कथित “मौत के सौदागर” का “जीवन के प्रति समर्पण” की साक्षी 27 नवंबर…

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कथित “मौत के सौदागर” का “जीवन के प्रति समर्पण” की साक्षी 27 नवंबर…

डायनामाइट के अविष्कारक को अपनी इस खोज का पश्चात्ताप इस हद तक हुआ कि उन्होंने इसकी भरपाई के लिए अपनी जिंदगी की पूरी कमाई ‘नोबेल पुरस्कार’ की स्थापना में लगा दी। वैसे तो नोबेल ने अपने जीवनकाल में कई वसीयतें लिखीं। उन्होंने अपनी आखिरी वसीयत मरने से एक साल पहले लिखी थी और 27 नवंबर 1895 को पेरिस में स्वीडिश-नॉर्वेजियन क्लब में इस पर हस्ताक्षर किए थे। नोबेल की इस आखिरी वसीयत में निर्दिष्ट किया गया था कि उनके भाग्य यानि धन का उपयोग उन लोगों के लिए पुरस्कार में किया जाएगा, जो भौतिकी , रसायन विज्ञान , शरीर विज्ञान या चिकित्सासाहित्य और शांति में “मानव जाति को सबसे बड़ा लाभ” प्रदान करते हैं। दरअसल उनकी इस सोच के पीछे वह लेख था, जो उनकी मृत्यु से आठ साल पहले लिखा गया था। 1888 में, नोबेल एक फ्रांसीसी अखबार में “द मर्चेंट ऑफ डेथ इज़ डेड” शीर्षक से अपना मृत्युलेख पढ़कर आश्चर्यचकित रह गए थे। यह अल्फ्रेड का भाई लुडविग था जिसकी मृत्यु हो गई थी। मृत्युलेख आठ वर्ष पूर्व था। लेख ने नोबेल को निराश कर दिया और उन्हें आशंकित कर दिया कि उन्हें कैसे याद किया जाएगा। इससे ही उन्हें अपनी वसीयत बदलने की प्रेरणा मिली। और वसीयत बदलने के एक साल बाद ही 10 दिसंबर 1896 को, अल्फ्रेड नोबेल की इटली के सैन रेमो में उनके विला में मस्तिष्क रक्तस्राव से मृत्यु हो गई। तब वह 63 वर्ष के थे।

अल्फ्रेड नोबेल का जन्म 21 अक्टूबर 1833 को स्टॉकहोम,स्वीडन में इंजीनियरों के एक परिवार में हुआ था। वह एक रसायनज्ञ , इंजीनियर और आविष्कारक थे। 1894 में, नोबेल ने बोफोर्स आयरन और स्टील मिल खरीदी, जिसे उन्होंने एक प्रमुख हथियार निर्माता बनाया। नोबेल ने बैलिस्टाइट का भी आविष्कार किया। यह आविष्कार कई धुआं रहित सैन्य विस्फोटकों, विशेष रूप से ब्रिटिश धुआं रहित पाउडर कॉर्डाइट का अग्रदूत था। अपने पेटेंट दावों के परिणामस्वरूप, नोबेल अंततः कॉर्डाइट पर पेटेंट उल्लंघन के मुकदमे में शामिल हो गए। नोबेल ने अपने जीवनकाल के दौरान बहुत संपत्ति अर्जित की, जिसमें से अधिकांश संपत्ति उनके 355 आविष्कारों से आई, जिनमें से डायनामाइट सबसे प्रसिद्ध है।

नोबेल पुरस्कारों में अर्थशास्त्र का एक पुरस्कार बाद में शामिल किया गया। 1968 में, स्वीडन के केंद्रीय बैंक स्वेरिजेस रिक्सबैंक ने नोबेल फाउंडेशन को एक बड़ी राशि दान करके अपनी 300वीं वर्षगांठ मनाई, जिसका उपयोग अल्फ्रेड नोबेल के सम्मान में एक पुरस्कार स्थापित करने के लिए किया गया था। अगले वर्ष, अल्फ्रेड नोबेल की स्मृति में आर्थिक विज्ञान में स्वेरिजेस रिक्सबैंक पुरस्कार पहली बार प्रदान किया गया। रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज पुरस्कार विजेताओं के चयन के लिए जिम्मेदार बन गई। आर्थिक प्रक्रियाओं के विश्लेषण के लिए गतिशील मॉडल विकसित करने और लागू करने के लिए अर्थशास्त्र पुरस्कार के पहले विजेता जान टिनबर्गेन और राग्नर फ्रिस्क थे। नोबेल फाउंडेशन के बोर्ड ने निर्णय लिया कि इस अतिरिक्त पुरस्कार के बाद वह आगे कोई नया पुरस्कार नहीं देगा।

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30 दिसंबर 1896 को स्टॉकहोम में पढ़ी गई वसीयत और वसीयतनामा के अनुसार, अल्फ्रेड नोबेल द्वारा स्थापित एक फाउंडेशन मानवता की सेवा करने वालों को पुरस्कृत करेगा। नोबेल पुरस्कार को अल्फ्रेड नोबेल की व्यक्तिगत संपत्ति से वित्त पोषित किया गया था। आधिकारिक सूत्रों के अनुसार, अल्फ्रेड नोबेल ने अपनी अधिकांश संपत्ति नोबेल फाउंडेशन को दे दी, जो अब नोबेल पुरस्कार का आर्थिक आधार है। नोबेल फाउंडेशन की स्थापना 29 जून 1900 को एक निजी संगठन के रूप में की गई थी। इसका कार्य नोबेल पुरस्कारों के वित्त और प्रशासन का प्रबंधन करना है। नोबेल ने पांच नोबेल पुरस्कारों की स्थापना के लिए अपनी कुल संपत्ति का 94%, 31 मिलियन सेक (लगभग 186 मिलियन यूएस डॉलर, 2008 में 150 मिलियन यूरो) दे दिया।

इतनी बड़ी राशि का दान हर किसी को अचंभित करने वाला है। वैसे तो दुनिया में दानियों की कोई कमी नहीं है। पर 19वीं सदी में अल्फ्रेड नोबेल ही दुनिया के सबसे बड़े दानी थे। यह दान असाधारण था, क्योंकि इसके तहत नोबेल की अथाह संपत्ति से बड़ी धनराशि के पुरस्कार हर साल उन्हें दिए जाते हैं जो इस समाज को अपने कौशल से असीमित लाभ पहुंचाते हैं। और निश्चित तौर पर नोबेल पुरस्कार से दुनिया भर में समाज में श्रेष्ठतम योगदान देने वाले पुरस्कृत हुए हैं और इससे समाज के लिए सर्वश्रेष्ठ करने की प्रेरणा भी सभी को मिलती है। तो शुक्रिया अल्फ्रेड नोबेल…आपकी खोजों के लिए भी और मौत के बाद दुनिया की स्मृति में नोबेल पुरस्कार के रूप में जिंदा रहने के लिए 27 नवंबर 1895 को किए इस फैसले के लिए भी…। अथाह संपत्ति के मालिकों को एक बार अल्फ्रेड नोबेल को पढ़ना चाहिए और उनसे प्रेरणा भी लेना चाहिए। तो उस फ्रांसीसी अखबार के मुताबिक “मौत के सौदागर” का “जीवन के प्रति समर्पण” का इससे प्यारा उदाहरण और कुछ नहीं हो सकता…।