क्या महाराज लगा पाएंगे अनूप मिश्रा की ‘नैया पार’….

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Dinesh Nigam Tyagi

चंबल-ग्वालियर अंचल में महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया और भाजपा में लूप लाइन में चल रहे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के भान्जे अनूप मिश्रा को एक दूसरे की जरूरत है। भाजपा में आने के बाद सिंधिया अपनों को मंत्री बनवाने के बाद खुद भी केंद्र में मंत्री बन गए। अब उनके सामने भाजपा के अंदर अपनी जमीन तैयार करने की चुनौती है। वजह है भाजपा में उनके विरोधी और पहले से स्थापित नेता। अनूप मिश्रा को भी मुख्य धारा में वापसी के लिए सिंधिया जैसे ताकतवर नेता की जरूरत है। दोनों ने इस दिशा में काम शुरू कर दिया है। सिंधिया हाल के ग्वालियर दौरे के दौरान उपेक्षित ब्राह्मण नेताओं को साधते नजर आए। अनूप यहां के कद्दावर नेता माने जाते हैं। उन्होंने अपने कालेज में ब्राह्मण सम्मेलन आयोजित किया। सिंधिया वहां मुख्य अतिथि बनकर पहुंच गए। साफ है कि वे अनूप को ताकत देना चाहते हैं और उनके जरिए खुद भी ताकतवर होना चाहते हैं। सिंधिया की नजर अंचल के ब्राह्मण मतदाताओं पर भी है। इसीलिए इस बार वे अंचल के एक और ब्राह्मण चेहरे डॉ केशव मिश्रा की सामाजिक संस्था के कार्यक्रम में पहुंचे और एक तीर से कई निशाने साधे। इस तरह महाराज भाजपा के स्थापित नेताओं के इतर अपनी ताकत बढ़ा रहे हैं।

आखिर, क्यों सब पर भारी हैं ये कलेक्टर….
– लोकतंत्र में जनप्रतिनिधि ताकतवर या कोई अफसर, प्रदेश के छतरपुर जिले के संदर्भ में यह सवाल उठने लगे हैं। वजह, कलेक्टर शीलेंद्र सिंह एवं जन प्रतिनिधियों के बीच विवादों की श्रंखला है। कमलनाथ मुख्यमंत्री थे तो कलेक्टर की कांग्रेस विधायकों के साथ पटरी नहीं बैठती थी। कांग्रेस के लगभग सभी विधायकों ने कमलनाथ से कलेक्टर शीलेंद्र सिंह को हटाने की मांग की थी लेकिन वे टस से मस नहीं हुए थे। अब भाजपा सत्ता में है और पार्टी विधायक राजेश प्रजापति की कलेक्टर से ठनी है। विधायक द्वारा बताया काम करना, न करना अलग विषय है लेकिन कलेक्टर उनसे मिलने से ही इंकार कर दे, यह ताज्जुब वाली बात है। मामला इतना आगे बढ़ा कि विधायक को कलेक्टर बंगले के सामने धरने पर बैठ जाना पड़ा। विधायक प्रजापति ने छतरपुर से क्षेत्रीय सांसद एवं प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा तक से बात की। घंटों इंतजार के बाद कलेक्टर बाहर निकले और पूछने लगे बताईए आपका क्या काम है? क्या किसी विधायक से इसी तरह काम पूछा जाता है? ऐसे में यह सवाल पहेली बना हुआ है कि आखिर, कलेक्टर शीलेंद्र सिंह सब पर भारी क्यों हैं? इसके पीछे उनकी ईमानदारी है, काम करने की शैली या कारण कुछ और ही है?

मुरलीधर जी, मुरली की यह कैसी तान?….
– संघ की पृष्ठभूमि से भाजपा में आए मुरलीधर राव ऐसी तान छेड़ेंगे कि अपने ही चित हो जाएंगे, किसी ने सोचा नहीं होगा, पर उन्होंने ऐसा कर दिखाया। कभी कहा जाता था कि भाजपा ब्राह्मणों एवं बनियों की पार्टी है, लेकिन पार्टी का कोई नेता यह कहता नहीं था। यह हिम्मत दिखाई मुरलीधर ने। बाकायदा पत्रकार वार्ता में उन्होंने कहा कि भाजपा की एक जेब में ब्राह्मण रहते हैं और एक जेब में बनिया। उनके इस बयान पर बवाल मच गया। कांग्रेस ने तो उन्हें आड़े हाथ लिया ही, भाजपा के एक ब्राह्मण नेता और कवि सत्यनारायण सत्तन ने भी ‘मुरली की तान’ शीर्षक से एक कविता लिखकर मुरलीधर को भला-बुरा कह डाला। सत्तन ने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को भी नहीं बख्शा। ये वही मुरलीधर हैं, जिन्होंने कुछ समय पहले भाजपा की एक बैठक में विधायकों को नालायक कह दिया था। उनका कहना था कि जिन्हें बार-बार पार्टी टिकट देती है और वे विधायक चुने जा रहे है। इसके बाद मंत्री, मुख्यमंत्री बनने के लिए प्रयास करते हैं और असंतुष्ट होते हैं तो उनसे बड़ा नालायक कोई नहीं। इस बयान पर भी बवाल मचा था। भाजपा में कुछ नेता उन्हें पार्टी के लिए बोझ तक कहने लगे हैं। इसलिए मुरलीधर को अपनी मुरली के सुर बदलना चाहिए।

यह बयान देकर फिर फंस गए कमलनाथ….
– उप चुनाव प्रचार अभियान के दौरान कमलनाथ निक्कर को लेकर दिए बयान के कारण उलझे थे, अब पृथ्वीपुर एवं जोबट में भाजपा की जीत को लेकर की गई टिप्पणी की वजह से फंस गए। रैगांव में जाकर उन्होंने कह दिया कि पृथ्वीपुर और जोबट में भाजपा जीती नहीं है, बल्कि जीत लूट ली है। भला कमलनाथ जैसे बजुर्ग, तजुर्बेकार और वरिष्ठ नेता इस तरह के बयान कैसे दे सकता है। नतीजा, निक्कर मसले पर भाजपा जिस तरह हमलावर थी, ‘जीत लूटने’ को भी उसने कमलनाथ के खिलाफ मुद्दा बना डाला। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि कमलनाथ ने ऐसा बोलकर मतदाताओं, लोकतंत्र और पूरी चुनाव प्रक्रिया का ही मजाक उड़ाया है। निक्कर वाले मामले में तो कुछ कांगे्रस नेता अपने ढंग से बचाव करते नजर आ रहे थे लेकिन इस मसले पर समूची कांग्रेस चुप्पी साध कर बैठ गई। इसे कैसे सही ठहराया जा सकता है कि जहां आप जीते वहां मतदाताओं ने ठीक मतदान किया और जहां हारे वहां जीत लूट ली गई। क्या कमलनाथ को तोल-मोल कर नहीं बोलना चाहिए। उनके बोलों के कारण ही ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस से बाहर हैं और कमलनाथ सत्ता से बेदखल। उनके एक वाक्य से नाराज होकर सिंधिया ने पार्टी छोड़ दी थी और अब वे सत्ता में हैं।

यह हर खांटी भाजपाई की पीड़ा तो नहीं….
– भाजपा के खांटी भाजपाई बिजेंद्र सिंह सिसौदिया ने एक ट्वीट के जरिए हर उस पार्टी नेता-कार्यकर्ता की पीड़ा को आवाज दे दी, जो बाहर से आयातित नेताओं के कारण खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। सिसोदिया ने ट्वीट में लिखा, ‘हमारे घर में बहुत अनजान चेहरे दिखाई देने लगे हैं, कई ने हमारी बनाई दीवार पर अपनी नेम प्लेट भी लगा दी। मकान की नींव से छत तक बनाने में जिन्होंने जीवन लगा दिया, वे चेहरे इस भीड़ में नहीं हैं। कुछ हैं, वे खुद को बचाने में शक्ति लगा रहे हैं।’ सिसोदिया के ट्वीट पर आर्इं प्रतिक्रियाएं भाजपा के लिए गंभीर संकेत हैं। एक ने लिखा, ‘बहुत दर्द होता है भाई साहब गांव-गांव, बस्ती-बस्ती साइकिल पर भुना चना, मुरमुरे लेकर निकलते थे, आज हम गुमनाम हैं। ठाकरे जी भी कई बार व्यथित होकर कहते थे, यह राजनीति हमारे जैसे लोगों के लिए नहीं है। अब तो सलाह मशविरे के लायक भी नहीं रहे हम।’ एक अन्य ने लिखा, ‘वक्त का पांसा है आज घूम गया, बस बातों में श्यामा प्रसाद मुखर्जी और दीनदयाल जी, बाकी समय तो गैरों को मनाने में लुट गया।’ अगली टिप्पणी, ‘कांग्रेस से आयात किए ही हमेशा उम्मीदवार और पदाधिकारी रहेंगे तो दीनदयाल जी जिनकी धड़कनों में हैं, वे कहां जाएंगे।’ टिप्पणियों से साफ है कि भाजपा का खांटी कार्यकर्ता कैसी घुटन में है?