आइये पढ़ते हैं , इंदौर लेखिका संघ ,इंदौर से कुछ कथाएं {तृतीय किश्त}

संध्या पांडेय की दो लघुकथाएं

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इंदौर लेखिका संघ ,इंदौर से संध्या पांडेय की दो लघुकथाएं 

🌹मनोकामना 🌹

रागिनी जब भी मंदिर जाती तो गेट पर बैठे हुए बच्चों से फूल माला जरूर लेती। बच्चे भी दौड़ दौड़ कर कहते हैं आंटीजी ले लो ना? ईश्वर आपकी इच्छा पूरी करेंगे !एक दो बच्चों से फूल, माला ,अगरबत्ती, प्रसाद जरूर लेती है।
अंदर जा कर पूजा अर्चना करती और वापस आजाती है। एक दिन रागिनी ने क्षितिज से पूछा कि ईश्वर ने हमारी हर कामना को पूरा कर दिया है। मैं तो भगवान से बस यही कहती हूं कि उन्होंने जो दिया बस उसी को अच्छा रखना ।जो मिला उसका धन्यवाद कहने ही आती हूँ मंदिर।

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पर क्या इन बच्चों की मनोकामना पूरी होती होगी? जो रोज फूल चुनकर लाते हैं, माला बनाकर बेचते हैं ,यह भी तो भगवान को ही चढ़ती है । इनकी भगवान सुनते हैं क्या ?
क्षितिज ने कहा__हाँ रागिनी भगवान इनकी मनोकामना पूरी करते हैं । — हम से पहले करते हैं। क्योंकि
__इनकी एक ही मनोकामना होती है की —- इनकी माला प्रतिदिन बिके और जल्दी बिके ताकि इनके घर का चूल्हा जले।

अकेलापन🌹

पड़ोस में रहने वाले शर्मा दम्पत्ति उम्र के अंतिम पड़ाव पर भी हँसते मुस्कुराते रहते है। कभी चेहरे पर उदासी नहीं लाते। जितने स्वस्थ और सुखी वे दिखते हैं, उतने शायद हैं नही ?
बाहर से ठीक ठाक दिखने वाले घर में आए दिन टूटफूट और मरम्मत करने वालों को मोबाइल कर करके बुलाते रहते है।
कभी प्लंबर, कभी बिजली वाला, गीजर वाला, ए सी वाला, फोन वाला , छत की मरम्मत तो कभी बगीचे की देखभाल के लिए प्रति दिन कोई ना कोई कारीगर उनके घर आता है। मेरी उनसे कभी ज्यादा बातचीत नहीं हुई। पड़ोसी होने के नाते नमस्ते हो जाया करती है अक्सर।
एक दिन मैने उनके गेट पर लिखा देखा —

 

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मकान किराए से देना है।
मैं स्वयम उनका मकान लेने उनके घर पहुँच गया। अंदर जाकर देखता हूँ दोनों बुजुर्ग अकेले बैठे हैं। मूझे देखते ही पहचान गए बहुत खुश हुए। आओ, बैठो बेटा।
दोनों के पैर छूकर आराम से बैठ गया।
जैसे ही मै मकान किराए से लेने की बात करता हूँ। तो शर्मा जी मेरी बात सुनते ही नही है। खूब स्वागत करने में लग जाते है । पानी पिलाते हैं, चाय पिलाते हैं ,नाश्ता कराते हैं। ऐसा व्यवहार वो हर मरम्मत करने वाले के साथ भी करते है।
फिर मूझे पूरा घर दिखाते है। घर को देखकर ऐसा नहीं लगता है की उसमें कहीं कोई मरम्मत की आवश्यकता है। और ना ही उसमें कोई किरायेदार रह सकता है। मैं पूछता हूँ कि आप मकान का कौन सा –हिस्सा किराए पर देंगे ?
—-और क्या किराया लेंगे?
तो दंपत्ति एक दूसरे का मुँह ताकने लग जाते है। शर्माजी कहने लगे — हमें अभी मकान किराये से नहीं देना है।
बातों ही बातों मे पता चला उनके चार बच्चे हैं सभी बड़े बड़े शहरों में सेटल है।
और ये दोनों यहाँ अकेलेपन की त्रासदी भोग रहे हैं।
मैने कहा ठीक है किराये से नहीं देना है तो मत दीजिये परंतु एक अच्छा पड़ोसी होने का फ़र्ज़ मूझे निभाने दीजिये।
आये दिन आप अकेले परेशान होते है। मुझे बता दिजिये की आपको क्या क्या करवाना है ?
मैं आपके पूरे घर की मरम्मत एक बार में करा देता हूँ। आप आराम से रहिये। आपको कोई तकलीफ ना हो। दंपत्ति की आंखों में आँसू आ गए
मिसेस शर्मा कहने लगीं
—ना तो हमें मकान किराए से देना है और ना ही किसी किराएदार को रखना है। हमारे घर को किसी भी प्रकार के मरम्मत की जरूरत नहीं है। हम तो अकेलेपन से निजात पाने के लिए लोगों को रोज बुलाते हैं ।रोज नया कारीगर या किराएदार आता है थोड़ी देर बैठता है हमारे साथ चाय नाश्ता करता है हँसता बोलता है और चला जाता है । कारीगरों को तो हम उसकी फीस के अलावा जो भी आवश्यकता हो पूरी करते है। इसी तरह हमारा दिन कट जाता है।।एकाकीपन दूर हो जाता है और अगले दिन फिर किसी नये व्यक्ति का इन्तजार करने लगते हैं। ऊपर से खुश दिखने वाले दम्पति अकेलेपन से जूझ रहे थे। उनके जीवन में उदासी और निराशा छाई हुई थी।
मैं दिव्य बुजुर्ग शर्मा दम्पति को प्रणाम कर प्रतिदिन मिलने आने का वचन देकर आ गया।

संध्या पांडेय हरदा मध्य प्रदेश

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