क्या ‘ खेला ‘ कर पायेगा लखीमपुर- खीरी कांड ?

1115

सीतापुर के पीएसी परिसर में तीन दिन से नजरबंद कांग्रेस की शीर्ष नेता श्रीमती प्रियंका बाड्रा क्या उत्तर प्रदेश की राजनीति में ‘ खेला ‘ कर पाएंगी ? उत्तर प्रदेश के लखीमपुर -खीरी काण्ड के बाद ये आशा व्यक्त की जाने लगी है कि लखीमपुर खीरी में हुयी नृशंस वारदात शायद उत्तर प्रदेश की राजनीति में ‘ गेम चेंजर ‘ का काम कर जाये |

क्योंकि इस वारदात के बाद जिस तरह से कांग्रेस की श्रीमती प्रियंका बाड्रा ने गांधीगीरी की है वो पुराने परिदृश्य की याद दिलाती है |

उत्तर प्रदेश में राजनीति का खेल बदलने के लिए बहुत दिनों से जोड़-तोड़ चल रही है | उत्तर प्रदेश बीते तीन दशकों से

भाजपा,सपा,और बसपा के हाथों का खिलौना बना हुआ है | कांग्रेस उत्तर प्रदेश की राजनीति से अप्रासंगिक हो चुकी है | उत्तर प्रदेश की राजनीति से उखड़ने के बाद ही कांग्रेस पूरे देश में उखड़ गयी | लगातार दो आम चुनावों में देश की बागडोर भाजपा के हाथों में है |

भाजपा के सु-शासन [?] से देश के अधिकाँश राज्य आजिज आ चुके हैं | देश के एक दर्जन राज्यों में भाजपा की सत्ता है | कहीं उसने जनादेश के जरिये सत्ता हासिल की है तो, कहीं जोड़तोड़ से | बावजूद इसके भाजपा शासित राज्यों में राम -राज की सुखानुभूति नहीं हो पा रही है |

उत्तर प्रदेश भाजपा शासन का सबसे बड़ा प्रतीक है | भाजपा को सत्ता में वापस लेन के लिए रामबाण का काम करने वाला निर्माणाधीन राम मंदिर भी यहीं है और तीन तलाक पर रोक से लोगों को लाभ पहुँचाने वाली सबसे बड़ी आबादी भी यहीं है | लेकिन यहीं लखीमपुर -खीरी भी यहीं हो रहा है और यहीं व्यापारी मारे जा रहे हैं |

सु – शासन की पलट कुशासन उत्तर प्रदेश में ही देखी जा सकती है | ये महज संयोग नहीं है कि भाजपा शासित हरियाणा में कूटने के बाद किसान उत्तर प्रदेश में कुचले और मारे गए | किसान आंदोलन के प्रति भाजपा का रुख जग जाहिर है | पूरा एक साल हो चुका है किन्तु भाजपा ने किसानों की कोई मंग नहीं मानी उलटे किसानों को जहाँ मौका मिला ठोका है |

लखीमपुर- खीरी की घटना के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने जिस तरह से कांग्रेस की श्रीमती प्रियंका गांधी और दूसरे नेताओं को नजरबन्द किया उससे लोगों को लगने लगा कि कांग्रेस इस वारदात के बाद उत्तर प्रदेश में राजनीति का खेल बदलने की हैसियत में आ गयी है | धरातल पर ऐसा कुछ नहीं है |

प्रियंका बाड्रा में स्वर्गीय इंदिरा गांधी की छवि देखने वाले बड़े भोले हैं , फिर चाहे वे प्रो पुरषोत्तम अग्रवाल जैसे विचारक हों या देवेंद्र आर्य जैसे जनकवि | उत्तर प्रदेश का खेल बंगाल के खेल से बिलकुल अलहदा है | बंगाल की ममता और उत्तर प्रदेश की प्रियंका में बहुत अंतर् है | खेल की तस्वीर बदलने के लिए जो ममता बनर्जी के पास था वो प्रियंका के पास नहीं है |

उत्तर प्रदेश का राजनीतिक परिदृश्य भीतर से बड़ा भयावह है | राज्य की सत्ता का सुख भोग चुके सपा,बसपा और भाजपा ने दोबारा सत्ता में आने के लिए जातिवाद के जहर कि खेती जिस तेजी से की है उसके मुकाबले कांग्रेस के पास कुछ नहीं है | कांग्रेस के पास इस समय न दलित वोट बैंक है और न ब्राम्हण वोट बैंक | कांग्रेस के पास ले-देकर अल्प संख्यक वोट हैं लेकिन इन वोटों में भी भाजपा के लिए सेंध लगाने वाले औबेसी जैसे नेता उपस्थित हैं |

भाजपा ने हर जाति की राजनीतिक पार्टी अपने फायदे के लिए ज़िंदा कर दी है | यहां तक कि पूर्व दस्यु और पूर्व सांसद रही फूलन देवी की जाति की पार्टी भी इस समय उत्तर प्रदेश में मौजूद है | ऐसे में कांग्रेस की प्रियंका कैसे गेम चेंजर बन सकती हैं ?

राजनीति में आशावादी तबके का मानना है कि जब बंगाल में ‘ खेला ‘ हो सकता है तो उत्तर प्रदेश में क्यों नहीं हो सकता ? सवाल जायज है ,लेकिन इसका उत्तर दूर-दूर तक किसी के पास नहीं है | प्रियंका के पास भी नहीं है शायद | लेकिन प्रियंका खेल बदलने की कोशिश में जुटी हुई हैं | प्रियंका के आशावाद की जड़ में उनका आत्मविश्वास भर है | पिछले दो-तीन साल से वे उत्तर प्रदेश के बाहर नहीं निकलीं हैं | जमीनी स्तर पर उन्होंने कांग्रेस को खड़ा करने के लिए बहुत श्रम किया है , लेकिन उसके नतीजे न पंचायत चुनावों में सामने आये हैं और न अन्य किसी रूप में |

राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले जानते हैं कि उत्तर प्रदेश का खेल बदले बिना कांग्रेस हो भाजपा केंद्र की सत्ता में वापसी नहीं कर सकती | 2024 के आम चुनावों के लिए तो उत्तर प्रदेश की परीक्षा पास करना सभी के लिए अनिवार्य है | कांग्रेस की परेशानी ये है कि आज उसके पास प्रमोद तिवारी जैसे नेता तो हैं लेकिन नारायण दत्त तिवारी जैसा एक भी चेहरा नहीं है जो उत्तर प्रदेश की जनता कि उम्मीदों का आइना बन जाये | प्रियंका स्वयं नारायण दत्त तिवारी बनना नहीं चाहतीं |वे अपने आपको यदि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में कांग्रेस कि और से मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर दें तो लखीमपुर खीरी जैसी घटनाएं गेम चेंज करने के काम आ सकतीं हैं |

उत्तर प्रदेश में देश के किसान आंदोलन का काफी असर है और ये गुस्सा कांग्रेस के काम आ सकता है | कांग्रेस के अलावा और कोई राजनितिक दल नहीं है जो किसानों के गुस्से को राजनीति का खेल बदलने में इस्तेमाल कर सके | कांग्रेस ने पंजाब में नेतृत्व परिवर्तन कर वहां किसानों पर आंदोलन के दौरान लादे गए मुकदमे वापस लेने का ऐलान कर एक कोशिश की है ,लेकिन इसका असर पंजाब से उत्तर प्रदेश तक आने में वक्त लगेगा |

कांग्रेस को पहले हवा का रुख बदलना होगा,राजनीति का खेल बाद में बदला जा सकेगा | उत्तर प्रदेश को एक गेम चेंजर चाहिए | बहन मायावती और भाई अखिलेश को प्रदेश की जनता आजमा चुकी है | योगी आदित्यनाथ का प्रदर्शन जनता के सामने हैं, ऐसे में अकेली प्रियंका ही जनता के लिए नयी हैं | कांग्रेस यदि अन्य गैर भाजपा दलों को साथ लेकर चलने में कामयाब हो जाये तो गेम चेंजर भी बन सकती है ,अन्यथा नहीं |दुर्भाग्य से उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन के नेताओं ने भी फौरी तौर पर दलालों वाली भूमिका निभाई है ,जो प्रियंका के काम आ सकती है .