हां मैं मध्यप्रदेश हूं…

437

हां मैं मध्यप्रदेश हूं…

हां आज यानि एक नवंबर 2022 को अपना 67 वां स्थापना दिवस मना रहा मैं मध्यप्रदेश हूं। मैंने पिछले 66 साल में कम से कम 90 कदम तो आगे बढ़ाए ही हैं। इसमें से ज्यादातर कदम पिछले 19 साल में ही आगे बढ़ा पाया हूं। बुरा मानने वाली बात नहीं है, पर 20वीं सदी में हमारा आकार भी बहुत बड़ा था और चुनौतियां और जद्दोजहद भी बहुत ज्यादा थीं। और अगर देखा जाए तो दूसरों से आगे निकलने की जिजिविषा वाला नेतृत्व भी यदाकदा ही नजर आया था मुझे बीसवीं सदी में। बाकी तो शासक की तरह आए और एक ढर्रे पर चलने के आदी बन शासन कर चले गए। प्राकृतिक संसाधन बहुत थे हमारी धरोहर में, पर उनका उपयोग निहित स्वार्थों में ज्यादा और राज्य हित में कुछ क्या बहुत कम ही देखा मैंने। पानी बहुत बहता रहा, लेकिन धरती प्यासी नजर आती रही और लोगों का मुंह भी सूखा सूखा सा नजर आता रहा था मुझे।
सड़कों पर गड्ढों का साम्राज्य नजर आना कोई अजूबा नहीं था, अजूबा था तो चकाचक सड़क नजर आना। बिजली की बात करें तो यही कहा जा सकता है कि रोशनी की उम्मीद में अंधेरा तानाशाही से भरा राज चला रहा था। उस समय मुझे भी यह शिकायत नहीं थी कि बिजली मुट्ठी भर शहरों-कस्बों में क्यों है और गांवों से नदारद क्यों है? क्योंकि हम चिमनी और लालटेन के आदी थे उस समय। बिजली के खंभों को हमने सब्र से लगने दिया और तारों की शहर-गांव की यात्रा का आनंद भी खूब उठाया। डॉक्टर और मुट्ठी भर सरकारी अस्पतालों में भी हमने अपनी सांसें नहीं उखड़ने दी। जितने स्कूल थे उनमें ही काम चलाने की मजबूरी से समझौता कर जीते रहे। कानून व्यवस्था की तो क्या बात करनी। थानेदार तो दूर हवलदार साहब ने जो चाहा, वही सहना हमारी किस्मत थी। खैर हम स्थितियों से जूझते रहे और अपने अच्छे समय का धैर्य और शांति से प्रतीक्षा करते रहे।
पिछले 19 साल में हमने बिजली, सड़क और पानी, रोटी, कपड़ा और मकान की नई यात्रा शुरू की। शिक्षा, स्वास्थ्य और विकास का नया दौर देखा। इतिहास रचे गए। कृषि उत्पादन और कृषि कर्मण पुरस्कारों के। बिजली उत्पादन और आधिक्य में उपलब्धता के। प्रदेश में बिछे सड़कों के जाल के। सिंचाई क्षमता में बढोतरी के। पर्यटन और नगरीय विकास के। वन्य जीवों के संरक्षण और संवर्धन की लंबी यात्रा के। स्वच्छता और  समृद्धि के विस्तार के। हां मैं मध्यप्रदेश हूं, जिसने सन् 2000 में अपने एक हिस्से को खोने का दु:ख भी मनाया। पर तीन साल बाद मैंने जो कदम आगे बढ़ाए तो फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। इंदौर, भोपाल, जबलपुर, ग्वालियर हों या फिर झाबुआ, सिंगरौली, बैतूल और श्योपुर…विकास और विश्वास ने अपनी जगह बनाई है। हालांकि हमारी आंखों में आंसू आते हैं, जब हमारी मां-बहनों पर अत्याचार होता है। हमारी आंखें नम होती हैं, जब सरकार की लाड़ली लक्ष्मियां दु:खी होती हैं दुराचारियों की करतूतों से। हम फूट-फूटकर रोते हैं जब अपराधियों के पंजे निर्दोषों की सांसों को नौंचते हैं। पर इसकेे रिए हम और हमारे नागरिक ही दोषी हैं, जिनका गैर जिम्मेदाराना व्यवहार हमें लज्जित होने को मजबूर करता है।
हमें भरोसा है कि जल्दी ही हम ऐसी स्थितियों से पार पा लेंगे। हम अब बीमार नहीं हैं, स्वस्थ हैं। स्वस्थ शरीर में स्वस्थ दिमाग होता है और स्वस्थ  दिमाग मुझे नए-नए मुकाम पर पहुंचा रहा है और जल्द ही हम आत्मनिर्भर और विकसित राज्य बनकर देश में नंबर एक पायदान पर पहुंचकर गर्व की अनुभूति भी करेंगे। मुझे भरोसा है, आप भी करिए। जहां-जहां दीमक नजर आ रहा है, उसे हम जल्दी ही नष्ट कर प्रदेश को पूरी तरह से व्याधिमुक्त कर सर्वश्रेष्ठ बनाकर ही दम लेंगे। ह्रदय प्रदेश की धमनियों में विकास रक्त निर्वाध दौड़ेगा। शांति का यह टापू योग, ध्यान, धर्म और संस्कार, प्रेम और भाईचारे का पर्याय बन नए आयाम गढ़ेगा। मुझे भरोसा है, आप भी भरोसा करिए। हमारे 67 वें स्थापना दिवस समारोह को राजधानी के लाल परेड ग्राउंड में मध्यप्रदेश गान, शिव महिमा और फिर शंकर-एहसान-लॉय की प्रस्तुति ने मेरा मन मोह लिया। हां मैं मध्यप्रदेश हूं…उज्जैन में महाकाल का सेवक हूं और ओरछा में रामराजा की वंदना करता हूं। मां नर्मदा मेरी प्यास बुझाती हैं और मैं विंध्य-सतपुडा की वादियों में ऊर्जा से भर जाता हूं। सातों रंगों से सजा मैं मध्यप्रदेश प्रदेशवासियों की हर खुशी में रंग भरता रहूंगा…कभी निराश नहीं करूंगा…। बीसवीं सदी में धीरे-धीरे चलकर भी मैंने धैर्य नहीं खोया और 21 वीं सदी के पिछले 19 साल में तेजी से दौड़ लगाकर भी मैं थका नहीं हूं…आगे भी मैं चीते की रफ्तार से तुम सभी की खुशियों का विस्तार करता रहूंगा। मैं तुम्हारा मध्यप्रदेश हूं…।