Women Freedom: पुरुष मित्रों के साथ रात 2 बजे जंगल जाने के औचित्य पर बात होना चाहिये
मैं यह बात गत दिनों इंदौर के पास स्थित सैन्य क्षेत्र महू के पर्यटन स्थल जाम गेट पर हुई जघन्य वारदात के संदर्भ में कर रहा हूं, जिसमें दो प्रक्षिशु सैन्यकर्मी अपनी दो महिला मित्र के साथ जाम गेट के जंगल में रात 2 बजे हिंसक वारदात,लूट के साथ ही यौन शोषण के शिकार हुए। मेरा कहना कतिपय महिला अधिकारों के पक्षधर,महिला-पुरुष समानता जैसे विचारों वाले महानुभावों को अखर सकता है, लेकिन पूरी विनम्रता के साथ बताना चाहूंगा कि नारी सम्मान तो हम समस्त भारतीयों की घुट्टी में है, जिनमें मैं भी शामिल हूं।इसके बाद भी ऐसी घटनायें होती हैं तो हमें मंथन तो करना ही होगा कि किस तरह की अतिवादी सोच का क्या दुष्परिणाम हो सकता है? इसलिये मेरे विचार पर तर्कसंगत ढंग से सोचा जाना चाहिये, ताकि इस तरह की घिनौनी,क्रूर और सर्वथा अमानुषिक करतूतों पर कुछ तो अंकुश लग सके।
मेरा यह मानना रहा है कि आदिम युग से ही महिला शोषण होता रहा है। याने खोट तो मूल मानसिकता में ही है और यह पूरे धरातल की गंभीर समस्या है। आधुनिक होती दुनिया,विकसित होती कथित सभ्यता,बढ़ता शिक्षा का प्रसार,वृहद स्वरूप लेती धार्मिक मान्यताओं के बावजूद किसी भी तरह के अपराध में उल्लेखनीय कमी आने की बजाय उसमें हैरतअंगेज बढ़ोतरी हो रही है तो आखिर इस मर्ज की दवा क्या है? और है भी या नहीं ? क्या केवल शाब्दिक विरोध,मोमबत्ती प्रदर्शन से ही इसका इलाज संभव है?
हमें यह नहीं भूलना चाहिये कि उस सर्व शक्तिमान सत्ता ने, जिसका नाम ईश्वर या सुपर पॉवर कुछ भी हो सकता है, उसने संसार की रचना में प्रत्येक प्राणी,पर्यावरणीय तत्वों की संरचना जैसी की हैं, वे वैसी ही रहेंगी। याने थलचर,जलचर,नभचर में कोई परिवर्तन अरबों वर्ष के बाद भी नहीं हुआ। आज भी जो मनुष्य पैदा होता है,उसकी आंखें,कान,मुंह,नाक,पेट,हाथ-पैर तो वैसे हैं ही, शरीर के भीतर के अंग भी सृष्टि की रचना के प्रारंभ से वैसी ही हैं। पशु-पक्षी भी कम-ज्यादा होते रहते हैं, लेकिन उनकी संरचना समान है। ऐसे में नारी को कोमलांगी,भावना प्रधान,संरक्षणदाता,जननी जैसे तमाम महान गुणों के साथ संरचित किया। वह बुद्धि में अपेक्षाकृत श्रेष्ठ हो सकती है। ज्ञान का अपरिमित भंडार हो सकता है। शासन-प्रशानस संचालन में माहिर हो सकती है, लेकिन बल में वह कभी-भी पुरुष की तुलना में अधिक नहीं मानी गई।
अपने जननांगों की स्थिति में वह कोई परिवर्तन नहीं कर सकती। यही एक प्रश्न है, जो आदिकाल से शाश्वत है कि क्या तमाम खूबियों के बावजूद वह पुरुष की तरह स्वच्छंद,उन्मुक्त,मनमाना आचरण करने की पात्र हो जाती है ?
हम अतीत में जितनी दूर तक झांक कर देख सकें,देख लीजिये कि किस युग में नारी का शोषण नहीं हुआ ? त्रेता में सीताजी ने कितना कुछ सहा । द्वापर में द्रोपदी के त्रासों का तो जैसे कोई अंत ही नहीं था। चलिये हम सनातनी तो अपने शास्त्रों तक में देवताओं के राजा इंद्र के द्वारा ऋषि पत्नी का शील हरण करने की कुत्सित कोशिश का भी उल्लेख कर चुके हैं और उन्हें अपनी कोई भूल न होने के बावजूद श्राप के चलते शिला बनकर युगों तक ठोकरें खानी पड़ीं। ऐसे में हम आज यह कैसे सोच लेते हैं कि शिक्षा,विकास,भौतिक संपन्नता होने भर से पुरुष वर्ग में मौजूद कुछ क्रूर,हिंसक,आपराधिक प्रवृत्ति के विषधारी नारी के उन्मुक्त आचरण को पवित्र नजरों से देखेंगे ?
आज दुनिया जिस अश्लील,उत्तेजक,नशीले पर्यावरण से ओत-प्रोत है, जहां मोबाइल,कंप्यूटर की स्क्रीन पर स्पर्श करते ही संसार में मौजूद हवस,यौन कुंठा के तमाम प्रतीकों के साहित्य,दृश्यावली उफन रहे हैं, वहां सद्प्रवृत्ति,सदाशयता,नारी के प्रति सम्मान,आदर का भाव प्रवाहित होगा,ऐसा ख्याल भी कैसे संभव है? तब ज्यादा बड़ी जिम्मेदारी तो नारी की है कि वह स्वयं अपने आचरण,पहनावे-ओढ़ावे से सादगी,शालीनता का संदेश दे। जबकि हालात तो बिल्कुल उलट हैं। नारी के मन में भी वासना का अतिरेक तो हिलोरे मारता ही है,उसके वस्त्र भी न्यूनतम होते जा रहे हैं। साड़ी और सलवार-कुर्ती तो जैसे पुराने जमाने का पहनावा हो गया। अब तो अंडर वियर से थोड़ी ही बड़ी निकर,ब्रा जैसी टी शर्ट,आधी पीठ दिखाते ब्वाउज,जो लगभग ब्रा जैसे ही होते हैं, का चलन बहुतायत से हो रहा है। फिल्मों,टीवी,ओटीटी प्लेटफॉर्म पर तो ब्रा,पेंटी में नारी को दिखाते ही हैं, सहवास के दृश्य भी भरपूर दिखाये जा रहे हैं। जो अंतरंगता बेडरूम में होती है, वह टीवी,मोबाइल पर ऐसे दिखाई जाती है,मानो ऐसे दृश्य समाज में कोई सकारात्मक संदेश देंगे,उससे नई पीढ़ी को सीख-नसीहत मिलेगी।
इस नग्नता का सवा सत्यानाश करने में जैसे कसर रह गई थी तो इंटरनेट,मोबाइल और आ गये, जहां 5 साल का बच्चा भी स्पर्श करते ही दुनिया भर से प्रसारित अश्लील कंटेंट को देख रहा है। रही-सही सकर कोरोना ने पूरी कर दी,जब ऑनलाइन पढ़ाई के लिये स्कूली बच्चों तक के हाथ में मोबाइल आ गया। ऐसे अधोगामी वातावरण में नारी सम्मान के तो चिथड़े उड़ गये। स्वयं नारी ने आधुनिक जिंदगी को अपने लिये सकारात्मक अवसर बनाने की बजाय बदन उघाडू छवि बना ली। अब तो भारत में भी पोर्न फिल्में बहुतायत से बन रही हैं और देखी भी जा रही हैं। रील बनाने के खेल ने तो युवतियों को पूरी तरह बेशर्म कर दिया है। वे विशुद्ध नॉनवेज चुटकुलों पर गाली-गलौच के प्रयोग वाली रील्स बनाकर वाइरल कर रही हैं।दिव्अर्थी संवादों वाले वीडियो में सहर्ष भाग ले रही हैं।
हद तो यह है कि फिल्म,टीवी,फैशन की दुनिया की महिला पात्र डंके की चोट कहती हैं कि हम क्या पहने,यह हमें तय करने का अधिकार है तो मोहतरमा घृणित चरित्र वाले तो ठीक सामान्य चरित्र वालों के मन में भी वासना की तरंगे हिलोरे मारने लगती है। जब आप पुरुष को आमंत्रण करने वाले उन्मुक्त आचरण करेंगी तो दोष देते रहिये, वह भी उन्मुक्त आचरण करने को अग्रसर होगा ही। तब भला जाम गेट जैसी घटनाओं पर रोक कैसे लग सकती है ? कानून अपना काम करेगा, लेकिन वारदात हो जाने के बाद ही। कोई युवती रात 2 बजे अपने पुरुष मित्र के साथ जंगल के एकांत में जाने को अपना विवेकाधिकार मानती हैं तो मानती रहे, पुरुष वेश में भेड़िये,जंगली हिंसक अमानुष को रोका नहीं जा सकेगा!