पर्यावरण (Environment) और हम – कैसे हो संरक्षित

पर्यावरण (Environment) और हम – कैसे हो संरक्षित;

प्रतिवर्ष मनाया जारहा है “विश्व पर्यावरण दिवस ” । अच्छा है ।

अब एकदिन पर्यावरण दिवस मनाने से न हम सुरक्षित रहेंगे और न पर्यावरण संरक्षित ।

जिम्मेदारी सबकी बढ़ती जारही है , पर्यावरण की स्थिति बिगड़ती जारही है । सबसे बड़ी समस्या ही मानव निर्मित है , अपने वर्तमान और स्वयं के हितों को आगे रखकर समाज ,नगर ,

देश – प्रदेश ही नहीं विश्व को हानि पहुंचा रहे हैं ।

जागरूकता बढ़ी है पर तुलनात्मक रूप से सक्रियता और जिम्मेदारी नहीं । जरूरी है जल , जंगल और ज़मीन को बचाना , पर्यावरण स्वयं संरक्षित होगा ।

दोषपूर्ण कृषि पध्दति के कारण भूमि का मृदाक्षरण होरहा । उर्वरकों का अंधाधुंध उपयोग से खाद्यान्नों की मात्रा बढ़ी पर सेवन से असाध्य बीमारियों का प्रकोप तेज़ी से बढ़ा है ।

जानकर आश्चर्य होगा कि लेसेन्ट मैग्जीन सर्वे में कोरोना काल के पहले 2019 में केवल वायु प्रदूषण से ही विश्व में पोने पांच लाख नवजात शिशुओं की मौत हुई । इसमें 1 लाख 15 हजार से अधिक भारत में मारे गए । सुरक्षा की ओज़ोन परत क्षीण होरही इसके दुष्प्रभाव देश के विभिन्न हिस्सों में देखे जारहे हैं । तापमानों में व्यापक चेंज आया है । ऋतु चक्र बदलने लगा है ।

जल प्रदूषण , वायु प्रदूषण , ध्वनि प्रदूषण , ओद्योगिक प्रदूषण आदि पर नियंत्रण के साथ सभी प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण की दिशा में काम करना होगा ।

जल उपयोग जरूरत अनुसार हो , जिलों और राज्यों में जल तनाव न हो । मिट्टी को संरक्षित करना आवश्यक है । खतरनाक मात्रा में कीटनाशकों और उर्वरकों का उपयोग होने से मीट की मृदा शक्ति ख़त्म की जारही है । इसे बचाना होगी ।

ग्रामीण और अर्द्धशहरी नगरों , बड़े व महानगरों के अपशिष्ट पदार्थों , उद्योगों के वेस्टेज को जलस्त्रोतों , नदियों , जलाशयों में नहीं बहाया जाय ।

पौधरोपण को संकल्प के साथ लगाकर संरक्षित किया जाय । समाज , शासन , प्रशासन और सरकार द्वारा ऐसे कार्यो को प्रोत्साहित कर सहयोग किया जाय । केवल फ़ोटो और बयानों तक नहीं , वास्तविक धरातल पर ।

सीमेंट के बढ़ते जंगलों से भौतिक उन्नति अच्छी लग सकती है पर उसकी कीमत समाज और राष्ट्र को चुकाना पड़ रही है । यह अवश्य है कि जनसंख्या वृद्धि हुई है । उसके दबाव से आवश्यकता भी बढ़ी है पर सामंजस्य बिठाने की अति आवश्यकता है ।

विभिन्न स्तरों पर पर्यावरण क्षेत्र में काम हुआ है । प्रदूषण से बचाने इलेक्ट्रिक वाहनों , बिजली के लिए सौर ऊर्जा , ग्रीन एनर्जी आदि पर काम होरहा है ।

मिट्टी बचाओ – किसान बचाओ थीम पर भी देश – प्रदेश में काम किया जारहा है । सरकारों के साथ स्वयं सेवी संगठन , आध्यात्मिक गुरु , पर्यावरणविद , प्रगतिशील कृषकों द्वारा काम किया जारहा है ।

मिट्टी की उर्वरकता बढ़ाने , कृषि योग्य भूमियों से पोषक तत्वों को जोड़ने पर

अंतर्राष्ट्रीय शिवा फाउंडेशन के सद्गुरु जग्गी वासुदेव के नेतृत्व में मिट्टी बचाओ अभियान जारी है ।

मिट्टी परीक्षण के साथ वांछित पोषक तत्वों की पूर्ति के लिए सहयोग और समझाइश भी दी जारही है ।

प्रधानमंत्री स्वयं 5 जून पर्यावरण दिवस पर मिट्टी बचाओ अभियान से जुड़ेंगे । संवाद करेंगे ।

आंकड़ों के मुताबिक मध्यप्रदेश में ही इस अभियान में पोने दो लाख कृषि और कृषि योग्य भूमियों का मृदा परीक्षण हुआ है । भूमियों का मृदा स्वास्थ्य कार्ड भी बनाने पर काम होरहा है ।

हालांकि पर्यावरण को नुकसान मानव द्वारा ही अधिक किया जारहा है पर शासन – प्रशासन कम जिम्मेदार नहीं है । नदियों , जलाशयों , जलस्रोतों में हजारों मेट्रिक टन अपशिष्ट बहाया और मिलाया जारहा है । इसकी रोकथाम के लिए गठित सरकारी एजेंसियों , विभागों में समन्वय का अभाव है । देश में प्रदुषण नियंत्रण अधिनियम 1981 लागू है । केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अलावा राज्यों के प्रदूषण नियंत्रण मण्डल गठित हैं । परन्तु इन बोर्ड में अधिकारियों , कर्मचारियों , विशषज्ञों , संसाधनों की भारी कमी है ।

कोई पर्यावरण उल्लंघन का प्रकरण होता है तो सक्षम विधिक कौशल की कमी भी उजागर हुई है ।

सन 2010 में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण

( NGT ) ने आकार लिया । अधिकार और कार्य क्षेत्र भी बढ़ा ।

अधिकारियों के अलावा बोर्ड में राजनीतिक नियुक्तियों से भी पारदर्शी काम प्रभावित हुआ है ।

केंद्रीय संसदीय समिति 2008 की आधिकारिक रिपोर्ट के मुताबिक देश के विभिन्न प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के 77 प्रतिशत एवं 55 प्रतिशत से अधिक सचिव , सदस्य मानक स्तर के योग्य ही नहीं पाए गए । कल्पना की जासकती है कि ऐसे में पर्यावरण संरक्षण कैसे हो सकेगा ?

हालत यह है कि उद्योगों का वार्षिक निरीक्षण – परीक्षण , जल स्रोतों की टेस्टिंग , वायु में हानिकारक पार्टिकल , आदि का परीक्षण ही नियमित नहीं होरहा । स्टॉफ और तकनीकी अमले की कमी से हजारों मामले लंबित हैं ।

विलम्ब से प्रतिदिन पर्यावरण नुकसानी होरही ।

पर्यावरण वह कवच है जिसे हम – आप आज सहेजेंगे वह भविष्य का कवच साबित होगा । अमीर – गरीब , महिला – पुरूष , युवा – बुजुर्ग सभी को जोड़कर स्वच्छता मिशन की तर्ज़ पर काम करना होगा । तभी शुद्ध हवा , शुद्ध जल और शुद्ध खाद्यान्न और शुद्ध पर्यावरण मिल सकेगा ।

स्थानीय ही नहीं राष्ट्रीय और वैश्विक परिप्रेक्ष्य में भी यह अहम है ।

Author profile
Ghanshyam Batwal
डॉ . घनश्याम बटवाल