Won The Battle of Life : 90 दिन पहले जन्मी 780 ग्राम की नवजात ने जीती जिंदगी की जंग!

जहां बच्चे के बचने की संभावना नहीं थी, डॉक्टरों ने उसे भी बचा लिया!  

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Won The Battle of Life : 90 दिन पहले जन्मी 780 ग्राम की नवजात ने जीती जिंदगी की जंग!

Indore : लाइफ़ केयर हॉस्पिटल उस समय रोमांचक क्षण का साक्षी और भागीदार बना, जब हॉस्पिटल में 90 दिन पूर्व जन्म ली हुई सिर्फ़ 780 ग्राम की बच्ची पूर्णतः स्वस्थ होकर 1.2 किलो के वजन के साथ परिवार के साथ अपने घर की और लौटी। उनके परिवार के चेहरे पर ख़ुशी देखने लायक थी।

उज्जैन के पास ग्राम में रहने वाले पाटीदार की यहाँ पत्नी सिमरन गर्भवती थी। मात्र छह माह ही हुए थे कि उन्हें ब्लीडिंग प्रारंभ हो गई। जब पास ही स्थित डॉक्टर से संपर्क किया तो उन्होंने सोनोग्राफी कर बताया कि बच्चेदानी के अंदर खून का थक्का जमा है। इस कारण ब्लीडिंग हो रही है। ऐसे में बच्चे को बचाना बहुत मुश्किल है और गर्भपात भी करना पड़ सकता है।

किसी ने उन्हें लाइफ़ केयर अस्पताल में जाने की सलाह दी तो दंपत्ति हॉस्पिटल पहुँचे तो अस्पताल की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ कनक प्रिय तिवारी ने तुरंत गर्भवती महिला का परीक्षण किया और पाया कि बच्चेदानी के अंदर खून का थक्का जमा था, इसलिए ब्लडिंग हो रही थी। माँ का ब्लड प्रेशर भी बढ़ा हुआ था। बच्चे के आस पास पानी की कमी थी और बच्चा गर्भ में उल्टा था। गर्भ में बच्चे का वजन मात्र 650 ग्राम परिलक्षित हो रहा है ऐसे में सुरक्षित डिलेवरी कराना, माँ और बच्चे के बचाना एक बहुत बड़ी चुनौती है। तब डॉ कनकप्रिया तिवारी, डॉ ब्रजबाला तिवारी तथा बाल रोग विशेषज्ञ डॉ अक्षय वानवत, डॉ विनीता अग्रवाल और डॉ आशीष जायसवाल ने टीम बनाकर इसे चुनौती के रूप में लिया।

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गर्भवती और परिवार का संयम 

सिमरन की पूरे परिवार को साथ बिठाकर काउंसलिंग की गई और साथ ही सारी सुविधाओं के साथ सिमरन को गहन चिकित्सा इकाई में लेकर इलाज प्रारंभ किया गया। उन्हें कुछ स्पेशल इंजेक्शन एवं दवाइयां दी गई जिससे कि माँ के गर्भ में ही बच्चे के फेफड़े एवं दिमाग़ को मज़बूती मिल सके। इंजेक्शन के प्रभाव के लिए लगभग 48 घंटे का समय आवश्यक था। उसके बाद डिलीवरी कराई गई। डिलीवरी के पूर्व बच्चे के लिए यह सुनिश्चित किया जाना आवश्यक था कि अस्पताल के नवजात शिशु विभाग (एनआईसीयू) में ऑक्सीजन का प्रवाह निरंतर बना रहे और साथ ही संक्रमण पर पूर्ण नियंत्रण रहे।

780 ग्राम के शिशु को हॉस्पिटल के नवजात शिशु विभाग में शिफ्ट किया गया। सेप्टिक बेबी और आउट बोर्न बेबी के सेक्शन अलग होने और सभी बच्चों के बेड में में एनएबीएच के अनुसार पर्याप्त दूरी होने के कारण इलाज और प्रबंधन में बहुत मदद मिली। संक्रमण को नियंत्रित करने में बहुत सुविधा रही। कम हीमोग्लोबीन और कम प्लेटलेट्स होने से बेबी आफ सिमरन की रक्त मापदंडों की बारीकी से निगरानी की गई।

2 माह की डॉक्टरों की कोशिश सफल 

गहन चिकित्सा इकाई में कड़े तापमान नियंत्रण उपाय लागू किए गए और 2 माह के अथक परिश्रम के बाद डॉक्टर्स की टीम ने स्वास्थ्य शिशु को पाटीदार परिवार के सुपर्द कर अपार ख़ुशी और गौरव का अनुभव किया। टीम के साथ ही सोनोलॉजिस्ट, एनआईसीयू स्टाफ़ फूलसिंह, सिस्टर सेलेस्टोलीना, अंकिता, मनीषा, शानू और अन्य सभी ने विश्व स्तरीय देखभाल की। इस सभी प्रक्रिया में नवजात के माता-पिता और परिवार ने ग़ज़ब का संयम और विश्वास रखा। विशेषज्ञों ने बताया कि नवजात की विशेष देखभाल की गई। यह सोनोग्राफी, इकोकार्डियोग्राफी, रेटीनोपैथी आदि भी की गई। 45 दिन की देखभाल के बाद नवजात को डिस्चार्ज कर दिया। अब मां ओर नवजात दोनों स्वस्थ्य है।