आज का विचार -परवरिश एक दर्पण की तरह है: माता पिता को ही मानक स्थापित करना होगा
मनीषा व्यास ,इंदौर
परवरिश एक दर्पण की तरह है जिसका प्रतिफल आपको प्रतिबिंब की तरह दिखता है। कई बार देखने में आता है कि हम बच्चों के कार्य करने लिए हमेशा तैयार रहते हैं ।जैसे बच्चे को स्कूल जाना है , तो उसका बैग हम तैयार करके पहले ही रख देते हैं। उसका खाना हम खुद ही पैक करके रख देते है ।बच्चे की पानी की बॉटल हम खुद ही भरकर रख देते हैं, सोचते हैं कि अभी बच्चा छोटा है,उसे जो पसंद हैं वही करते हैं।धीरे धीरे बच्चा आप पर निर्भर होने लगता है। हम उसे सब कुछ उपलब्ध कराना चाहते हैं और यहीं से बच्चा सीखना आरंभ करता है। आपको बच्चे को स्वावलंबी बनाना है,इसके लिए छोटे छोटे काम स्वयं करके उसे भी सिखाना होगा, आप आफिस जाते समय जो भी कार्य करते हैं वैसे ही छोटे छोटे काम स्वयं करते करते बच्चे को भी सिखाएं ,जिसमें स्कूल जाने से पहले उसे अपना बैग जमाना है ,कपड़ो को सही स्थान पर रखना है और वही से लेना है। जूते , मौजे यथास्थान रखना है ताकि बिना समय बिगाड़े उसे समय पर मिल जाए,ये सब आप स्वयं करते हुए बच्चे को सिखाएं उसे ऐसा भी नहीं लगना चाहिए कि आप उसे निर्देश दे रहे
हैं। इस तरह आप बच्चे को स्वावलंबी बनाने में कामयाब हो जायेंगे।छोटे छोटे काम स्वयं
करते रहने से बच्चे में आत्मविश्वास भी विकसित होगा जो उसे निरंतर आगे बढ़ने में मदद करेगा।
आजकल सबसे बड़ी। समस्या यह है की बच्चे अनुशासन में नहीं रह पाते इसके लिए उसे समय पर कार्य करने के प्रेरित करना होगा। सुबह जल्दी उठना और रात में जल्दी सोना,स्कूल जाते समय , १० मिनिट पहले निकलना ,आपको अपने व्यस्त दिनों में ही सिखाना होगा ।
छोटी छोटी जिम्मेदारियां सौंप कर उन्हें जिम्मेदार बनाना आपकी परवरिश में शामिल होना चाहिए।
तब आपके द्वारा की गई परवरिश रंग लाएगी और बच्चे को सही दिशा मिल पाएगी।