Environment Day Special: जीवन का अस्तित्व बचाना है, तो प्रकृति को बचाना जरुरी

पर्यावरण दिवस विशेष: जीवन का अस्तित्व बचाना है, तो प्रकृति को बचाना जरुरी

Environment Day Special: जीवन का अस्तित्व बचाना है, तो प्रकृति को बचाना जरुरी

प्रसिद्ध वैज्ञानिक विलियम रूकेल्सहॉस का एक कथन है ‘प्रकृति दोपहर का भोजन मुफ्त करती है, लेकिन केवल तभी, जब हम अपनी भूख को नियंत्रित कर लें। विश्व पर्यावरण दिवस 2022 अभियान ‘केवल एक पृथ्वी’ के नारे के साथ ‘प्रकृति के साथ सद्भावनापूर्ण व्यवहार’ पर केंद्रित है। प्रतिवर्ष 5 जून को मनाया जाने वाला यह दिन पर्यावरण संरक्षण और टिकाऊ जीवन में सक्रिय भागीदारी के महत्व पर जोर देता है।

संयुक्त राष्ट्र संघ का संदेश लोगों को प्रेरित करने के साथ-साथ उन्हें शिक्षित भी करता है कि पर्यावरण का संरक्षण क्यों जरूरी है। पर्यावरण बचाने की चिंता सबसे पहले 1972 के संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में व्यक्त की गई थी। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) के नेतृत्व में अपनी स्थापना के बाद से, विश्व पर्यावरण दिवस 1973 से प्रतिवर्ष 5 जून को मनाया जाता है और इस अभियान में लगातार सक्रिय प्रयासों की आवश्यकता पर काफी जोर दिया जा रहा है।

 Environment Day Special: जीवन का अस्तित्व बचाना है, तो प्रकृति को बचाना जरुरी

प्रकृति को हल्के में न लेते हुए उसके संकेतों को पढ़ना आवश्यक है। हम जिस हवा में सांस लेते हैं, जो पानी पीते हैं, सूरज की जो किरणें हम तक पहुँचती हैं और जो भोजन हर दिन हम खाते हैं, वे सभी पर्यावरण की देन हैं। ऐसे में यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि उनका सम्मान किया जाए और उनके मूल्यों को समझा जाए। आंकड़े बताते है कि हर दिन पौधों और जानवरों की बीस प्रजातियां विलुप्त हो रही हैं। पारिस्थितिकी के लिए जितनी जरूरी एक जीवाणु है उतना ही जरूरी बड़े कशेरुक भी हैं। इसलिए जैव विविधता का संरक्षण काफी महत्वपूर्ण है। सबका अस्तित्व एक दूसरे से जुड़ा हुआ है। जैव विविधता के नुकसान पर हमें सचेत होना होगा। क्योंकि पृथ्वी का अस्तित्व जैव विविधता पर ही टिका हुआ है. एक पृथ्वी की निर्मिति में इसकी अहम भूमिका है। पृथ्वी पर मौजूद संसाधनों के अन्यायपूर्ण दोहन पर रोक लगाने की जरूरत है।

प्रतिदिन 6 अरब टन कचरा समुद्र में छोड़ा जाता है। प्रदूषण के कारण भारत को प्रति वर्ष 2 लाख करोड़ रुपए के नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। प्रदूषित पानी पीने से हर 8 सेकेंड में एक बच्चे की मौत हो जाती है। पिछले 8 दशकों में 28% वनों की कटाई की गई। 1 वर्ष के लिए पृथ्वी के संसाधनों का 7 माह में उपभोग किया जा रहा है। यह स्थिति बताती है कि प्रकृति को हल्के में लेना पूरी हमारे लिए घातक है। यह बेपरवाही केवल मनुष्य के लिए ही नहीं बल्कि समग्र सृष्टि के लिए खतरनाक है।

 Environment Day Special: जीवन का अस्तित्व बचाना है, तो प्रकृति को बचाना जरुरी

भारत का नाम दुनिया के 15 सबसे प्रदूषित शहरों के देश में शुमार है। अध्ययनों से पता चलता है कि भारत में लगभग 700 मिलियन लोग प्रदूषित हवा के बीच जीवन-यापन कर रहे हैं। कोरोना महामारी ने हमें जिस हाल में लाकर खड़ा किया, वह चिंतनीय है। एक रिपोर्ट के अनुसार वायु प्रदूषण के कारण समय के पहले मौतें हो रही हैं और यह अब तक का शीर्ष रिकॉर्ड है। राष्ट्रों के लिए अच्छी अर्थव्यवस्था की आवश्यकता जरूर है, लेकिन लोगों का स्वस्थ रहना और स्वस्थ वातावरण में रहना भी उतना ही जरूरी है। हमें यह समझना होगा कि अर्थव्यवस्था प्रकृति का विकल्प कभी नहीं बन सकती!

अनियंत्रित ग्रीन हाउस गैस हमारे स्वास्थ्य और हमारे जीवन के लिए सबसे बड़ा जोखिम है। जलवायु परिवर्तन का कारण बनने वाली ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करके हम प्रदूषण में कटौती कर सकते हैं। जलवायु परिवर्तन से जुड़ी स्वास्थ्य चेतावनियां नजर अंदाज करने योग्य नहीं हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक शोध के अनुसार जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के कारण वातावरण में गर्मी बढ़ती जाएगी और कुपोषण में वृद्धि होगी। एक अनुमान है कि इससे वर्ष 2030 और 2050 के बीच प्रति वर्ष लगभग 2,50,000 मौतें होंगी।


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आज पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली वैज्ञानिकों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं की प्रमुख चिंताओं में से है. पारिस्थितिक तंत्रों बहाली में नष्ट हो चुके पारिस्थितिक तंत्रों का पुनर्विकास और उनका संरक्षण ही एक मात्र रास्ता है जिससे अभी भी इस दिशा में हम बहुत कुछ हासिल कर सकते हैं। समृद्ध जैव विविधता के साथ स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र, अधिक उपजाऊ मिट्टी, लकड़ी और मछली की बड़ी पैदावार और ग्रीन हाउस गैसों के बड़े भंडार जैसे उपाय इस अभियान में सहायक हो सकते हैं। इसके अलावा सक्रिय वृक्षारोपण से भी प्रकृति के संरक्षण में मदद मिलेगी।

ईश्वर ने हमें एक धरती दी है, हमने उसे विविधता दी लेकिन धीरे-धीरे तमाम तरह की हमारी गतिविधियों ने शुद्ध प्रकृति को बिगाड़ दिया। जैव विविधता घटती चली गई और मनुष्य ने पृथ्वी पर प्रदूषण का भार लगातार बढ़ाया। भूमि, जल, वायु हर तरह प्रदूषण से पूरी दुनिया अट गई। आज वायु प्रदूषण, खराब अपशिष्ट प्रबंधन, पानी की बढ़ती कमी, गिरता भूजल स्तर, जल प्रदूषण, वनों की अंधाधुंध कटाई, जैव विविधता की हानि और मिट्टी का क्षरण भारत के लिए प्रमुख पर्यावरणीय मुद्दे हैं। इन सबके अलावा चक्रवात, भूकंप और बाढ़ जैसी पर्यावरणीय आपदाएं हैं जो पहले से कहीं अधिक विकराल हैं। इन सभी से निपटने के लिए पूरी दुनिया को को एक साथ आने की आवश्यकता है।


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पूरी दुनिया में पर्यावरण से जुड़े मुद्दों को हल करने के लिए छोटे-बड़े सभी तरीके एक साथ, एक ही पैमाने पर अपनाए जाने चाहिए. घर के पानी बचाने से लेकर गीले और सूखे कचरे को छांटकर कचरे के निपटान जैसे कामों से भी इसकी शुरुआत की जा सकती है। वर्षा जल संचयन, प्लास्टिक के बढ़ते उपयोग पर रोक, भोजन की बर्बादी पर रोक एवं पर्याप्त जागरूकता पैदा करने के लिए पर्यावरण क्लब आदि भी काफी महत्त्वपूर्ण उपाय साबित होंगे। दुनिया के देशों को अपनी कूटनीति, राजनीति और सीमावर्ती लड़ाइयों से ऊपर उठकर कम से कम मनुष्य के अस्तित्व के लिए एक सार्वभौमिक नीति पर अमल करना ही होगा, नहीं तो कैसे बचेगी पृथ्वी!

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प्रो नीलिमा गुप्ता

(कुलपति, डॉ हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर)