक निर्माण विभाग से भ्रष्टाचार की जांच से जुड़ी 261 पेज की एक फाइल गायब हो गई है। फाइल विभाग के उन इंजीनियरों के कारनामों से जुड़ी है, जो भ्रष्टाचार के लिए बदनाम नहीं बल्कि कुख्यात हैं। इस नस्ती के गायब होने की कहानी भी अजब है। पहले इंजीनियरों के 3 करीबी लोगों ने सूचना के अधिकार के तहत उक्त नस्ती की छायाप्रति मांगी। विभाग ने आरटीआई नियमों को शिथिल करते हुए उन्हें नस्ती की छायाप्रति दे दी। इसके बाद एक कथित भ्रष्ट इंजीनियर ने खुद आरटीआई के जरिए जांच की नस्ती मांगी है, तो विभाग ने बताया कि नस्ती गायब है। अब विभाग के अधिकारी एफआईआर कराने की तैयारी में है। यानी सरकारी रिकॉर्ड में नस्ती गायब हो जाएगी और इंजीनियरों के कारनामे छिप जाएंगे। मजेदार बात यह है कि आरटीआई लगाने वाला इंजीनियर ईएनसी बनने की तिकड़म भिड़ा रहा है।

*और अंत में….!*

अगले साल के शुरूआत में सेवानिवृत्त होने वाले अपर मुख्य सचिव अशोक शाह रिटायरमेंट के पहले मीडिया से खासे नाराज हैं। उन्होंने पत्रकारों से दूरी बना ली है। उनके करीबी बताते हैं कि हाल ही में अशोक शाह ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की मौजूदगी में आयोजित एक कार्यक्रम में महिलाओं को लेकर जो आंकड़ा पेश किया था, वह तथ्यों पर आधारित था, लेकिन इसके बाद भी भाजपा नेताओं के इशारे पर मीडिया ने उन्हें जमकर ट्रोल किया। इससे शाह की जमकर किरकिरी हो गई है। दफ्तर में मीटिंग की बोलकर अंदर बैठकर किताबें पढ़ने के लिए जाने जाने वाले इस अफसर की पीड़ा यह है कि सब कुछ जानते हुए मीडिया ने उनका साथ नहीं दिया, उल्टे उनकी छवि खराब की। इसलिए उन्होंने तय किया है कि वे अब पत्रकारों से नहीं मिलेंगे।