लोकसभा उपाध्यक्ष के चुनाव को लेकर NDA सरकार और प्रतिपक्ष की रार बढ़ेगी या निकलेगा सर्व सम्मति का कोई फ़ार्मूला?

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लोकसभा उपाध्यक्ष के चुनाव को लेकर NDA सरकार और प्रतिपक्ष की रार बढ़ेगी या निकलेगा सर्व सम्मति का कोई फ़ार्मूला?

गोपेन्द्र नाथ भट्ट की रिपोर्ट 

पिछले गुरुवार की रात और शुक्रवार को तड़के राष्ट्रीय राजधानी में हुई मूसलाधार वर्षा से सब ओर झील बनी नई दिल्ली शनिवार को पूरी रात टी-20 विश्वकप में 17 वर्षों बाद भारत को मिली ऐतिहासिक विजय के जश्न में डूबी रही । भारत ने ज्योहीं टी-20 विश्वकप के फाइनल में दक्षिणी अफ्रीका की पूरे टूर्नामेंट में भारत की तरह ही अविजित रही मजबूत टीम को हरा दिया तों सर्व प्रथम प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने तत्काल टीवी पर आ कर भारतीय टीम को एक और इतिहास रचने के लिए बधाई दी। लगातार दूसरी बार लोकसभा अध्यक्ष बने ओम बिरला भी शनिवार को पूरे दिन अपने अकबर रॉड स्थित निवास पर सैकड़ों लोगों को बधाई लेने के बाद रात को आई इस खुश खबर से सुकून भरे अंदाज में दिखें। रविवार को लोकसभा चुनावों की आचार संहिता के कारण आकाशवाणी पर अब तक बंद रहा प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी का पसंदीदा मन की बात कार्यक्रम कुछ महीनों के अन्तराल के बाद फिर से गुंजायमान हुआ और भाजपा नेताओं ने उसे अपने कार्यकर्ताओं और आम जनता के साथ सुना।

 

इन सभी घटनाक्रमों के मध्य सोमवार को 18वीं लोकसभा के प्रथम सत्र और राज्य सभा की बैठके शनिवार एवं रविवार के अवकाशों के बाद पुनः शुरू होंगी। वैसे इस बार 18वीं लोकसभा की शुरुआत ही असहमति और मतभेद के साथ हुई है। एनडीए सरकार चाहती थी कि विपक्षी इंडिया गठबंधन लोकसभा स्पीकर के लिए ओम बिरला के नाम का समर्थन करे ताकि परम्परा के अनुसार अध्यक्ष का चुनाव सर्वसम्मति से हो सके,लेकिन इस पर पक्ष और प्रतिपक्ष की सहमति नहीं बन पाई। इंडिया ब्लॉक ने कांग्रेस के सबसे अनुभवी सांसद कोडिकुन्निल सुरेश को स्पीकर पद के लिए आगे किया। के. सुरेश केरल से आठ बार के सांसद रहे हैं और दलित समुदाय से आते हैं, वहीं ओम बिरला राजस्थान के कोटा लोकसभा क्षेत्र से तीसरी बार सांसद चुन कर आए हैं। हालांकि अध्यक्ष के चुनाव के लिए प्रतिपक्ष ने सदन में मत विभाजन की माँग नहीं रखी और पिछलें बुधवार को ओम बिरला स्पीकर पद के लिए ध्वनि मत से चुन लिए गए । ओम बिरला स्पीकर चुन लिए जाएंगे, यह सभी को पहले से ही पता था क्योंकि संख्या बल एनडीए के पास था । अध्यक्ष चुने जाने पर उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने भी बधाई दी और दोनों नेता केन्द्रीय संसदीय मंत्री किरण रिजूजू के साथ बिरला को अध्यक्ष के आसन तक बिठाने की स्वस्थ परम्परा का निर्वहन करने के लिए भी एक साथ भी गये।

 

बताते है कि लोकसभा अध्यक्ष के सर्वसम्मति से चुनाव पर सहमति बनाने के सम्बन्ध में विपक्ष की ओर से कांग्रेस नेता केसी वेणुगोपाल और डीएमके के टीआर बालू की मुलाक़ात केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, गृह मंत्री अमित शाह और स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा से हुई थी ताकि स्पीकर पद के लिए दोनों ही खेमों के बीच सहमति बनाई जा सके। कांग्रेस के संगठन मंत्री वेणुगोपाल ने सरकार पर आरोप लगाया कि वो डिप्टी स्पीकर का पद विपक्ष को देने की संसदीय परंपरा को मानने से इंकार कर रही है। इसी कारण उन्हें सांकेतिक विरोध के लिए बिरला के समक्ष के. सुरेश को खड़ा करना पड़ा।

 

सदन में बहुमत साबित करने या दलबदल विरोधी क़ानून लागू होने की स्थिति में स्पीकर की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होती है। सदन में विवाद होने पर अध्यक्ष का फ़ैसला अंतिम होता है।

लोकसभा के प्रमुख के रूप में, स्पीकर सदन का प्रमुख और मुख्य प्रवक्ता होता है। स्पीकर को सदन में व्यवस्था और मर्यादा बनाए रखना होता है और वह सदन की कार्यवाही स्थगित या निलंबित कर सकता है। स्पीकर को भारत के संविधान के संसद से जुड़े प्रावधानों, लोकसभा की प्रक्रिया और संचालन करने के नियमों की अंतिम व्याख्या करने वाला माना जाता है। यानी सदन के संदर्भ में उसकी जो भी व्याख्या होगी वही मान्य होगी। स्पीकर किसी सदस्य की अयोग्यता, संविधान के दसवीं अनुसूची के प्रावधानों के तहत दलबदल के आधार पर किसी सांसद की सदस्यता ख़त्म करने की शक्ति भी अध्यक्ष के पास ही होती है। हालाँकि, 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने एक फ़ैसला सुनाया था कि स्पीकर का फ़ैसला न्यायिक समीक्षा के अधीन होता है।

 

लोकसभा अध्यक्ष के रूप में ओम बिरला के निर्वाचन के बाद अब सबकी निगाहें लोकसभा उपाध्यक्ष के चुनाव पर टिकी हुई है। कांग्रेस डिप्टी स्पीकर का पद विपक्ष को देने की संसदीय परंपरा का हवाला दे रही है, वही भाजपा पर उनके एनडीए गठबंधन की सरकार के प्रमुख सहयोगी दलों टीडीपी और जनता दल का अन्दरूनी दवाब बताया जा रहा है। हालाँकि जाहिर तौर पर दोनों दल उपाध्यक्ष पद के लिए अपने दावें से इंकार कर रहें हैं। अभी यह भी तय नहीं हुआ है कि डिप्टी स्पीकर का चुनाव कब होगा ? संसद का पहला सत्र तीन जुलाई को राष्ट्रपति के अभिभाषण पर हुई चर्चा पर प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी के जवाब के साथ ही पूरा हो जाने की संभावना है। इस समय संसद के दोनों सदनों में नीट परीक्षाओं में पेपर लीक संबंधी प्रकरण में केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान के इस्तीफ़े की माँग पर प्रतिपक्ष हमलावर है। इसलिए सरकार वर्तमान सत्र को शायद ही आगे बढ़ायेंगी। संसद का एक और सत्र अगले माह होने की संभावना है जिसमें केन्द्र सरकार अपना पूर्णकालीन बजट पेश करेगी। फिर उस पर भी दोनों सदनों में चर्चा होगी । अतः आगामी सत्र में भी लोकसभा उपाध्यक्ष का चुनाव होने के आसार नहीं दिख रहे हैं।

 

ऐसे में यह सवाल उठ रहा है कि क्या इस बार भी लोकसभा में डिप्टी स्पीकर का पद ख़ाली रहेगा अथवा इसके चुनाव में देरी हो सकती हैं।

यदि आप लोकसभा की वेबसाइट पर जाएंगे तो लिखा मिलेंगा कि ‘17वीं लोकसभा में डिप्टी स्पीकर का पद मई 2019 से ख़ाली है।’

स्वतंत्र भारत के इतिहास में 17वीं लोकसभा पहली लोकसभा थी, जब डिप्टी स्पीकर का पद पूरे पाँच साल ख़ाली रहा। संविधान का अनुच्छेद 93 कहता है कि सदन के दो सदस्यों का चयन स्पीकर और डिप्टी स्पीकर के रूप में होना संविधान के अनुसार अनिवार्य है। इस हिसाब से डिप्टी स्पीकर का चयन भी होना ही चाहिए।

1969 तक कांग्रेस के कार्यकाल में भी कांग्रेस ये दोनों पद अपने पास ही रखती थी लेकिन साल 1969 में यह प्रचलन बदल गया। कांग्रेस ने ऑल पार्टी हिल लीडर्स के नेता गिलबर्ट जी स्वेल, जो उस समय शिलॉन्ग से सांसद थे, उन्हें ये पद दिया था। संविधान के अनुच्छेद 95 के अनुसार, डिप्टी स्पीकर, स्पीकर की अनुपस्थिति में उनकी ज़िम्मेदारियों का निर्वहन करता है। अगर डिप्टी स्पीकर का पद ख़ाली रहा तो उस स्थिति में राष्ट्रपति लोकसभा के एक सांसद को ये काम करने के लिए चुनते हैं। अनुच्छेद 94 के मुताबिक़ अगर स्पीकर अपने पद से इस्तीफ़ा देते हैं तो इसे इस्तीफ़े में उन्हें डिप्टी स्पीकर को संबोधित करना होता है।

 

बताते है कि 1949 में संविधान सभा में इसे लेकर बहस हुई थी। डॉ. भीमराव आंबेडकर का कहना था कि स्पीकर का पद डिप्टी स्पीकर के पद से बड़ा होता है, ऐसे में उन्हें डिप्टी स्पीकर को संबोधित नहीं करना चाहिए बल्कि राष्ट्रपति को संबोधित करना चाहिए,लेकिन ये तर्क दिया गया कि चूंकि स्पीकर और डिप्टी स्पीकर का चयन सदन के सदस्य करते हैं। इसलिए इस पद की जवाबदेही सदस्यों के प्रति है। चूंकि सदन के हर सदस्य को इस्तीफ़े में संबोधित नहीं किया जा सकता ऐसे में स्पीकर और डिप्टी स्पीकर को ही संबोधित करना चाहिए क्योंकि वो सदन का ही प्रतिनिधित्व करते हैं । इसके साथ तय हुआ कि अगर स्पीकर इस्तीफ़ा देते हैं तो डिप्टी स्पीकर को संबोधित करेंगे और अगर डिप्टी स्पीकर के इस्तीफ़े की स्थिति आती है तो वो स्पीकर को संबोधित किया जाएगा।

 

इंडिया ब्लॉक के उम्मीदवार कोडिकुन्निल सुरेश ने अध्यक्ष के चुनाव के समय कहा था कि, “यह जीत या हार का सवाल नहीं है, बल्कि यह एक परंपरा है कि स्पीकर सत्ता पक्ष से होगा और उपाध्यक्ष विपक्ष से और अब जब हमें विपक्ष के रूप में पहचान दी गई है तो डिप्टी स्पीकर पद हमारा अधिकार है। विपक्ष ने डिप्टी स्पीकर पद के बदले एनडीए के लोकसभा अध्यक्ष उम्मीदवार को समर्थन देने की इच्छा जताई थी। अतीत में भी डिप्टी स्पीकर का पद ज्यादातर विपक्ष के सदस्य को ही मिला है। 16वीं लोकसभा में यह पद एआईएडीएमके को मिला था और 17वीं लोकसभा में यह पद पूरे कार्यकाल के लिए ख़ाली रहा। ये भारतीय संसद के इतिहास में एक अप्रत्याशित बात रही।

 

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि इस बार भी भाजपा के नेतृत्व वाला एनडीए विपक्ष को डिप्टी स्पीकर का पद नहीं देने के अपने फ़ैसले पर अड़ा हुआ है। 18वीं लोकसभा की शुरुआत के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सर्वसम्मति और संसदीय बहस की अपील करना स्वस्थ लोकतंत्र का संकेत तो देता है लेकिन ये तभी होगा जब बयान व्यावहारिकता में भी बदले।

केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह जो मोदी 3.0 सरकार के प्रमुख वार्ताकार के रूप में उभरे हैं, उन्होंने स्पीकर पद के लिए भी विपक्षी नेताओं से संपर्क किया था और अब वे उपाध्यक्ष पद पर भी बात कर रहे है। ये बातचीत दिखाती है कि केंद्र सरकार अहम फ़ैसलों पर विपक्ष से राय मश्वरा कर रही है और ये बातचीत अक्सर होनी चाहिए। बताते हैकि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अयोध्या से चुने गये सांसद को लोकसभा का उपाध्यक्ष बनाने का सुझाव दिया हैं। 2024 में अयोध्या जिले की फैजाबाद सीट पर सपा के अवधेश प्रसाद ने जीत दर्ज की है। इस सीट पर राम मंदिर के भव्य मंदिर की स्थापना के बाद भी भाजपा की हार से हर कोई हैरान है।

 

18वीं लोकसभा की शुरुआत देखकर ये तो लग रहा है कि इस सत्र में पक्ष प्रतिपक्ष के मध्य तीखी बहस और ज़्यादा दिखेगी। साथ ही कई मुद्दों पर असहमतियां भी दिखेंगी और सभी पार्टियों को एक आम सहमति पर लाने की कोशिशें भी की जायेगी।यानी वो होता दिखेगा जो बीते दो लोकसभाओ में नहीं दिखा या बहुत कम दिखा है। ऐसा इसलिए है कि इस बार भाजपा अपने दम पर सरकार नहीं बना पाई है और उसे अपने एनडीए सहयोगियों के साथ मिल कर गठबंधन की सरकार बनाने को मजबूर होना पड़ा है।

देखना है आने वाले दिनों में लोकसभा उपाधक्ष के चुनाव को लेकर भाजपानीत एनडीए सरकार और प्रतिपक्ष की रार किस सीमा तक बढ़ेगी अथवा सर्व सम्मति का कोई फ़ार्मूला सामने आएगा?