ज्योतिष के दर्पण में सूर्यग्रहण का राशिगत व क्षेत्रगत प्रभाव
सुविख्यात ज्योतिषाचार्य अशोक शर्मा से वरिष्ठ पत्रकार चंद्रकांत अग्रवाल की बातचीत
भारतीय संस्कृति के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में कार्तिक कृष्ण पक्ष में पांच दिवसीय पर्व है दीपावली, जो धनतेरस से भाई दूज तक चलता है। इस वर्ष अमावस्या को सूर्य-ग्रहण होने से भ्रम एवं संशय की स्थितियां बनी हुई है।। चूँकि यह त्यौहार, अमावस्या को मनाया जाता है और अमावस्या को ही सूर्य ग्रहण है। अतः मैंने सबसे पहले देश के सुविख्यात ज्योतिषाचार्य अशोक शर्मा से जो दिल्ली,भोपाल के सत्ता व ब्यूरोक्रेसी के गलियारों तक में अपने सटीक फलित के लिए काफी लोकप्रिय हैं,से सूर्य ग्रहण के विषय में ही सर्वप्रथम बात की तो उन्होंने कहा कि 25 अक्टूबर मंगलवार को उदया तिथि में अमावस्या है। उसी दिन भारत में आंशिक सूर्य ग्रहण पड़ रहा है, जो भारत के कई शहरों में दिखाई देगा। यह सूर्य ग्रहण 25अक्टूबर को वैसे तो विश्व स्तर पर दोपहर 11.28 से प्रारंभ हो सायं 6.33 बजे तक चलेगा।लेकिन भारत में यह ग्रहण सायं 4.42 बजे से 6.29 बजे तक आंशिक रूप में रहेगा। इटारसी में यह ग्रहण शाम 4.44 बजे से दिखाई देगा। ग्रहण का प्रभाव चूंकि विश्व में सभी क्षेत्रों पर पड़ता है। अतः यह विचारणीय विषय होता है, ज्योतिष की दृष्टि से । धार्मिक मान्यता के अनुसार ग्रहण का सूतक 12 घण्टे पूर्व यानि इटारसी मे 25 अक्टूबर की प्रातः 04.44 बजे से प्रारंभ हो जाएगा, जो कि ग्रहण के मोक्ष होने तक मान्य होगा।
ग्रहण का मोक्ष शाम 6.29 बजे होगा और सूर्यास्त 05.40 बजे होगा। चूंकि सूर्यास्त ग्रहण के साथ ही हो जाएगा अतः चूँकि ग्रहण दृश्य पर्व है,इसलिए इसमें स्थानीय समय का विशेष महत्व होता है अतः स्थानीय मान्यता या ज्ञानियों की राय से स्वैच्छिक रूप से जो लोग अनुमानित मोक्ष के आधार पर सायंकाल शुद्धि एवं धार्मिक कार्य करना चाहते हैं , वे कर सकते है और प्राचीन मान्यता के अनुसार (धर्मशास्त्रों का प्रमाण- नहीं ) दूसरे दिन प्रातः काल सूर्य दर्शन के समय शुद्धि एवं धार्मिक कार्य सम्पन्न कर सकते हैं। अब मैंने उनसे इस ग्रहण के राशि गत व अलग अलग क्षेत्रों में प्रभाव बताने को कहा तो वे बोले कि ज्योतिष के अनुसार यह ग्रहण स्वाती नक्षत्र में तुला राशि पर हो रहा है। तुला राशि में चूंकि सूर्य नीच का होता है अत: तुला राशि वालों के लिए, कुंभ ,मकर ,और कन्या राशि वालों के लिए अशुभ फल देने वाला हो सकता है। वृषभ, सिंह, धनु और वृश्चिक राशि वालों के लिए यह शुभ फलदायी होगा। शेष राशियों के लिए यह मध्यम रहेगा। शेयर बाजार में, यह ग्रहण बहुत ज्यादा तेजी और बहुत ज्यादा मंदी का कारक होगा।
भौगोलिक परिस्थिति में विश्व में ध्रुवीय स्थितियां बनेगी। कुछ देशों के बीच तनाव की स्थितियां बनेगी विधोपकर रूस व यूक्रेन के मध्य युद्ध फिर से अपने चरम पर होगा। एशिया के कुछ हिस्सों में भूकंपीय या भूकंप आने की संभावना है। रहेंगी। महंगाई बढ़ सकती है। विश्व की प्रजा कई तरह की परेशानियों का सामना कर सकती है। वे बोले कि यह ग्रहण का संक्षिप्त वर्णन है। शेष विशेष वर्णन कार्तिक पूर्णिमा पर पड़ने जा रहे खग्रास चंद्र ग्रहण के समय पर बताऊंगा। अब दूसरा विषय मेरे समक्ष था कि दीपावली के अन्य पर्व जैसे धन तेरस,रूप चतुर्दशी आदि कब व कैसे मनाएं। मैने उनसे पूछा तो वे बोले कि धनतेरस वैसे तो 22 अक्टूबर शाम को सायंकाल 6.02 मिनिट से प्रारंभ होकर 23 अक्टूबर को सायं 6.03 बजे समाप्त होगी। चूंकि प्रत्येक तिथि सूर्योदय के साथ प्रारंभ नहीं होती, न ही सूर्यास्त के साथ समाप्त होती है अत: पिछले कुछ वर्षों में मोबाइल बाबाओं ने बड़ा बखेड़ा कर खड़ा कर रखा है। अतः जो लोग प्रदोष काल में धन तेरस की पूजा करते है वे 22 अक्टूबर शनिवार की शाम को 6 बजे से रात्रि 8.30 बजे तक के शुभ मुहुर्त में पूजन कर सकते हैं। जो लोग उदया तिथि के समर्थक हैं वे 23 अक्टूबर,रविवार को धनतेरस की पूजन कर सकते है। इसी तरह 24 अक्टूबर, सोमवार को दिन में चतुदर्शी होगी और शाम को 05.26 बजे से अमावस्या तिथि प्रारंभ से जाएगी, अतः रूप- चतुर्दशी का स्नान : तेल अभ्यंगन इत्यादि एवं छोटी दीपावली 24 को ही मनाई जाएगी।
चूंकि 5 बजकर 26 मिनिट से अमावस्या तिथि शुरू होगी, और गुजरी, लक्ष्मी पूजन का पर्व अमावस्या में ही मनाया जाता है। चूंकि इसमें निशीथ काल का महत्व है, (निशीथे तू रजनी मुखं – अर्थात रात्रि का प्रारंभ काल निशीथ कहा जाता है। और प्रदोष कॉल में ही लक्ष्मी पूजन का विधान है अतः गोधूली बेला के 04.52 बजे से स्थिर लग्न (वृषभ) द्विस्वभाव लग्न मिथुन, पुनः स्थिर लग्न (सिंह) में लक्ष्मी पूजन किया जाना श्रेष्ठ है। अब चूंकि दूसरे दिन 25 अक्टूबर को सुबह से ग्रहण का सूतक लगने के कारण (गोवर्धन पूजा एवं अन्नकूट का पर्व 26 अक्टूबर बुधवार को एवं भाई दूज या यम द्वितीया पर्व 27 अक्टूबर गुरुवार को मनाया जाएगा। चूंकि द्वितीया तिथि 26 अक्टूबर को दोपहर 02.42 बजे से प्रारंभ होकर 27 अक्टूबर को दोपहर 12.42 पर समाप्त होगी। ऐसे में उदया तिथि के मान के अनुसार 27 अक्टूबर को भाई दूज का शुभ मुहुर्त 11.06 से 12.46 बजे तक,भाई को टीका लगाकर मनाएं।
ग्रहण के सूतक के दौरान मूर्ति पूजा का निषेध है। इस दौरान खाने पीने की चीजो में तुलसी पत्र डालकर व कुशा से ढंक कर रखें। गर्भवती महिलाएँ गंगाजल व कुश अपने पास रखें। ग्रहण के मोक्ष के बाद गुड़,मसूर, गेहूं, तिल, वस्त्र आदि का दान करना चाहिए। विसर्जन को लेकर काफी भ्रांतियां होने से मैने इस संदर्भ में उनका पक्ष जानना तो उन्होंने कहा कि वास्तव में एक संशय बना हुआ है कि रात्रि में ही सूतक प्रारंभ हो जाने के कारण, पूजन सामग्री एवं मूर्ति के लिए क्या किया जाए? तो मेरा उत्तर यह है कि तुलसी पत्र- गंगाजल व कुशा पूजन स्थल में रखकर पूजन स्थल को अपनी सुविधा जानुसार ढांक दिया जाए एवं ग्रहण के मोक्ष के उपरांत अथवा दूसरे दिन उपयोग में लाया जाए अथवा तो रात्रि में की सूतक प्रारंभ होने से पूर्व विसर्जन कर समस्त सामग्री हटा ली जाए।*