दिलाएं राष्ट्र भाषा सम्मान
हिन्दी भारत की शान ,
हिन्दी हमारा स्वाभिमान।
करें हम इसका गौरव गान,
दिलाएं राष्ट्र भाषा सम्मान।
हिन्दी दुनिया में चौथे और
भारत में प्रथम स्थान पर।
हिन्दी भावना की भाषा ,
हमारी लेखनी की भाषा।
गर्व है मुझे मेरी अभिव्यक्ति
की भाषा पर ,
कोशिश है हिन्दी समृद्ध हो
हर आयाम पर ।
मंजुला भूतड़ा
स्वर्ण पदक सी जग में चमको (हिंदी)
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सारस्वत, अभिनव, सुखदायक,
बोले इसको सब जननायक !
सरल ,सरस, प्रवाहमयी है ,
वेद,पुराण में सारमयी है !
तरकश के तीरों सी पैनी ,
धार व्याकरण की है छेनी !
कुसुमासव सी मीठी हो,
गंगा सी निर्मल, पावन हो !
हिंदी तुम भारत का गौरव,
सकल विश्व में तेरा सौरभ !
फिर भी एक दिवस बस तेरा ,
बाकी पर अंग्रेजी का डेरा !
स्थिति यह अति है दुखदायी,
हम सब की मति है भरमायी !
गर्व करें निज भाषा पर हम,
तभी विश्व को गर्व हो हम पर !
कांस्य पदक की चाह नहीं अब,
स्वर्ण पदक सी जग में चमको !!
मंजु श्रीवास्तव ‘मन'[त्रिवेणी से साभार ]
“हिंदी भाषा मेरा अभिमान”
भारत के जन – जन की वाणी हिंदी है.
हमारी – आपकी कहानी हिंदी है.
हर भारतीय का अभिमान हिंदी है.
हम सभी का स्वाभिमान हिंदी है.
अवध की है यही गरिमा, यही ब्रज की सहेली है.
समूचे राष्ट्र का गौरव, यही हिंदी अकेली है.
कभी मीरा, कभी तुलसी, कभी रसखान हिंदी है.
सरलता में नहाई सिंधु का प्रतिमान हिंदी है.
विदेशों में भारतीयता की शक्ति हिंदी है.
सहज – सरल भावों की अभिव्यक्ति हिंदी है.
हर व्रत, त्यौहार और उत्सव की रौनक हिंदी है.
संपूर्ण विश्व में भारतीय संस्कृति की महक हिंदी है.
करें संकल्प इसका मान कभी घटने नहीं देंगे.
अनादर जो करे इसका उसे टिकने नहीं देंगे.
सितंबर चौदह ही क्यों, प्रतिदिन सम्मानित हिंदी हो.
प्रचार – प्रसार करें जितना, उतनी प्रतिष्ठित हिंदी हो.
पूरब और पश्चिम के बीच सेतु बनाती हिंदी है.
इसलिए विश्व – पटल पर भी खिलखिलाती हिंदी है.
मनुजता के चरम उत्कर्ष का प्रतिमान हिंदी है.
हमारा स्वाभिमान और अभिमान हिंदी है.
©डॉ. श्वेता सिन्हा,
आयोवा, यू.एस.ए.
छा जाए पूरे विश्व में
भारतवर्ष की एकता मे
जिव्हा केअभिन्न उच्चारण से
बहे जब मुख से सुख दुख में
बन जाए जन जन की भाषा
हिन्दी
भजनों की मधुरता में
छायाचित्र के गानों से
छा जाए पूरे विश्व में
निकले अमीर गरीब कंठ से
साहित्यकारों केआशीर्वाद से
साहित्य की सभी विधाओं में
पुस्तकालयों की सुन्दरता से
पूर्वजों के अनमोल वचनों में
जन जन के मन के शब्दों से
भारत मां की मधुर आरती में
मन को सुन्दर बनाते उपदेश से
बन जाए जन जन की भाषा
हिन्दी
कल्पना विजयवर्गीय
मैं हिंदी,हिंदुस्तान मेरा!
मैं हिंदी,हिंदुस्तान मेरा,
और सारे हिंदुस्तानी हैं ।
पर दुख इस बात का है मुझको ,
यहां मेरी अजब कहानी है ।।
कहलाती वैज्ञानिक भाषा ,
और राष्ट्र-भाल की बिंदी हूँ ।
गौरवशाली इतिहास मेरा,
सांस्कृतिक सौहार्द की हिंदीहूँ।।
पाया है राजभाषा का दर्ज़ा ,
महसूस उपेक्षित करती हूं ।
अफसोस मुझे तब होता है
अंग्रेजी प्रेम परखती हूं ।।
लिपि देवनागरी कहलाती
समृद्ध व्याकरण है मेरा ।
पर समझ ना आए मुझको यह
क्यों हिंदी जगत में अंधेरा ।।
क्यों नहीं समझते लोग यहां ?
हिंदी साहित्य निराला है ।
अगणित साहित्य सर्जकों ने,
हिंदी को दिया उजाला है।
है नहीं कोई एतराज मुझे,
अंग्रेजी जी भरके सीखो ।
मत भूलो निज मातृभाषा ,
उसको हृदयंगम कर रखो।।
निज आन मान अभिमान है यह,
उपजी बोलियां मनोहर हैं।
मिलकर संरक्षण करें सभी,
हिंदी निज राष्ट्र धरोहर है।
संजू पाठक
इंदौर, म.प्र.