
Withdrawal of Nomination Through Fraudulent Means : इंदौर लोकसभा चुनाव में फर्जी तरीके से नामांकन वापसी का मामला हाईकोर्ट पहुंचा!
Indore : लोकसभा चुनाव प्रक्रिया के दौरान जिस तरह से उम्मीदवारों के नामांकन वापस करवाए गए या वापस लिए गए वह स्वतंत्र और निष्पक्ष लोकतंत्र के लिए उचित नहीं हैं। इस आधार के साथ लोकसभा चुनाव के निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में नामांकन प्रस्तुत करने वाले दिलीप ठक्कर ने हाई कोर्ट के समक्ष राज्यसभा सदस्य एवं सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता पूर्व अतिरिक्त सॉलीसिटर जनरल ऑफ़ इंडिया विवेक तनखा एवं मध्य प्रदेश के पूर्व उप-महाधिवक्ता अंशुमान श्रीवास्तव के माध्यम से एक याचिका प्रस्तुत की गई है।
इसमें बताया गया है कि दिलीप ठक्कर ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में नियम के अनुसार 25 अप्रैल को अपना नामांकन प्रस्तुत किया था। जांच के उपरांत वैध पाया गया। इसके बाद 29 अप्रैल को नामांकन वापस लेने की अंतिम तिथि को किसी अनाधिकृत व्यक्ति ने बिना उनकी सहमति और जानकारी दिए निर्वाचन अधिकारी के समक्ष प्रारूप 5 पर उनके कूटरचित एवं फर्जी हस्ताक्षर कर उनका नामांकन वापस ले लिया। जबकि, न तो दिलीप ठक्कर स्वयं निर्वाचन अधिकारी के समक्ष नामांकन वापस लेने के लिए उपस्थित हुए और न उन्होंने किसी अन्य एजेंट अथवा प्रस्तावक को अधिकृत किया। इसके उपरांत भी निर्वाचन अधिकारी ने बिना प्रारूप 5 की जांच किए एवं नामांकन वापस लेने आए व्यक्ति की पहचान सुनिश्चित किए बिना दिलीप ठक्कर को नामांकन निरस्त कर दिया।
दिलीप ठक्कर को जानकारी मिलने पर उनके द्वारा तत्काल निर्वाचन कार्यालय के दिनांक 29 अप्रैल के सीसीटीवी फुटेज सम्भाल कर रखे जाने के लिए तथा कूटरचित हस्ताक्षर के संबंध में एफआईआर पंजीबद्ध करने के लिए निर्वाचन अधिकारी और पुलिस कमिश्नर को शिकायत प्रस्तुत की। इसके बाद केंद्रीय एवं प्रदेश चुनाव आयोग को अपने अधिवक्ता अंशुमान श्रीवास्तव के माध्यम से सूचना पत्र प्रेषित कर पूरे मामले पर त्वरित संज्ञान लेकर उचित कार्यवाही की मांग की गई। कार्यवाही नहीं होने पर हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ समक्ष अधिवक्ता अंशुमान श्रीवास्तव द्वारा याचिका प्रस्तुत की गई।
जिस पर याचिकाकर्ता की और से राज्यसभा सदस्य और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक तनखा ने जस्टिस प्रणय वर्मा के समक्ष पूरा घटनाक्रम बताते हुए लोकतांत्रिक व्यवस्था के विरुद्ध हुए अवैधानिक कृत्य के लिए 48 घंटे में जांच की मांग की है। तनखा ने कोर्ट के समक्ष फ़र्ज़ी एवं कूटरचित प्रारूप 5 भी प्रस्तुत किया, जिसमें दिलीप ठक्कर के फर्जी हस्ताक्षर दिखाई दे रहे हैं। याचिकाकर्ता ने भी याचिका में कथन किया है कि उक्त हस्ताक्षर उसके नहीं है और वह कभी भी नामांकन वापस लेने के लिए निर्वाचन अधिकारी के समक्ष उपस्थित नहीं हुआ। याचिका में यह भी आधार है कि इस तरह की दूषित, विवादास्पद और अनुचित प्रक्रिया से पूरी चुनाव प्रक्रिया ही अवैधानिक हो गई है जो नियमानुसार नहीं हैं। कोर्ट ने याचिकाकर्ता और चुनाव आयोग के तर्क सुनकर फ़ैसला सुरक्षित रखा है।





