अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस:महिलाओं के बगैर समाज की कल्पना अधूरी 

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस:महिलाओं के बगैर समाज की कल्पना अधूरी 

महिलाओं के अधिकारों की रक्षा और उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए बीते कुछ सालों में लोगों में उत्साह देखा गया है। सच यह है कि संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक दुनिया का कोई भी देश यह दावा नहीं कर सकता है कि उसके देश में महिलाओं को पुरुषों के ही समान सभी अधिकार हैं। दुनिया की करीब 1.3 अरब महिलाएं पुरुषों की तुलना में अधिक गरीब हैं। समान कार्य के लिए महिलाओं को पुरुषों की तुलना में औसतन 30 से 40 प्रतिशत कम वेतन दिया जाता है। महिलाएं हिंसा की शिकार होती हैं, बलात्कार और घरेलू हिंसा के साथ विकलांगता जैसी कई गंभीर स्थितियों से उन्हें गुजरना पड़ता है।

आज हम लगभग सभी देशों में लैंगिक समानता की बात करते हैं परंतु राष्ट्रों द्वारा बड़ी प्रगति के बावजूद भी यह विचार एक सपना बना हुआ है। यह अनुमान लगाया गया है कि दुनियाभर में लगभग 60% महिलाएं आर्थिक रूप से कमजोर समाज से हैं एवं उनके और अधिक गरीबी में जाने का खतरा है। विश्व स्तर पर महिलाएं पुरुषोंमहिलाएं की तुलना में 23% कम कमाती हैं और दुनियाभर में संसदीय सीटों पर केवल 24% महिलाएं है।

यह दिलचस्प तथ्य है कि उत्तर कोरिया में महिला साक्षरता दर 100% है, पोलैंड, रूस और यूक्रेन 99.7%, इटली 99.0%, सर्बिया 97.5%, चीन 95.2%, यहाँ तक कि हमारे पड़ोसी छोटे देश श्रीलंका में यह 91.0% है, जबकि हमारे भारत में यह 65.8% है। कुछ पड़ोसी देशों में महिला साक्षरता दर और भी कम है (46.5% पाकिस्तान, 29.8% अफगानिस्तान, 14.0% चाड और 11.0% नाइजर)। नेपाल की महिला श्रम शक्ति भागीदारी दर 81.4%, वियतनाम 72.73%, सिंगापुर 61.97%, यूके 58.09%, यूएसए 56.76%, सर्बिया 47.92% है, जबकि भारत ग्रामीण आधारित देश है यहाँ पर दर केवल 20.7% है। इसलिए अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस, भारत में महिलाओं की स्थिति को ऊपर उठाने के लिए जागरूकता, प्रयास और श्रम प्रेरणा का आह्वान करता है।

महिला दिवस मनाने की जड़ें 1908 के महिलाओं के एक आंदोलन से जुड़ी हुई हैं। 1908 में 15 हजार महिलाओं ने एक साथ मिलकर मतदान करने का अधिकार, काम के बदले बेहतर वेतन और काम के घंटों को कम करने जैसे अधिकारों को लेकर मार्च निकाला। एक साल बाद सोशलिस्ट पार्टी ऑफ अमेरिका के एक घोषणा के अनुसार 28 फरवरी को अमेरिका में पहला राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया। 1910 में जर्मनी में सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी की महिला कार्यालय की एक नेता क्लारा जेटकिन ने महिला दिवस को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मनाने का विचार पेश किया। उन्होंने सुझाव दिया कि प्रत्येक देश को हर साल एक दिन महिलाओं के मांगों को आगे बढ़ाने के लिए निर्धारित किया जाना चाहिए। 17 देशों की 100 से अधिक महिलाओं के एक सम्मेलन ने उनके सुझाव पर सहमति व्यक्त की और आईडब्ल्यूडी अर्थात् अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का गठन किया गया।

1911 में महिला दिवस पहली बार ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विट्जरलैंड में 19 मार्च को मनाया गया। 1913 में आईडब्ल्यूडी अर्थात् अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस को 8 मार्च को मनाने का निर्णय लिया गया तब से यह 8 मार्च को मनाया जाता है। महिला दिवस को 1975 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा मान्यता प्रदान की गई और प्रत्येक वर्ष महिला दिवस के लिए के लिए एक विषय (theme) जारी करने का निर्णय लिया गया। तब से महिला दिवस पूरे विश्व में 8 मार्च के दिन मनाया जाता है।

वर्ष 1975 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा महिला दिवस को अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिलने के बाद इसके लिए हर साल विषय रखने का भी नियम बनाया गया। तभी से हर साल महिला दिवस के लिए कोई न कोई थीम रखा जाता है। इस साल 2024 में महिला दिवस की थीम ‘इंस्पायर इंक्लूजन’ है, जिसका अर्थ होता है एक ऐसी दुनिया, जहां हर किसी को बराबर का हक और सम्मान मिले। 2023 में डिजिटल लैंगिक समानता के लिए प्रौद्योगिकी और नवाचार, 2022 की थीम ‘जेंडर इक्वालिटी टुडे फॉर ए सस्टेनेबल टुमारो’ यानी ‘एक स्थायी कल के लिए आज लैंगिक समानता’, वर्ष 2021 में ‘महिला नेतृत्व: कोविड-19 की दुनिया में एक समान भविष्य को प्राप्त करना’ तथा वर्ष 2020 में थीम थी ‘जनरेशन इक्वेलिटी: महिलाओं के अधिकारों को महसूस कर रही है।’ इस प्रकार हर वर्ष एक विशेष थीम पर पूरा विश्व केन्द्रित होकर महिलाओं को सबल बनाने का प्रयास करता है।

महिला दिवस के बारे में कुछ रोचक तथ्य

1. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने की शुरुआत 100 साल पहले बताई जाती है। पहला अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 19 मार्च 1911 को मनाया गया था, जिसमें जर्मनी, स्विट्जरलैंड, ऑस्ट्रिया और डेनमार्क से 1 मिलियन से अधिक लोगों ने भाग लिया था।

2. 1917 में रूस में महिला दिवस मनाने से उन्हें देश में वोट देने का अधिकार मिल गया।

3. 1975 में, संयुक्त राष्ट्र ने आधिकारिक तौर पर अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस को अपनाया. और उन्होंने इस वर्ष को अंतरराष्ट्रीय महिला वर्ष भी घोषित किया।

4. महिला दिवस का दूसरा नाम ‘महिला अधिकारों और अंतरराष्ट्रीय शांति के लिए संयुक्त राष्ट्र दिवस’ है।

5. गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स के अनुसार, मर्लिन वोस सावंत नाम की महिला अब तक की सबसे अधिक आईक्यू वाली महिला है। उन्होंने 228 के अविश्वसनीय स्कोर के साथ रिकॉर्ड कायम किया है।

6. महिला दिवस के मौके पर कुछ लोग बैंगनी, हरे और सफेद रंग के कपड़े पहनते हैं। बैंगनी रंग सम्मान और न्याय का प्रतीक है, हरा रंग आशावाद का और सफेद रंग पवित्रता का प्रतीक है। हालांकि रंगों के पीछे का मुख्य विचार अभी भी स्पष्ट नहीं है, लेकिन रिपोर्टों से पता चलता है कि सोशल एंड पॉलिटिकल यूनियन (WSPU) ने 1908 में रंगों की अवधारणा बनाई थी।

7. रूस सहित कई देशों में महिला दिवस को नेशनल हॉलीडे के रूप में मनाया जाता है। राज्य परिषद की सिफारिश के अनुसार, चीन में बहुत सी महिलाओं को 8 मार्च को आधे दिन की छुट्टी मिलती है।

8. भारतीय संविधान में पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं को भी बराबर मौलिक अधिकार हैं। इसमें शिक्षा का अधिकार, स्वास्थ्य सेवा का अधिकार, काम करने का अधिकार, राजनीति में भाग लेने का अधिकार और सम्मान के साथ जीने का अधिकार शामिल हैं। आइए इस महिला दिवस पर हम भारत में महिलाओं के बुनियादी अधिकारों के बारे में जागरूकता फैलाएं।

9. सर्बिया, अल्बानिया, उज्बेकिस्तान और मैसेडोनिया जैसे कुछ देशों में, मां के रूप में महिलाओं के महत्व को दर्शाने के लिए महिला दिवस को मातृ दिवस के साथ जोड़ा गया है।

10. संयुक्त राज्य अमेरिका में मार्च को महिला इतिहास माह के रूप में भी मनाया जाता है।

11. इंटरनेशनल टेलीकम्युनिकेशन यूनियन (आईटीयू) की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले वर्ष तक केवल 65% महिलाएं इंटरनेट का उपयोग करती हैं, जबकि 70% पुरुष इंटरनेट का उपयोग करते हैं।

12. विश्व आर्थिक मंच (डब्लयूईएफ) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 2050 तक 75% नौकरियां एसटीईएम (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित) क्षेत्रों से संबंधित होंगी। फिर भी आज, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) में केवल 22% पदों पर महिलाएं काबिज हैं।

महिलाएं राष्ट्र के सामाजिक, आर्थिक और पारिवारिक विकास की बुनियाद हैं। यदि हमें देश का आर्थिक विकास करना है तो महिलाओं को घर से बाहर निकलकर नेतृत्व भी करना होगा। नेशनल स्टैटिस्टिकल ऑफिस (एनएसओ) ने राष्ट्रीय सर्वेक्षण में पाया कि पुरुषों की साक्षर दर 84.7% है जबकि महिलाओं की 70.3% आंकी है। भारत के जहाँ एक ओर 67% पुरुष कार्य करते हैं, वहीं महिलाएँ मात्र 33% वर्किंग हैं। यदि हमें राष्ट्र की आर्थिक स्थिति में सुधार लाना है तो हमें साक्षरता दर बढ़ानी होगी जिससे कि छात्राएँ उच्च शिक्षा प्राप्त कर, उचित नौकरी पा सकें और देश को आर्थिक सहयोग प्रदान कर सकें। आज हम देश को आत्मनिर्भर बनाने की परिकल्पना कर रहे हैं। गाँव में भी जो महिलाएँ कौशल युक्त हैं उन्हें कार्यकुशलता में दक्ष करने की आवश्यकता है। किसी भी समाज की उन्नति उस समाज की औरतों की उन्नति से मापी जा सकती है।

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प्रो नीलिमा गुप्ता

(कुलपति, डॉ हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर)