Women’s Reservation Bill Problem : खुश मत होईये, महिला आरक्षण बिल का फ़ायदा अभी नहीं मिलेगा!
New Delhi : संसद के नए भवन में विशेष सत्र के दौरान मोदी सरकार ने महिला आरक्षण बिल पेश कर दिया। इस संविधान संशोधन विधेयक पर चर्चा के लिए लोकसभा के सभी सदस्यों ने ध्वनिमत से अपनी मंजूरी भी दे दी। पेश किए गए इस विधेयक का नाम है ‘शक्ति वंदन अधिनियम।’ इस विधेयक के पेश होते ही राजनीतिक दल अपनी जोड़-बाकी लगाने लगे कि 33% के हिसाब से कितनी महिला नेताओं को चुनाव लड़ने के लिए तैयार करना पड़ेगा।
लेकिन, फिलहाल यह खुशफहमी ही है। क्योंकि इस विधेयक के साथ कई सारी पैचीदगियां हैं। इसलिए किसी भी स्थिति में 2029 से पहले 33% महिला आरक्षण लागू नहीं हो सकता। सबसे पहले तो 2021 में होने वाली जनगणना ही है, जिसका होना बाकी है। उसके बाद परिसीमन होगा। राज्यों की आपत्तियां तो अपनी जगह।
महिला आरक्षण के लिए संसद में पेश इस विधेयक पर फिलहाल तो अनिश्चय की तलवार ही लटकी दिखाई दे रही है। विधायी कार्य के तौर पर पेश इस पहले विधेयक में काफी पैचीदगी है। इसलिए कि इस संविधान संशोधन विधेयक के पारित होने पर ही काफी बखेड़ा होगा। यदि विधेयक पास भी हो गया, तब भी इसके देश में संसदीय चुनाव के लिए लागू होने का रास्ता 2029 तक ही खुल पाएगा।
इस विधेयक के साथ लोकसभा की सीटों के परिसीमन की शर्त जुड़ी है। परिसीमन के लिए वैधानिक प्रक्रिया की शुरुआत होने के बाद कम से कम दो साल लग जाएंगे। इसके प्रावधान भी शुरुआती तौर पर 15 साल के लिए होंगे।
यह भी स्पष्ट नहीं है कि परिसीमन प्रक्रिया पूरी होने के बाद से जिन विधानसभाओं के चुनाव होंगे, तो वहां क्या ये प्रावधान लागू होंगे? इसलिए कि कोटे में नए कोटे की व्यवस्था कैसी होगी, यह भी स्पष्ट नहीं है। यानी अनुसूचित जातियों और जनजातियों के साथ अन्य पिछड़ी जातियों को मिल रहे कोटे में 33% महिलाओं को आरक्षण का लाभ देने की प्रक्रिया क्या होगी? सिर्फ यही नहीं, और भी कई क़ानूनी और संवैधानिक प्रावधान हैं, जो इस विधेयक में अड़ंगा बनेंगे।
परिसीमन का भी पेंच
निर्वाचन आयोग का कहना है, कि परिसीमन के लिए तो हम तैयार हैं। सरकार को विधायी और नीतिगत फैसला लेना है। हमारी भूमिका तो उसके बाद शुरू होगी। पहले परिसीमन आयोग बनाया जाएगा, सरकार जब आयोग बनाकर अधिसूचना जारी करेगी उसके बाद आयोग की सहयोगात्मक भूमिका शुरू होगी। परिसीमन पर आम राय बनाना एक बड़ी चुनौती होगी, ये प्रक्रिया जनसंख्या के मुताबिक़ सीटें तय करने की है। वे राज्य जो जनसंख्या वृद्धि काबू करने में सफल रहे हैं, उन्हें अपनी सीटें कम किए जाने का भी खतरा है।
साल 1992 में पंचायत के स्तर पर 33% आरक्षण का क़ानून बनाए जाने के बावजूद यही आरक्षण संसद और विधानसभाओं में लाने के प्रस्ताव पर आम राय बनाने में तीन दशक से ज़्यादा लग गए। इसी के चलते पंचायत के स्तर पर आरक्षण देने के बावजूद सरपंच चुनी गई औरतों का कागज़ों पर नाम तो रहा, लेकिन उनके पति ही उनका काम करते रहे. इन्हें ‘सरपंच-पति’ का उपनाम तक दे दिया गया।
जनगणना के बाद ही परिसीमन का रास्ता खुलेगा
विधेयक यह स्पष्ट करता है कि 2029 से लोकसभा की एक तिहाई सीटों पर महिला सांसद होंगी। ऐसा इसलिए, क्योंकि विधेयक के मुताबिक, विधेयक पारित होने के बाद आयोजित पहली जनगणना के आधार पर परिसीमन प्रक्रिया पूरी होने के बाद सीटें आरक्षित की जाएंगी। उल्लेखनीय है 2021 में होने वाली जनगणना का काम 2020 में कोविड महामारी के कारण स्थगित कर दिया गया था। इसके शुरू होने की अभी कोई नई तारीख घोषित नहीं की गई।
यह मानते हुए कि जनगणना 2024 के चुनाव के कुछ समय बाद होती है, तब इसके परिणामों को संकलित करने और प्रकाशित करने में एक साल का समय लगेगा। इसके बाद परिसीमन प्रक्रिया होगी। भले ही यह काम 2024 के लोकसभा चुनाव के एक साल के भीतर पूरा हो सकता है, लेकिन आरक्षण मौजूदा सदन के भंग होने के बाद ही लागू होगा संभवतः पांच साल का कार्यकाल समाप्त होने के बाद, यानी 2029 में ही।
अभी महिलाओं का प्रतिनिधित्व
– 543 सीटों वाली लोकसभा में फिलहाल सिर्फ़ 78 महिला सांसद।
– 238 सीटों वाली राज्यसभा में सिर्फ़ 31 महिला सांसद।
– छत्तीसगढ़ विधानसभा में महिला विधायकों की संख्या 14 फीसदी।
– पश्चिम बंगाल विधानसभा में महिला विधायकों की संख्या 13.7 फीसदी।
– झारखंड विधानसभा में महिला विधायकों की संख्या 12.4 फ़ीसदी।
– बिहार, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और दिल्ली विधानसभा में महिला विधायकों की संख्या 10-12 फ़ीसदी।
– आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, असम, गोवा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, मेघालय, ओडिशा, सिक्किम, तमिलनाडु, तेलंगाना, त्रिपुरा में महिला विधायकों की संख्या 10 फ़ीसदी से कम।