यज्ञोपवीत संस्कार- पुनर्संस्कार: क्या है श्रावणी उपाकर्म?

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यज्ञोपवीत संस्कार- पुनर्संस्कार: क्या है श्रावणी उपाकर्म?

डॉ. तेज प्रकाश व्यास की विशेष प्रस्तुति

श्रावणी उपाकर्म वैदिक परंपरा का एक पवित्र दिवस है, जिसमें ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य आदि वेदाध्ययन करने वाले लोग यज्ञोपवीत (जनेऊ) का नूतन धारण करते हैं, ऋषियों का तर्पण करते हैं, और संस्कार का स्मरण व नवीनीकरण करते हैं। यह दिवस श्रावण पूर्णिमा को मनाया जाता है।

1. उपाकर्म का शाब्दिक अर्थ:

उप + आ + कर्म = निकट आकर करने योग्य कर्म।

इसका अर्थ है: वेदाध्ययन आदि शुभ कार्यों को शुद्धता एवं संकल्प के साथ आरंभ करना।

2. यज्ञोपवीत (जनेऊ) का महत्व:

यज्ञोपवीत का तात्पर्य है – ज्ञान, धर्म और संयम का सूत्र।

तीन सूत्र:

ब्रह्मा, विष्णु, महेश की स्मृति।

शरीर, मन, वाणी की शुद्धता।

सत, रज, तम – तीन गुणों+ का संतुलन।

3. ऋषि तर्पण:

इस दिन सप्तऋषियों (कश्यप, अत्रि, भारद्वाज, वशिष्ठ, गौतम, जमदग्नि, विश्वामित्र) का तर्पण किया जाता है।

हम ऋषियों के ऋणी हैं – इस भावना से कृतज्ञता प्रकट की जाती है।

4. वेदाध्ययन का आरंभ:

यह दिन वेदाध्ययन (स्वाध्याय) की शुरुआत का पवित्र समय है।

गुरु की अनुमति से “स्वाध्यायोऽध्येयः” का संकल्प लिया जाता है।

5. स्नान, संकल्प और आचमन:

प्रातःकाल नदी या स्वच्छ जल से स्नान।

फिर संकल्प लेकर तर्पण, ऋषियों का आवाहन और हवन किया जाता है।

6. किसे करना चाहिए?

विशेषकर द्विज (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य) जो सावित्री उपनयन संस्कार (जनेऊ संस्कार) कर चुके हैं।

विद्यार्थी, वेदपाठी, गुरुजन, याज्ञिक – सभी के लिए विशेष रूप से।

7. धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख:

मनुस्मृति, गृह्यसूत्र, धर्मशास्त्र, और श्रौतसूत्रों में इसका विस्तृत वर्णन है।

इसे संस्कारों का पुनर्जागरण दिवस माना गया है।

8. गायत्री जप का विशेष दिन:

इसी दिन गायत्री मंत्र का विशेष जप, ध्यान और यज्ञ करने की परंपरा है।

यह बुद्धि, ज्ञान और आत्मिक जागरण को पुष्ट करता है।

9.संकल्प मंत्र (उदाहरण):

“अमुक गोत्रस्य अमुक नामधेयस्य, अपमृत्युहरणं, आयुरारोग्यादिसिद्ध्यर्थं, ऋषितर्पणपूर्वकं, यज्ञोपवीतधारणं करिष्ये।”

10. सामाजिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक महत्व:

यह परंपरा हमें ऋषियों से जुड़ने, अपने धर्म के मूल को याद करने, और जीवन की पवित्रता को पुनर्स्थापित करने की प्रेरणा देती है।

जनेऊ का ऊर्जा संतुलन और स्नायु तंत्र पर भी सकारात्मक प्रभाव बताया गया है।

11. समय की अनुकूलता:

यह संस्कार ब्रह्ममुहूर्त में या प्रातःकाल 6–8 बजे के बीच संपन्न करना उत्तम होता है।

श्रावण पूर्णिमा को यह पर्व गुरु-ऋषि पूजन, रक्षा सूत्र (राखी), और दान के रूप में भी मनाया जाता है।

12. समकालीन सन्देश:

इस उपाकर्म को केवल परंपरा न मानें, यह आत्म-संस्कार का उत्सव है।

इसे नव पीढ़ी तक पहुँचाना संस्कृति की जिम्मेदारी है।

उपसंहार:

श्रावणी उपाकर्म आत्मा को ऋषियों के ज्ञान से जोड़ने, धर्म का स्मरण करने, और जीवन को पवित्र पथ पर लाने का अनुपम अवसर है। यह आत्मिक रिबूट (Reboot) जैसा है – जैसे हम शरीर को स्नान से शुद्ध करते हैं, वैसे ही आत्मा को उपाकर्म से शुद्ध करते हैं।