कोई तो कहे-अनाज,सब्जी,फल अब नहीं बचे खाने लायक,फिर क्या खाएं क्या नहीं

कोई तो कहे-अनाज,सब्जी,फल अब नहीं बचे खाने लायक,फिर क्या खाएं क्या नहीं

*नर्मदा परिक्रमा पथ,गुजरात से स्वामी तृप्तानंद जी का कालम*

अब मामला शाकाहार मांसाहार का नहीं रहा है,क्योंकि शाकाहार में अब लोकप्रिय अनाज सब्जी फल भी खाने योग्य नहीं रहे। हाइब्रिड वर्णसंकर बीजों से रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशक पेस्टीसाइड्स के बल पर उपजाई जा रही इन कृषि उपजों को उपभोक्ता की प्लेट में पहुंचते पहुंचते

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तमाम खतरनाक केमिकल्स मिल चुके होते हैं जिससे गेहूं- चावल- दालें- मूंगफली -सेवफल,Apple, कैला, पपीता, अंगूर, भिंडी, लौकी, तरबूज, आम,घनिया, ककड़ी खीरा, संतरा, मोसंबी आदि कतई खाने योग्य नहीं रह गए हैं। और इनका सेवन करने वालों में शुगर,B.P. कोलेस्ट्रॉल, प्रॉस्टेट, गर्भाशय गठान,किडनीफेल्योर और थॉयरॉइड की व्याधियाँ देखने को मिल रही हैं। ऐसी विकट परिस्थिति में कष्ट जाल से निकलने के लिए उन सभी अनाजों- दलटन-तिलहन- सब्जी फलों पर चिंतन- मनन होना चाहिए, जिन पर अभी हाइब्रिड की नज़रे इनायत नहीं हुई है। और न ही जिनके उत्पादन में व संग्रहण में मारात्मक जानलेवा कैंसर कारक रसायनों का उपयोग होता है।

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सभी दृष्टि से विचार करें तो
फिलहाल इन सभी को स्वास्थ्य गुण संपन्न विकल्प माना जा सकता है ~

*जौ-चना -बाजरा रा-गी – ज्वार- रजगरा – भगर (मोरियो सवां) सीताफल-चीकू अमरूद- बेर-जामुन
कैथ- कमरख- सिंघाड़ा-तिल- सूखे मेवे ड्रायफ्रूट बिल्वफल,कद्दू, Pumpkin,पानपत्ता, सहजन मोरिंगाक्ष आँवला पेठा- कुंदरू इमली- सागरतरीय छोटा नारियल- नींबू कच्चा केला – कच्चा पपीता – पोई- अरबी कंद- अरबी पत्र सरसों साग – बथुआ- ग्वारफली- जमीकंद – गांठगोभी- सेम (वाल- बलर) और भी अन्य थोड़े बहुत*

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वर्तमान में लोगों का मुख्य आहार है गेहूँ की रोटी, पर क्या यह वही गेहूँ है जो सन् 60 के दशक में हुआ करता था और जिसकी रोटी का
सुस्वाद पुराने लोगों को भली भांति याद है । पहले हाइब्रिड फिर यूरिया आदि केमिकल फर्टिलाइजर्स
ऊपर से अत्यंत जहरीले कीटनाशक
सबने मिलकर गेंहू को अब आहार योग्य ही नहीं छोड़ा है। 40 साल पहले आयोडिन नमक नहीं था , पीतल के बर्तन थे जिनके ऊपर हर 3 महीने में राँगा कलई करवानी पड़ती थी और उस कलई धातु की सूक्ष्म मात्रा शरीर के अंदर पैंक्रियाज को स्वस्थ रखती थी और कितना ही मीठा खाओ डायबिटीज किसी को नहीं होती थी। वंगभस्म नाम से आयुर्वेद में डायबिटीज कंट्रोल की जो शास्त्रोक्त भस्म है वह कलई धातु से ही बनती हैं। उन दिनों रोटी में बिर्रा बेजड़ा अर्थात जौ व चना समभाग मिलाकर मिस्सीरोटी बनाने का चलन सभी जगह पर था जिससे नाम को भी कब्ज नहीं रहता था और लोग प्रायः स्वस्थ थे। पर फिर भोजन व पानी को हथियार बनाकर कुछेक साधन संपन्नों को छोड़कर बाकी दुनिया भर के समस्त मनुष्यों-पशु-पक्षियों को बीमार बना डालने के गहरे षड्यंत्र को समझा जाना चाहिए।

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अन्न और जल हो गए
बी मा.री के द्वार !
तृप्तानंद अब खाइए
जौ – रागी प्लस ग्वार !!

*स्वामी तृप्तानंद*
8963968789
wtsp.
अमरेली, गुजरात

Author profile
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स्वामी तृप्तानंद

संग्रह शून्य ,परिव्राजक , संन्यासी
1996 से 2008 तक 12 वर्षीय
नर्मदा पद प्रदक्षिणा के उपरांत
नर्मदा दक्षिण तट ओंकारेश्वर पर पुनः
सतत् नर्मदा परिक्रमा का संकल्प लिया।यह यात्रा परिचय से अपरिचय की दिशा में है जिसमें किसी व्यक्ति, वस्तु ,स्थान के प्रति कोई आसक्ति नहीं और राग-द्वेष से मुक्त समस्त के प्रति अपनत्व भाव है। वास्तव में तो यही होता है भारतीय संन्यास।सांसें पूरी करने के लिए अध्ययन,अध्यापन, हर्बल-निसर्गोपचार, मोबा.कॉन्फ्रेंस सत्संग,पर्यावरण संरक्षण का प्रयास
और भावाभिव्यक्ति लेखन। हिंदी व अंग्रेजी भाषा के विद्वान। आयुर्वेद और होम्योपैथी के विशेषज्ञ। आयुर्वेद और होम्योपैथी की कई मेडिसिन पर स्वयं की रिसर्च के आधार पर अब तक करीब एक लाख से भी अधिक रोगियों का सफल निःशुल्क उपचार कर चुके हैं। आपकी उपचार पद्धति से संबंधित चार ग्रंथों का प्रकाशन भी हो चुका है।

सेवा प्लस सद्‌भाव के
यथाशक्ति शु भ क र्म
तृप्तानंद करते चलो
यही धर्म का मर्म

स्वामी तृप्तानंद
8963968789 wtsp
मेवासाग्राम
सावरकुंडला जि. अमरेली
गुजरात।