

पंडित दीनानाथ व्यास स्मृति प्रतिष्ठा समिति भोपाल का आयोजन –
World Voice Day 2025 : अपनी आवाज ही पहचान है विषय पर परिसंवाद
पंडित दीनानाथ व्यास स्मृति प्रतिष्ठा समिति भोपाल द्वारा स्व. श्रीमती पुष्पावती व्यास की स्मृति में आज विश्व आवाज दिवस पर ,अपनी आवाज ही पहचान है विषय पर परिसंवाद आयोजित किया गया ।
आज दुनियाभर में आवाज {Voice} को महत्व देते हुए विश्व आवाज दिवस मनाया जा रहा है। एक गायक के लिए मधुर वाणी और एकरूपता की आवश्यकता होती है और एक सफल वक्ता के लिए भी बोलना एक कला है जिससे वह भी अपनी आवाज से दुनिया में छा जाने का हुनर रखते है।वाणी का कई जगह पर अलग ही प्रभाव होता हैं अगर आप सधे शब्दों से अपनी बात या अभिव्यक्ति करते हैं तो आपका व्यक्तित्व निखरता है. धूम्रपान, एल्कोहल के अधिक सेवन, जोर-जोर से चिल्लाकर बोलने से अपनी अच्छी आवाज और गले को नुकसान पहुंचाते हैं. बार-बार ऊंची आवाज में बोलने, चिल्लाने से वॉइस डिसऑर्डर होने की संभावना बढ़ जाती है। आपाज आपकी पहचान होती है ,अपनी आवाज को अपनी पहचान बनाइये। इस विषय पर बड़ी संख्या में लोगों ने अपने विचार रखे। संगोष्ठी का संचालन साहित्यकार डॉ स्वाति तिवारी ने किया।
1 .वाणी ईश्वर द्वारा दिया गया सबसे अनमोल उपहार है -सपना उपाध्याय
आप सभी ने वो गीत तो सुना ही होगा “नाम गुम जाएगा चेहरा ये बदल जाएगा मेरी आवाज़ ही पहचान है गर याद रहे “इसी गीत को चरितार्थ करती है लताजी की मीठी आवाज़ जिसके हम सब दीवाने है वो आज हमारे बीच नहीं है फिर भी हम सब के साथ है अपनी आवाज़ के रूप में ,और यही आवाज़ का जादू जो रूप रंग सब पर भारी पड़ता है ।आप अत्यंत सुंदर है किंतु आप की वाणी में माधुर्य नहीं है तो आप के व्यक्तित्व से कोई प्रभावित नहीं होगा ।
बहुत पहले मेने अमिताभ बच्चन जी का एक साक्षात्कार सुना था जिसने उन्होंने बताया था की उनकी भारी आवाज़ के कारण उन्हें ऑल इंडिया रेडियो में चयनित नहीं किया था किंतु आगे जाकर उनकी वही दमदार आवाज़ उनकी सबसे बड़ी ताक़त बनी यही महत्व है हमारे व्यक्तित्व में आवाज़ का ।
मेरे अधिकांश साथियों में से शायद ही कोई होगा जिसने आनंद फ़िल्म नहीं देखी होगी उसमें एक सीन है जब राजेश खन्ना जी मरने से पहले अपनी आवाज़ टैप कर लेते है और उनकी मृत्यु पश्चात वही आवाज़ जब अमित जी सुनते है तो रोना भूलकर उनकी आवाज़ में खो जाते है बाल्यावस्था में देखी इस फ़िल्म का यह सीन आज भी हृदय पर अंकित है ।
जब परिवार में पिता पुत्र या भाई -भाई की आवाज़ समान होती है और उनके से कोई एक दुनिया में नहीं रहता तो दूसरे की आवाज़ सुन कर दिल को जो सुकून मिलता है वो वही व्यक्ति समझ सकता है जिस ने अपने प्रिय को खोया है ।
वाणी ईश्वर द्वारा दिया गया सबसे अनमोल उपहार है जिसका प्रयोग सब को सुख देने के लिए है याद रहे हमारी वाणी से किसी को दुख ना पहुँचे ।
2 .“एक आवाज़ इंसान को भीड़ से अलग करती है – कीर्ति कापसे
“एक आवाज़ इंसान को भीड़ से अलग करती है,
और भीड़ को एक इंसान के पीछे खड़ा कर देती है।”
विश्व आवाज़ दिवस: क्या है इसका महत्व?
विश्व आवाज़ दिवस (World Voice Day) हर साल 16 अप्रैल को मनाया जाता है। इसकी शुरुआत 1999 में ब्राज़ील से हुई थी जब डॉक्टरों और गायकों के एक समूह ने आवाज़ की महत्ता को लेकर जागरूकता फैलाने का अभियान शुरू किया। बाद में यह दिन दुनिया भर में लोकप्रिय हो गया और इसे गायक, वक्ता, चिकित्सक और आम लोगों ने अपनाया।
इस दिन का उद्देश्य है:आवाज़ की देखभाल के प्रति जागरूकता बढ़ाना,वोकल हेल्थ (vocal health) का प्रचार करना
गायन, अभिनय, शिक्षण, प्रसारण आदि में आवाज़ की भूमिका पर ध्यान केंद्रित करना
आवाज़ का विज्ञान (Science of Voice)
हमारी आवाज़ larynx (कंठ) में मौजूद vocal cords की कंपन से उत्पन्न होती है। जब हम सांस छोड़ते हैं, हवा vocal cords से गुजरती है और वह कंपनित होकर ध्वनि उत्पन्न करती है। यह ध्वनि फिर गले, मुँह, नाक और छाती में गूंजकर एक अनूठी टोन पैदा करती है।
रोचक तथ्य:
हर इंसान की आवाज़ का टोन, पिच और टिम्बर (timbre) अलग होता है।बच्चों और स्त्रियों की आवाज़ पतली (high pitch) और पुरुषों की गहरी (low pitch) होती है क्योंकि उनके vocal cords की लंबाई और मोटाई में फर्क होता है।
ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से आवाज़ की भूमिका
1. वेदों और शास्त्रों में आवाज़ (श्रुति)
भारतीय संस्कृति में ‘श्रुति’ (जो सुना जाए) को ही सबसे प्राचीन ज्ञान का स्रोत माना गया है। वेदों का संचार हजारों वर्षों तक सिर्फ ‘श्रुति परंपरा’ के माध्यम से हुआ। इसका मतलब है कि आवाज़ को ईश्वर से जोड़कर देखा गया।
2. भारतीय संगीत परंपरा में ‘राग’ और ‘स्वर’
भारतीय शास्त्रीय संगीत की नींव आवाज़ के सात सुरों पर है: सा, रे, गा, मा, पा, धा, नी। कहा जाता है कि तानसेन जब राग दीपक गाते थे, तो दीए जल उठते थे – यह आवाज़ की शक्ति का प्रतीक है।
दुनिया की कुछ आवाज़ें जो ‘पहचान’ बन गईं
1. लता मंगेशकर (भारत की स्वर-कोकिला)
उनकी आवाज़ इतनी साफ, सच्ची और आत्मा को छूने वाली थी कि वह किसी भी गीत को अमर बना देती थीं।
प्रसिद्ध गीत: ए मेरे वतन के लोगों,
लग जा गले, और
तू जहां जहां चलेगा।
न भूलने वाले गीत है ।
2. अमिताभ बच्चन (भारत की सबसे सशक्त आवाज़)
उनकी आवाज़ ने विज्ञापन, रेडियो, फिल्म, कविता – हर माध्यम में गूंज छोड़ी है।उदाहरण: कौन बनेगा करोड़पति, कवि सम्मेलन, पद्य पाठ
3. नेताजी सुभाष चंद्र बोस
सुभाष चंद्र बोस की प्रसिद्ध पंक्ति – “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा।”
4. मार्टिन लूथर किंग जूनियर-“I have a dream…” – इस भाषण ने अमेरिका की सोच बदल दी।आवाज़ की देखभाल कैसे करे ।गुनगुने पानी का सेवन करेंतेज़ चीखने या फोर्सफुल स्पीकिंग से बचें।धूम्रपान और अत्यधिक कैफीन से दूर रहें।रोज़ाना 5-10 मिनट ‘हमिंग’ या प्राणायाम करेंनींद पूरी लें और गले को सूखा न होने दें।
“कुछ आवाज़ें सिर्फ कानों से नहीं, दिल से सुनी जाती हैं।”
विश्व आवाज़ दिवस सिर्फ गायक या वक्ताओं का दिन नहीं, बल्कि हर उस व्यक्ति का उत्सव है जो बोलकर, गाकर, या पढ़कर, पढ़ाकर किसी के जीवन को बदलता है।
आज के दिन उन आवाज़ों को याद कीजिए, जो आपकी ज़िंदगी में कोई कहानी कह गई हैं। और अपनी आवाज़ को भी वह महत्व दीजिए, जिसकी वो हकदार है।
3 .आवाज की महत्ता का जश्न- डाॅ.दविंदर कौर होरा
आवाज अभिव्यक्ति का सबसे सशक्त माध्यम है। नवजात के जन्म लेने पर जब वह शब्दों से परिचित नहीं होता तब रुदन द्वारा अपने पालक तक अपनी जरूरतों और भावों को पहुंचाता है।
आवाज हमारी संवाद की सबसे महत्वपूर्ण विधा है, जो हमें दूसरों के साथ जुड़ने और अपने विचारों को साझा करने का अवसर प्रदान करती है। आवाज के माध्यम से हम अपने विचारों, भावनाओं और अनुभवों को दूसरों के सामने व्यक्त कर सकते हैं। आवाज हमारे जीवन में सतरंगी संसार सदृश्य है। आवाज कहानी, गीत- संगीत, नृत्य का माध्यम है। आवाज की दुनिया का बेताज बादशाह अमीन सायानी को रेडियो सुनने वाले आज भी नहीं भूले होंगे। लता मंगेशकर, अनुराधा पोडवाल, मोहम्मद रफी कई नाम ऐसे हैं जिन्होंने अपनी आवाज से करोड़ो दिलों पर राज किया और हमेंशा के लिए अमर हो गए।
विश्व आवाज दिवस की शुरुआत 2002 में ब्राजील के डाक्टरों और वाॅयस प्रोफेशनल्स ने की थी। बाद में यह एक अंतर्राष्ट्रीय दिवस बन गया। यह ENT विशेषज्ञों और स्पीच थैरेपिस्ट द्वारा समर्पित है।
इसका उद्देश्य लोगों को आवाज की देखभाल के प्रति जागरूक करना और आवाज के महत्व को समझाना है।
आवाज की देखभाल करना बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह हमारी संवाद की क्षमता को प्रभावित कर सकती है।
हमें अपनी आवाज की देखभाल करने के लिए कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए । जैसे-: अधिक जोर से ना बोलें. ज्यादा खट्टा या ठंडा ना खाएं, जिससे आवाज खराब हो।
आवाज हमारी पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो हमें अपने विचारों और भावनाओं को व्यक्त करने का अवसर प्रदान करती है। कुदरत की इस नेमत की देखभाल करनी चाहिए।
*नाम गुम जाएगा, चेहरा ये बदल जाएगा
मेरी आवाज ही पहचान है..गर ये ऐ दविंदर तुम्हें याद रहे।
4 .आवाज का जीवन में इतना महत्व है कि सन्नाटा काटने को दौड़ता है–वंदना दुबे, धार
आवाज का सीधा अर्थ ध्वनि से लिया जाता है। मधुर, कर्कश, धीमी, तेज आदि ।
जहां मधुर ध्वनि कानों में मिश्री घोलती है वहीं कर्कश और आवाज मानसिक तनाव पैदा करती है ।
पहले तो लोग प्राकृतिक ध्वनियों जैसे हवा की सरसराहट, अग्नि की चड़चड़ाहट, बादलों की गड़गड़ाहट,पानी की कल-कल ध्वनियों से ही परिचित थे लेकिन तकनीकी विकास ने हमारे आसपास ही आवाज का दायरा बढ़ा दिया हम फ्रिज,कूलर ,एसी आदि की आवाजों के इतने आदि हो गए हैं कि विद्युत अवरोध के बाद का सन्नाटा हमें इस बात का आभास कराता है कि हम कितने शोरगुल में जी रहे हैं।
बच्चों की मधुर किलकारियां जहां मन को खुशी देती हैं वहींडीजे की तेज कानफोडू आवाज दिल दहला देती है।कर्णप्रिय मधुर संगीत जहां स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद हैं वहीं आसपास अनेक प्रकार का शोर चिंता जनक है।
संगीत में सात स्वर और बाईस श्रुतियां हैं। अलग-अलग रागें जो गंभीर और चंचल प्रकृति की हैं।गीतों की धुनें हमारे मन पर इतना गहरे तक पैठ गई हैं कि कभी वो हमें रुलाती हैं,कभी हंसाती हैं,कभी रोमांटिक बनाती है तो कभी घोर निराशा में धकेल देती है।ध्वनि की प्रथकता ही है कि हम लता मंगेशकर, मोहम्मद रफी,किशोर कुमार की आवाजों को झट से पहचान लेते हैं।दृष्टिहीन व्यक्ति की श्रवणशक्ति इतनी मजबूत है कि किसी की पदचाप से ही वो उसे पहचान लेते हैं।
आवाज का जीवन में इतना महत्व है कि सन्नाटा काटने को दौड़ता है।
कोयल-सी तेरी बोली,
भौंरे की गुनगुन
तू जो मेरे सुर में सुर मिला लें टिप-टिप बरसा पानी
तुमने पुकारा और हम चले आए
या
बागों में बहार है — पीपल के ऊपर जा बैठा जैसे असंख्य गीत ध्वनि की पहचान कराते हैं।
इसलिए चहकते रहें, गुनगुनाते रहें हंसते और खिलखिलाते रहें और हां- – –
एक दूसरे को आवाज देते रहें।
5 .नाद ब्रह्म भारतीय दर्शन का आधार है -डॉ आरती दुबे
यूँ देखें तो आवाज उर्दू शब्द है । भारतीय संस्कृति में ध्वनि की कथा नाद से कही जाती है जो ब्रह्म के प्रथम उद्घोष को दर्शाता हैI नाद ब्रह्म भारतीय दर्शन का आधार है शिव और शक्ति की सृजनात्मक इच्छा का प्रथम स्फोट है नाद ब्रह्म।
कुण्डलिनी द्वारा उत्थान की इच्छा से ऊर्ध्व मुखी हो कर कंपन करते हुए सहस्रार भेदन करने से स्वर और व्यंजन की विविध बीजाक्षरियों में जन्मी ध्वनि ने अक्षर ब्रह्म की ध्वन्यात्मकता के भेद खोल दिए, शिव के डमरू के मनको का विस्मयकारी लय बद्ध वादन होने लगा, नर्तन करता पुरुष प्रकृति को प्रेम पूरित सर्जना हेतु प्रेरित करने लगा, और संसार बनने लगा, इस तरह क्रमशः अक्षर शब्द और लिपि का अविष्कारक ब्रह्म के नाद का आनंद लेने लगा । वाद्य यंत्र बजने लगे, मंत्र, ऋचाएँ एवं स्तुति गान से आकाश गुंजायमान हो उठा ।
और ध्वनिनिर्माता आनंदित हो उठा।
6 .आवाज़ मैं जादू उत्पन्न करने की क्षमता गॉडगिफ्टेड होती है-संध्या राणे
आवाज़ का जादू होता है जो हमारे जीवन को निश्चित ही प्रभावित करता है क्या यह बताने की जरूरत है कि हम अपने इंदौर की लता ताई की आवाज के जादू से कितने प्रभावित है? हम ही क्या पूरा विश्व उनकी आवाज़ का दीवाना है। हमारी पीढ़ी के लोग क्या अमीन सयानी, तबस्सुम जी आवाज़ भूल सकते हैं? शायद कभी नहीं।
आवाज़ एक शक्तिशाली माध्यम है किसी-किसी की आवाज़ मैं जादू उत्पन्न करने की क्षमता गॉडगिफ्टेड होती है। पर किसी में यह
गॉड गिफ्टेड नहीं होती है पर वह ऐसी मधुर वाणी बोलते हैं की अपनी आवाज़ मैं शब्दों की अभिव्यक्ति इतनी सुंदरता व सहजता से करते हैं कि लगता है बस उन्हें सुनते रहे,सुनते रहे। सुंदर व स्पष्ट शब्दों की अभिव्यक्ति की जब वक्त की नज़ाकत को देखते हुए अभिव्यक्त की जती है तो वह आवाज़ अनोखा प्रभाव छोड़ती है।
निश्चित तौर पर एक सुंदर आवाज सबको अपनी और आकर्षित करती है। अगर आप आत्मविश्वास से भरे हैं व स्पष्ट रूप से शब्दों की अभिव्यक्ति अपनी आवाज़ से करते है तो लोगों को अपनी और प्रभावित किए बिना नहीं रह सकते। आवाज़ में भावनाओं का संचार करना बहुत जरूरी है । यदि भावनाओं के अनुरूप आवाज़ की अभिव्यक्ति की जाए तो निश्चित ही है वह सुनने वालों को प्रभावित करती है।
आवाज़ के मामले में महत्वपूर्ण बात उस मां के लिए है लिए है जो मिलो दूरबैठे अपने बच्चों की आवाज़ फोन पर सुनती है औरपहचान जाती है, वह पहचान जाती है आवाज़ से
कि आज बच्चे की आवाज़ में दुख है ,तकलीफ है या फिर वह बेहद खुश है या बीमार है। मां और बच्चों के बीच दिल से जुड़ी न जाने कैसीबत है , जो एक दूसरे को देखें बिना सिर्फ आवाज़ से ही
पहचान जाते हैं कि आज मां- पिता की आवाज़ में कुछ गड़बड़ या परेशानी है, या उनकी खनकती आवाज से वे भी समझ जाते हैं की मां – पिता आज खुश है।
यह आवाज़ का प्रभाव ही है की सुनने वाले को अपने ढंग से प्रभावित कर देती है बशर्तें उसकी अभिव्यक्ति समय के मांग के अनुसार हो।
7 . गर्भस्थ शिशु को स्वस्ति वाचन , मंगलाचार सुनाने की परम्परा रही है -माधुरी सोनी ,आलीराजपुर
आज विश्व आवाज़ दिवस है ,जिसका चोंचला सोशल मीडिया पर हर दिवस प्रमुख से होता हे।
भारत में तो श्रुति परंपरा अति प्राचीन रही।राजा महाराजाओं के कुल वधू के गर्भधारण काल ओर प्रसव काल तक स्वस्ति वाचन , मंगलाचार सुनाने की परम्परा रही ताकि गर्भस्थ शिशु पूर्णतः स्वस्थ जन्म ले , गूंगा बहरा नहीं हो।
लोक काल में भी थाली बजाई जाती थी कि बच्चे की श्रवण और वाक् क्षमता परखे जाने हेतु की शिशु श्रवण और वाक् में कैसा हे।वर्णोच्चारण ही यदि सटीक नहीं तो बोलने का कोई अर्थ ही नहीं रह जाता।
ब्राजील जैसे देश में १६अप्रैल का दिवस वोकल कॉर्ड फॉर स्पीच थैरेपी एंड स्पेशल dumb and hearing tritment के तहत ऐसे व्यक्तियों व बच्चों को विभिन्न आवाज़ सुनाकर उपचार किया जाता है।विज्ञान के अनुसार भी ध्वनि की क्षमता भी तरंग दैर्ध्य पर आधारित है। अतः जो बोलने एवं श्रवण बाधित मानव हैं उनके लिए विशिष्ट यंत्रों का आविष्कार और उपचार किया जा सके।वैसे हमारे ऋग्वेद में भी अलग अलग शास्त्र सम्मत विधान हर विषय वस्तु के अध्ययन पर लिखे गए हैं ।
बीकानेर के डूंगरपुर राजकीय विश्वविद्यालय के डॉ विक्रमजीत सिंह जी ने न केवल इस विषय पर शोध किया बल्कि एक पुस्तक भी शोध उपरांत लिखी हे वर्णोच्चार शिक्षाशास्त्र।जब उच्चारण ही सही नहीं होगा तो बोलने की कला कैसे प्रभावी होगी।विषय यहां आवाज़ की दुनिया से है जो हर किसी की प्रभाविता,पसंद नापसंद और विभिन्न तरीके से गले से हूबहू आवाज़ निकालने पर भी केंद्रित हे।
आवाज का अपना विज्ञान वाकई एक तरन्नुम की तरह हे, जहां स्वर लहरियां भी सृजित हो उठे।
आवाज़ से ही स्वरों,अलंकारों,नाद का जन्म भारत में वर्षों पुराना जन्म ले चुका।
कहीं नवरस भी आवाज़ को मुखरित किए हुए हैं।
शिशु से लेकर वृद्ध की कराह भी आवाज़ को रूप देती हे।
ओज,प्रभावी क्रांति ,मधुर,सभी कुछ भारत का ही स्वर रहा केवल पेटेंट करवाने का काम ये विदेशी धरती पर ?
अफ्रीका ब्राजील जैसे देश को वॉयस ऑफ द डे के नाम पर ,स्पीच थैरेपी और वोकल जैसे उपचार से दिवस का आग़ाज़।
हैरानी होती हे मुझे लोग भारत को कब जानेंगे।कब हमारे शास्त्र इतिहास को पढ़कर शोध करेंगे और भविष्य में आगे बढ़ाएंगे।
8 .ब्रह्म नाद: अनहद की गूँज है -डॉ तेज प्रकाश व्यास
ब्रह्म नाद, एक ऐसा शब्द जो अपने भीतर ही एक गहन रहस्य समेटे हुए है। यह केवल ध्वनि नहीं, बल्कि वह आदिम स्पंदन है जिससे इस ब्रह्मांड का जन्म हुआ माना जाता है। यह वह अनहद नाद है, जो बिना किसी बाहरी आघात के, अनाहत रूप से निरंतर गूँज रहा है। यह सृष्टि की लय है, जीवन का संगीत है, और आत्मा की गहराई में छिपी हुई अनन्त शांति का स्रोत है।
कल्पना कीजिए, एक शांत सरोवर के किनारे बैठे हैं। बाहरी कोलाहल शांत हो चुका है, और भीतर एक सूक्ष्म ध्वनि उभरने लगती है। यह किसी वाद्य यंत्र से उत्पन्न नहीं हो रही, न ही किसी कंठ से उच्चारित हो रही है। यह तो उस मौन की गहराई से आ रही है, जो सभी ध्वनियों का आधार है। यही ब्रह्म नाद है, जो हर क्षण हमारे भीतर और बाहर व्याप्त है, बस उसे सुनने के लिए एक शांत मन और खुली चेतना की आवश्यकता है।
प्राचीन ऋषियों और योगियों ने इस नाद को अपनी गहरी साधना में अनुभव किया था। उन्होंने जाना कि यह केवल एक श्रव्य अनुभव नहीं है, बल्कि एक ऐसी शक्ति है जो मन को एकाग्र करती है, चेतना को विस्तृत करती है, और आत्मा को परमात्मा से जोड़ती है। ब्रह्म नाद की उपासना एक गहन आध्यात्मिक यात्रा है, जिसमें साधक धीरे-धीरे अपने भीतर की उस अनन्त ध्वनि के साथ एकाकार होता जाता है।
इस नाद के अनेक रूप बताए गए हैं। कभी यह वीणा की मधुर तान जैसा सुनाई देता है, कभी शंख की गंभीर ध्वनि जैसा, तो कभी झरते हुए जल की कलकल या फिर भौंरे की गुंजार जैसा। यह विविधता उस एक ही परम ध्वनि के विभिन्न आयामों को दर्शाती है, जो सृष्टि के कण-कण में व्याप्त है।
ब्रह्म नाद को सुनने का अर्थ है स्वयं के भीतर गहरे उतरना। यह बाहरी इंद्रियों से परे एक अनुभव है, जिसे केवल अंतर्ज्ञान से ही समझा जा सकता है। जब मन शांत होता है और विचार थम जाते हैं, तो यह सूक्ष्म ध्वनि स्पष्ट होने लगती है। यह भय और चिंता को दूर करती है, मन को शांति और स्थिरता प्रदान करती है, और जीवन के प्रति एक गहरी समझ विकसित करती है।
आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में, जहाँ बाहरी शोरगुल इतना अधिक है, ब्रह्म नाद को सुनना और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। यह हमें उस शांत केंद्र से जोड़ता है जो हमारे भीतर हमेशा मौजूद है। थोड़ी देर के लिए रुककर, अपनी इंद्रियों को शांत करके, और अपने भीतर की गूँज पर ध्यान केंद्रित करके हम उस अनन्त शांति और आनंद का अनुभव कर सकते हैं जो ब्रह्म नाद में निहित है।
9 .आवाज वायुमंडल में गूंजती रहती है कंपनों के रूप में इसलिए सोच -समझ कर बोलना चाहिये-नीति अग्निहोत्री
ब्राजील का नेशनल वॉयस डे अंतर्राष्ट्रीय वॉयस डे बन गया । सन् 2018 में पचास देशों में करीब छै सौ कार्यक्रम आयोजित हुए थे।इस दिन का उद्देश्य लोगों को आवाज के प्रति जागरूक करना है । विशेषकर जो अपनी आवाज का उपयोग अपनी पेशेवर जिंदगी में ज्यादा करते हैं ,उन्हेंसावधानी रखनी चाहिये।
आवाज न केवल संवाद का माध्यम है ,अपितु यह हमारी पहचान और अभिव्यक्ति का भी माध्यम है ,जो हमारे भाव व विचार को प्रकट करती है।गलत तरीके से बोलने या चिल्ला कर बोलने से आवाज पर बुरा असर पड़ता है। बहुत तेज या लंबे समय तक नहीं बोलें । गले को खुश़्क नहीं होने देना चाहिए और पानी पीते रहना चाहिये। धूम्रपान,तंबाखू सेवन और मदिरा से बचें। आवश्यकता पड़ने पर आवाज के विशेषज्ञ से राय लें
यह दिवस आवाज की समस्याओं को रोकने और विचलित आवाज को प्रशिक्षित करने तथा आवाज के कार्य व अनुप्रयोग पर शोध करने की आवश्यकता के बारे में वैश्विक जागरूकता लाता है । चिकित्सा ,भाषा,भाषण, संगीत ,ध्वनि विज्ञान ,मनोविज्ञान ,भौतिकी ,जीव विज्ञान ,कला व जीव विज्ञान के संदर्भ में ध्वनि उत्पादन के अध्ययन तथा प्रयोग करने पर बल देता है ।जो बोल नहीं पाते उनके लिये विशेष यंत्र बनाए जायें ,ताकि उनका उपचार हो सके।
आवाज वायुमंडल में गूंजती रहती है कंपनों के रूप में इसलिए सोच -समझ कर बोलना चाहिये । मंत्रों का सही उच्चारण ही विशेष प्रभावी होता है। मंत्रों का प्रभाव पूर्णत: वैज्ञानिक प्रक्रिया है। बार -बार किसी मंत्र मंत्रोच्चारण से उस मंत्र से जुड़ा अपेक्षित फल मिलता है यह हमारे ऋषि-मुनि बता गये हैं।