Silver Screen: सिर्फ हिंदी ही नहीं, दक्षिण की फ़िल्में भी फैलाती है धार्मिक विवाद!

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Silver Screen: सिर्फ हिंदी ही नहीं, दक्षिण की फ़िल्में भी फैलाती है धार्मिक विवाद!

फ़िल्में सिर्फ मनोरंजन ही नहीं करती, इनसे कई बार विवाद भी खड़े होते हैं। देखा गया है कि ऐसे विवादों का कारण धार्मिक या पौराणिक कहानियों फिल्मों में ही ज्यादा होता है। कई बार राजनीतिक फ़िल्में भी विवाद का कारण बना है। हाल ही में ‘आदि पुरुष’ से उठे विवाद से समझा जा सकता है कि जब कोई फिल्म ऐसे मामलों में फंसती है, तो इसका सबसे ज्यादा नुकसान उसके कारोबार पर पड़ता है। क्योंकि, ऐसी फिल्मों से दर्शकों की धार्मिक भावनाएं आहत होती है। कई बार तो इन फिल्मों को लेकर धार्मिक संगठन सड़कों पर उतरकर न केवल ऐसी फिल्मों का विरोध करते हैं, बल्कि स्थिति हिंसात्मक भी हो जाती है।

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फिल्मों के बायकॉट की नौबत तक आ जाती हैं और ये भी हुआ कि चलती फिल्मों को सिनेमाघरों से उतारने तक की नौबत आती है। लेकिन, फिल्मों से धार्मिक भावनाएं आहत होने का सिलसिला सिर्फ हिंदी सिनेमा तक ही सीमित नहीं है। दक्षिण भारत में भी फिल्मों से भी ऐसे विवाद पैदा होते रहते हैं। हिंदी की ‘आदि पुरुष’ ही नहीं हॉलीवुड की फिल्म ‘ओपनहाइमर’ पर भी धार्मिक भावनाएं आहत करने का आरोप लगे हैं। हॉलीवुड डायरेक्टर क्रिस्टोफर नोलन ‘ओपेनहाइमर’ को लेकर खासे सुर्खियों में रहे। भारत में फिल्म के एक इंटिमेट सीन को लेकर दर्शकों ने आपत्ति जताई थी। फिल्म के आपत्तिजनक सीन में श्रीमद् भगवत गीता का श्लोक पढ़ा गया। इसके बाद सेंसर बोर्ड ने उस पर उंगली उठाई।

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दक्षिण की नयनतारा अभिनीत फिल्म ‘अन्नपूर्णानी’ को लेकर विवाद इतना बढ़ा कि इसे ओटीटी प्लेटफॉर्म से इसे हटाने तक की नौबत आ गई। फिल्म के खिलाफ धार्मिक भावनाएं आहत करने के आरोप में एफआईआर भी दर्ज की गई। हिंदूवादी संगठनों ने फिल्म पर हिंदू विरोधी होने का आरोप लगाया। ज़ी स्टूडियोज़ ने उनकी चिंताओं को समझते हुए कहा कि फिल्म को ओटीटी प्लेटफॉर्म से हटाकर संपादित किया जाएगा। आरोप था कि फिल्म में हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को आहत करने के साथ भगवान राम का अपमान किया गया। फिल्म के जरिए लव जिहाद को बढ़ावा भी दिया गया है। यह पहली बार नहीं है जब साउथ फिल्म इंडस्ट्री की कोई फिल्म विवादों में आई है। इस तरह के विवाद की दक्षिण में काफी पुरानी परम्परा है।

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विजय और काजल अग्रवाल अभिनीत 2012 में आई फिल्म ‘थुप्पक्की’ (2012) तब विवादों में आई, जब मुस्लिम समाज ने दावा किया कि फिल्म में उनके समुदाय को गलत तरीके से दिखाया गया। इसे सिर्फ फिल्म ही विवादों में नहीं आई, बल्कि कलाकारों की जान भी खतरे में पड़ गई थी। विजय के प्रशंसक फिल्म पर प्रतिबंध लगाने की मांग करने लगे। एक समूह ने विजय के आवास के बाहर विरोध प्रदर्शन करने का भी प्रयास किया था। मणि सेल्वराज जैसे दिग्गज फिल्मकार को भी धार्मिक भावनाएं आहत करने जैसे आरोपों का सामना करना पड़ा था। 2021 में प्रदर्शित उनकी फिल्म ‘कर्णन’ में एक गाना जिसका शीर्षक था ‘पंडारथी पुराणम।’ हालांकि, निर्माताओं को गाने का नाम बदलना पड़ा। क्योंकि, एक याचिकाकर्ता ने एक शिकायत दर्ज की, जिसमें दावा किया गया था कि ’पंडारथी’ तमिलनाडु के कुछ समुदायों में एक आपत्तिजनक शब्द है। फिर गाने का नाम बदलकर ’मंजंती पुराणम’ कर दिया गया।

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दक्षिण भारत में सितारा हैसियत रखने वाले लोकप्रिय फिल्म स्टार कमल हासन की फिल्म ‘विश्वरूपम’ (2013) का प्रदर्शन इसलिए रोक दिया गया, क्योंकि धार्मिक समूहों का दावा था कि यह फिल्म मुसलमानों का अपमान कर रही है। फिल्म एक कथक शिक्षक के इर्द-गिर्द घूमती है जो एक जासूस के रूप में अंधेरी दुनिया से जुड़ा है। फिल्म को इस बात के लिए विवादास्पद माना गया कि इसमें एक खास समुदाय के आतंकवादियों को परदे पर उतारा गया था। कमल हासन की ही फिल्म ‘पम्मल’ के सम्बंदम को भले ही दर्शकों ने इस फिल्म को सराहा। लेकिन, इसमें दिखाए गए कुछ दृश्यों ने दर्शकों की भावनाओं को आहत किया। इस फिल्म में जब कमल हासन भगवान शिव की वेशभूषा में नजर आए और इसी के साथ वह चुइंगम चबाते दिखे तो दर्शकों को उनकी यह हरकत कतई पसंद नहीं आई और उन्होंने इसे नकार दिया।

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साउथ के सुपरस्टार में गिने जाने वाले रवि तेजा की फिल्मों का दर्शकों को पूरी बेसब्री से इंतजार रहता है। उनकी फिल्म ‘जीने नहीं दूंगा’ को भी दर्शक बड़ी उम्मीद से देखने गए थे। लेकिन, एक्टर ने इस फिल्म में ऐसा कुछ किया कि दर्शकों के गुस्से के सामना रवि को करना पड़ा। दरअसल, रवि को इस फिल्म में भगवान से भी ज्यादा शक्तिशाली दिखाया गया, जो दर्शकों को नागवार गुजरा। इस कारण काफी विवाद भी हुआ था। ‘गोपाला गोपाला’ फिल्म में साउथ फिल्मों के जाने माने एक्टर वेंकटेश ने नास्तिक इंसान का किरदार निभाकर दर्शकों को हैरान कर दिया था। इस फिल्म में उनका किरदार दर्शकों को हजम नहीं हुआ। दर्शकों ने तब वेंकेटेश को बुरा भला कहना शुरू कर दिया, जब वह झूठ बोलकर भगवान की प्रतिमा को बेचते नजर आए। इस सीन को लेकर फिल्म निर्माता  को दर्शकों के गुस्से का सामना करना पड़ा था।

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साउथ इंडस्ट्री की चर्चित ऐक्ट्रेस समंथा ने ‘एक का दम’ फिल्म में ऐसा कुछ किया, जिससे दर्शक नाराज हो गए। इस फिल्म में सामंथा नेगेटिव रोल में नजर आई थीं। उनके साथ प्रभु चियान विक्रम भी इस फिल्म में नजर आए। डबल रोल में नजर आईं सामंथा ने पूजा की थाली से अपनी सिगरेट जलाई, तो दर्शकों का गुस्सा फूट गया। इस सीन का लोगों ने खूब विरोध किया था। दर्शकों ने सामंथा को खूब खरी खोटी सुनाई। 2022 में प्रदर्शित तमिल क्राइम फिल्म ‘एफआईआर’ (2022) को इसके कंटेंट के लिए कई लोगों ने सराहा था। लेकिन, साथ ही धार्मिक समूहों ने इसकी आपत्तिजनक सामग्री पर झंडा उठाया। एक धार्मिक समूह ने मुख्य अभिनेता विष्णु विशाल की गिरफ्तारी की मांग की, क्योंकि उनका मानना था कि फिल्म सभी मुसलमानों को आतंकवादियों के रूप में चित्रित करना चाहती है। प्रदर्शनकारियों को यह भी लगा कि फिल्म में विष्णु का किरदार एक धार्मिक उपदेशक से मिलता जुलता है। पिछले साल प्रदर्शित तमिल फिल्म ‘फरहाना’ से तमिलनाडु के मुसलमानों में आक्रोश फैल गया। फिल्म में एक युवा विवाहित मुस्लिम महिला को पुरुषों की सेवा देने वाले कॉल सेंटर में काम करते हुए दिखाया गया था। धार्मिक समूहों ने फिल्म पर प्रतिबंध लगाने का आह्वान किया। इस वजह से हालात इतने बिगड़ गए थे कि पुलिस को फिल्म में मुख्य भूमिका निभाने वाली ऐश्वर्या राजेश के घर के आसपास सुरक्षा बल तैनात करना पड़ा था।

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धर्म हमारे जीवन का अहम हिस्सा है। यही कारण है कि फिल्मकार अकसर धर्म के मुद्दे को फिल्मों के जरिए उठाकर भावनाओं का फ़ायदा उठाने की कोशिश करते है। ऐसी ही एक फिल्म ‘धर्म संकट में’ जो ब्रिटिश कॉमेडी फिल्म ‘द इनफिडेल’ से प्रेरित है, उसमें मूल फिल्म की तरह धर्म और धार्मिक पहचान के संकट का चित्रण कॉमिकल रखा गया। देखा गया है कि ऐसी फिल्मों के लिए परेश रावल सबसे सही कलाकार हैं। इस फिल्म में भी उन्होंने धर्मपाल का किरदार बेहतर ढंग से निभाया है। निर्देशक फवाद खान ने मूल फिल्म के यहूदी और मुसलमान चरित्रों की हिंदी कथानक में हिंदू और मुसलमान किरदारों में बदल दिया था। फिल्म में मुसलमानों के बारे में प्रचलित धारणाओं और मिथकों पर संवेदनशील कटाक्ष किया गया। हिंदी फिल्मों के इतिहास में इस विषय पर कई फिल्म बनी हैं कि कोई भी इंसान पैदाइशी बुरा नहीं होता। हालात और परवरिश ही इसके पीछे जिम्मेदार माने गए हैं। लेकिन, इस सच्चाई को फिल्मकार अपने ढंग से इस्तेमाल करते आए हैं।

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हेमंत पाल

चार दशक से हिंदी पत्रकारिता से जुड़े हेमंत पाल ने देश के सभी प्रतिष्ठित अख़बारों और पत्रिकाओं में कई विषयों पर अपनी लेखनी चलाई। लेकिन, राजनीति और फिल्म पर लेखन उनके प्रिय विषय हैं। दो दशक से ज्यादा समय तक 'नईदुनिया' में पत्रकारिता की, लम्बे समय तक 'चुनाव डेस्क' के प्रभारी रहे। वे 'जनसत्ता' (मुंबई) में भी रहे और सभी संस्करणों के लिए फिल्म/टीवी पेज के प्रभारी के रूप में काम किया। फ़िलहाल 'सुबह सवेरे' इंदौर संस्करण के स्थानीय संपादक हैं।

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