Air Pollution से हो सकता है पार्किंसंस रोग का खतरा, जानें कैसे बचें
हाल ही में की गई कई रिसर्च ने इस बात की ओर इशारा किया है कि वायु प्रदूषण से पार्किंसन बीमारी होने का खतरा बढ़ता है. यह खतरा पर्यावरण को बचाने और और प्रदूषण को कम करने के महत्व को दर्शाता है.
अध्ययनों में पता चला है कि वायु प्रदूषण के PM (पार्टीकुलेट मैटर) के संपर्क में आने से पार्किंसन बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है. दिल्ली ने बताया कि पार्किंसन एक न्यूरोलॉजिकल बीमारी है जिसमें व्यक्ति का नर्वस सिस्टम प्रभावित होता है.
पार्टिकुलेट मैटर हवा में मौजूद छोटे कण होते हैं, जो रेस्पिरेटरी सिस्टम (श्वसन प्रणाली) में जा सकते हैं और संभावित रूप से विभिन्न रास्तों के जरिए मस्तिष्क तक पहुंच सकते हैं. एक बार मस्तिष्क में आ जाने से ये कण सूजन और ऑक्सीडेटिव तनाव को बढ़ा सकते हैं. ऐसा होने से पार्किंसंस बीमारी की शुरुआत होती है और बीमारी बढ़ती जाती है. ये मस्तिष्क से जुड़ा विकार है, जिसमें आपका दिमाग शरीर के अलग-अलग अंगों पर नियंत्रण रख पाने में असक्षम हो जाता है.
पार्किंसन रोग के लक्षण –
-हाथ पैर में कंपन
-बैलेंस बनाने में दिक्कत
-बातचीत करने में दिक्कत
-शरीर में अकड़न
-चलने में परेशानी
-बार-बार कंफ्यूज होना
-सुनने में कठिनाई
-छोटे-छोटे कदम बढ़ाना
-चलते वक्त लड़खड़ाना
-आवाज का धीमा होना
– डिप्रेशन
-बहुत ज्यादा पसीना आना
रिसर्च में सामने आई ये बात-
अमेरिका एरीजोना स्थित बैरो न्यूरोलॉजिकल इंस्टीट्यूट के साइंटिस्ट ने अपनी स्टडी में दावा किया है कि पार्किंसन रोग विकसित होने के लिए वायु प्रदूषण ही जिम्मेदार है. प्रदूषण के कारण यह जोखिम करीब 56 फ़ीसदी तक बढ़ जाता है. अब तक इस रोग के लिए खराब लाइफस्टाइल, खराब खान पान उम्र को जिम्मेदार माना जाता था लेकिन इस शोध में वायु प्रदूषण को भी मुख्य कारक के तौर पर गिना जा रहा है. हवा में पीएम 2.5 या इससे छोटा आकार के कुछ डस्ट पार्टिकल पाए जाते हैं जो सांस के जरिए ब्रेन तक पहुंच कर ब्रेन (ब्रेन हेल्थ के लिए वरदान है ये चीज़) में सूजन पैदा कर देते हैं, इसके चलते पार्किंसन की बीमारी पैदा हो सकती है.
रिसर्च के निष्कर्ष पार्किंसंस के खतरे को कम करने के लिए पर्यावरण को स्वच्छ रखने के महत्व पर ध्यान देने की जरूरत को दर्शाते हैं. इसके लिए शहरी नियोजन यानि हरित स्थानों, पैदल यात्री के अनुकूल क्षेत्रों और टिकाऊ परिवहन को प्राथमिकता देनी पड़ेगी. इससे कम वायु प्रदूषण होगा. इसके अलावा स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देने वाली नीतियां और उद्योगों के लिए कड़े एमिशन (उत्सर्जन) स्टैंडर्ड लागू करने से न्यूरोलॉजिकल स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण के हानिकारक प्रभावों से निपटने में मदद मिल सकती है.
ऐसे बचें-
वायु प्रदूषण के खतरे को कम करने के लिए व्यक्तिगत स्तर पर भी लोगों को कोशिश करनी चाहिए. जहां पर प्रदूषण बहुत ज्यादा हो वहां पर खास करके आउटडोर एक्टिविटी नहीं करनी चाहिए और अगर जरूरत पड़ी तो मास्क पहनकर बाहर निकलना चाहिए, नियमित एक्सरसाइज़ से न्यूरोप्रोटेक्टिव प्रभाव होता है. इससे मस्तिष्क पर वायु प्रदूषण का प्रभाव कम होता है.
इसके अलावा फलों, सब्जियों और नट्स में पाए जाने वाले एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर खानपान करने से प्रदूषण के कारण होने वाले ऑक्सीडेटिव तनाव से राहत पाई जा सकती है. एंटीऑक्सिडेंट से न्यूरोप्रोटेक्टिव प्रभाव होता है और पार्किंसंस बीमारी के खतरे को कम करने में मदद मिलती है.
जन जागरूकता अभियान समाज में वायु प्रदूषण के खतरों को कम करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं. बेहतर वायु गुणवत्ता को प्राथमिकता देने वाली पर्यावरण से संबंधित नीतियों को लंबे समय तक लागू करने से लोगों की सेहत में सुधार किया जा सकता है.