सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री गोविन्द गुंजन की कविता
भीतर का सच
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सीपियां जो बीन कर मै रेत से लाया
हर सीप ने कुछ रेत में
टूटे हुए घरौंदो के लिये ही गीत गाया
कुछ सीपियां मौन थी
नदी की धार भी उनके लिये तो गौण थी
उंन
की बात सुनने को
मै बहुत देर रूका
उनकी भावनाओं की गहराइयों तक झुका
मैने उनके कानों में जोरो से फूंका कि
वह कुछ बोले
अपना मुह खोले
मगर सीपों ने कुछ नहीं कहा
एक असीम दर्द
मौन रह कर ही सहा
सह्सा मैने देखा
खामोश सीप की आंखों मे
एक आंसू जो बह नहीं सका
अपनी व्यथा कह नही सका
वह अंदर ही जम गया था
भीतर ही भीतर
इस तरह झुका था
कि वह एक मोती बन चुका था.
* गोविन्द गुंजन
- उत्तरायण, 18, सौमित्र नगर, सुभाष स्कूल के पीछे, खंडवा (म.प्र.)
- खंडवा
- मध्य प्रदेश
- [email protected]
- 94253042665
- सेवा निवृत.
- काव्य | उपन्यास | निबंध लेखन
- प्रथम समांतर नवगीत सम्मान.अखिल भारतीय अंबिका प्रसाद दिव्य प्रतिष्ठा पुरस्कार, म.प्र. साहित्य अकादमी का बाल कृष्ण शर्मा नवीन पुरस्कार, निमाड़ लोक संस्कृति न्यास का संत सिंगाजी सम्मान, अभिनव कला परिषद् भोपाल का अभिनव शब्द शिल्पी सम्मान, एवं हिंदी निबन्ध हेतु निर्मल पुरस्कार.
- हर अनाम शहीद के नाम “उसने कहा था !”