योग दिवस विशेष : योग यानी मानव कल्याण का समग्र दृष्टिकोण
डॉ हरीसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय सागर की कुलपति प्रो नीलिमा गुप्ता का कॉलम!
योग हमारी प्राचीन भारतीय परंपरा का एक अमूल्य उपहार है। योग, शारीरिक एवं मानसिक कल्याण को बढ़ावा देता है। यह लगभग 05 हजार वर्ष पहले से हमारी संस्कृति का हिस्सा रहा है, लेकिन विगत कुछ वर्षों में योग की महत्ता पूरी दुनिया ने स्वीकार की है। जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं कि इस सदी में हमने महसूस किया है कि योग ने दुनिया को एकजुट किया है। तो इसकी प्रासंगिकता स्वतः स्पष्ट हो जाती है। योग शब्द संस्कृत मूल युज से व्युत्पत्ति हुआ है। जिसका अर्थ है जुड़ना, जोड़ना या एकजुट होना। कहने का आशय यह है कि जो मन और शरीर की एकता का प्रतीक है, वही योग है। साल 2015 से प्रतिवर्ष 21 जून को ‘अंतरराष्ट्रीय योग दिवस’ मनाया जाता है। इस वर्ष अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की थीम ‘एक विश्व, एक स्वास्थ्य’ है। जो कहीं न कहीं वसुधैव कुटुम्बकम की भावना से मेल खाता है।
आज़ादी के अमृत काल में इस बार संयोग है कि भारत जी-20 की अध्यक्षता कर रहा है। दूसरी तरफ़ योग दिवस के माध्यम से सम्पूर्ण विश्व के जन को निरोगी और स्वस्थ देखना चाहता है। निःसन्देह भारत का विचार सदैव से आपसी सामंजस्य और सद्भाव का रहा है और योग भी मानव और प्रकृति के बीच सामंजस्य के साथ स्वास्थ्य और मानव कल्याण का एक समग्र दृष्टिकोण है। योग शरीर और मन का मिलन सिर्फ आसनों व प्राणायाम तक ही सीमित नहीं है, वरन वह शारीरिक, मानसिक और भौतिक स्थिति को उसके उच्चतम स्तर पर ले जाने में सक्षम है। योग भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अंग है और मनुष्य के जीवन में योग एक स्वास्थ्य बीमा है, जो एक व्यक्ति और समाज को खुशहाली और समृद्धि की राह दिखाता है।
योग विभिन्न आसन, प्राणायाम, ध्यान और धारणा के माध्यम से शरीर और मन को नियंत्रित, स्थिर करने के साथ शांति प्रदान करता है। छात्रों के जीवन में योग का विशेष महत्व है। योग के अभ्यास से छात्रों का शारीरिक स्वास्थ्य और मानसिक अवस्था सुदृढ होती है। योगाभ्यास से जहां शरीर में लचीलापन आता है। वहीं व्यायाम और योग के माध्यम से शरीर में ऊर्जा का स्तर भी बढ़ता है। मशीनीकरण के बढ़ते युग में छात्रों को योग और व्यायाम की दिशा में प्रेरित करना बेहद जरूरी है, क्योंकि एक छात्र राष्ट्र की अमूल्य निधि होता है। जिसका शारीरिक और मानसिक रूप से सबल होना आवश्यक है। योग छात्रों की पढ़ाई के प्रति सक्रियता और ध्यान केंद्रित करने की क्षमता में सुधार लाता है। योग के द्वारा मानसिक स्थिरता की प्राप्ति भी होती है। योग में ध्यान और मन को नियंत्रित करने के तकनीकों का अभ्यास करने से छात्र स्वयं को संयमित कर सकते हैं और मन की गतिविधियों को नियंत्रित कर सकते हैं। उनकी मनोदशा, सोचने की क्षमता और सामरिक क्षमता में योग द्वारा अभूतपूर्व लाभ होता है।
योग आध्यात्मिक विचारधारा का प्रमुख अंग है। यह शरीर, मन और आत्मा के संतुलन को विकसित करने का एक प्राकृतिक तरीका है। योग का शिक्षा में एक महत्वपूर्ण योगदान है क्योंकि इसका अभ्यास छात्रों के जीवन को स्वस्थ, स्थिर, और समृद्ध बनाने में मदद करता है। छात्र अपने दिमाग, शरीर और मन को योग द्वारा विकसित कर सकते हैं और सफलता की ओर अग्रसर हो सकते हैं। निकट वर्षो में योग की स्वीकार्यता बढ़ी है तथा योग शिक्षा एवं योग विशेषज्ञों की माँग शैक्षिक संस्थानों से लेकर कॉरपोरेट कंपनियों में तीव्र गति से बढ़ रही है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के माध्यम से भी हमारी सरकार ने योग को अहमियत दी है और इसे शिक्षा का अभिन्न हिस्सा माना है। योग शिक्षा को सम्पूर्ण शिक्षा प्रक्रम में सम्मिलित करने का उद्देश्य बहुत व्यापक है। जिसके माध्यम से केंद्र सरकार चाहती है कि छात्रों को स्वस्थ, जीवंत और संतुलित जीवन जीने के लिए आवश्यक योग्यता प्राप्त हो सके। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में योग को स्वास्थ्य, नैतिक मूल्यों, शारीरिक शिक्षा, मानसिक संतुलन तथा अध्यात्मिक विकास के पहलुओं के साथ जोड़कर बताया गया है। इसके अनुसार, सभी शिक्षण संस्थाओें में योग के लिए विशेष पाठ्यक्रम और गतिविधियां शामिल की जानी चाहिए।
योग शिक्षार्थियों के शारीरिक और मानसिक संघटकों को संवारने, स्वास्थ्य सुधारने, तंदुरुस्ती बढ़ाने, तनाव को कम करने, ध्यान को विकसित करने, स्वाभाविक रूप से विश्राम करने, एकाग्रता को बढ़ाने और नैतिक मूल्यों को समझाने का माध्यम बनाता है। डॉ हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय भारत का पहला विश्वविद्यालय है। जिसने योगा को 1959 में स्नातक स्तर पर एक वैकल्पिक विषय के रूप में प्रारंभ किया, सन 2001-2002 से योग विषय में स्नाकोत्तर तथा इसी वर्ष से यूजीसी पाठ्यक्रम पर आधारित योग विषय में एमएससी. पाठ्यक्रम प्रारंभ किया। कई छात्र योग विषय में शोध भी कर रहे हैं तथा यह विभाग विश्व स्तर पर एक अनूठी पहचान बना चुका है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति में योग शिक्षा को आधिकारिक रूप से समर्थित किया गया है और शिक्षकों को छात्रों की योग शिक्षा क्षमता को विकसित करने के लिए प्रशिक्षण प्रदान करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि छात्रों को योग की अच्छी शिक्षा दी जाएगी और वे योग के लाभों का सही रूप से उपयोग कर सकेंगे। राष्ट्रीय शिक्षा नीति मूल्य आधारित शिक्षा पर भी बल देती है। योग का अभ्यास छात्रों के सामाजिक और नैतिक मूल्यों का विकास करने में भी मदद करता है तथा छात्रों में आत्मविश्वास, सद्भाव और सामरिकता की भावना विकसित करती है। सकारात्मक भावनाओं के साथ वे संयमित और सहनशील बनते हैं एवं उनके बीच सहयोग, समरसता और विवेक की भावना विकसित होती है।
महत्वपूर्ण बात यह है कि योग का अभ्यास न केवल शिक्षा के दौरान ही हो, बल्कि इसे छात्र जीवन भर अपना लेते है जिससे कि उनकी जीवन शैली ही योग-मय होकर उनके जीवन को ख़ुशहाली की दिशा में ले जाती है। योग का अभ्यास छात्रों को स्वतंत्रता, विचारशीलता और समस्याओं का समाधान करने की क्षमता प्रदान करता है और उन्हें सफल और सुखी जीवन की ओर अग्रसर करता है। योग शिक्षा स्वस्थ्य नागरिक के निर्माण करने में मदद करती है क्योंकि यह शारीरिक और मानसिक सुख, स्थिरता और स्वास्थ्य की और ले जाता है। योग शिक्षा को स्वस्थ्य नागरिक का निर्माण करने के लिए जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है।
इसे समस्त शिक्षण संस्थानों, सार्वजनिक स्थलों, और कार्यालयों में शामिल करके योग की शिक्षा को सभी तक पहुंचाना अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का ध्येय है। सरकार द्वारा योग को समर्पित कार्यक्रमों का पूर्ण रुप से पालन करके सभी लोग स्वस्थ, सुखी और सक्रिय जीवन जी सकते हैं और एक स्वस्थ नागरिक निर्माण कर समाज के ओजस्व को बढ़ा सकते हैं। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर योग शिक्षा को जन-जन पहुँचाने का संकल्प हमें लेना चाहिए, ताकि हम एक स्वस्थ तथा खुशहाल भारत का निर्माण कर सकें तथा ‘हर आंगन योग’ की परिकल्पना को पूर्ण कर सकें। योग शिक्षा द्वारा हम सिर्फ भारत के लिए ही नहीं, पूरे विश्व में योग एकता द्वारा एक अनूठी मिसाल स्थापित कर सकते हैं।