प्रचलित कहावत ‘दो जून की रोटी’और महिला रचनाकार

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'दो जून की रोटी'

प्रचलित कहावत ‘दो जून की रोटी और महिला रचनाकार

प्रचलित कहावत ‘दो जून की रोटी’  का  इस्तेमाल अक्सर आपने बड़े-बुजुर्गों को करते सुना होगा, जिसका अर्थ है कि दिनभर में आपको दो टाइम का खाना मिल जाना. दरअसल, अवधी भाषा में ‘जून’ का मतलब ‘वक्त’ यानी समय से होता है.जिसे वे दो वक्त यानी सुबह-शाम के खाने को लेकर कहते थे.  इस कहावत को इस्तेमाल करने का मतलब यह होता है कि इस महंगाई और गरीबी के दौर में दो टाइम का भोजन भी हर किसी को नसीब नहीं होता. इसी विषय पर  कुछ  कवितायें अलग अलग कवित्रियों ने लिखी हैं —
दो जून की रोटी
        1
मेहनत करूंगा मै दो जून की रोटी के लिए

कौन है बाहर
हम हैं
हम कौन
बबुआ
दरवाजा खुला
तुम आ ही गये फिर
मिला यहां की पगार से ज्यादा काम?
बबुआ चुप था
मालकिन भी बाहर आ गयी
मत डाटिये
यदि और ज्यादा पगार मिलती तो
उसका घर और अच्छा चलता। यह सोचकर वह यहां से गया था।
हूं
बबुआ बोला
मां जी
आप लोग जैसे ध्यान रखने वाला कोई नही मिला
और मेहनत करूंगा मै दो जून की रोटी के लिए
अब आपके पास से कहीं नही जाऊंगा। दो जून की रोटी के साथ सर मे हांथ भी चाहिए साहब।
और वह फूट फूट कर रोने लगा।

वन्दिता श्रीवास्तव

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२- जून की रोटी

दो वक्त की ही रोटी से
चलती है सारी दुनिया
ना रह सको तुम भूखे
इतना तो तुम कमाना
दौलत हो चाहे कितनी भी
मेहनत है फिर भी करना
राजा या रंक कोई भी
रोटी बिना ना रह पाया
हीरे और मोती को कोई
मुँह में चबा ना पाया
धरती पे फैली संपत्ति
श्रम से इसे बनाना
हाथों में आयेगा पैसा
और दो जून का ठिकाना
ताकत इसी से आयेगी
जानोगे रोटी का रुतबा

 कुसुम सोगानी

     3

हाय यह रोटी

अच्छाई की जड़ है रोटी
बुराई की जड़ है रोटी
करती है कुकर्म को प्रेरित
चोरी डकैती हत्या को उद्यत
गर रोटी पेट में है तो
सारा जहां खूबसूरत
रोटी नहीं है पेट में तो
सारा वैभव बदसूरत है।

दो जून की रोटी के लिए ही तो
खपता है आदमी सुबह से शाम तक
भरता है पेट कहीं मुश्किल से तब
काश रोटी तू ना होती तो
यह चोरी डकैती क्यों होती ?

आशा जाकड़

     4

धरती माँ की गोद लहलहाए

जब दो जून की रोटी परिश्रम कराए,धरती माँ की गोद लहलहाए,
खून पसीना एक कर,कृषक के हिस्से उतना ही आए।

नङ्गे बदन पावों में,नहीं कभी चमचमाते जूते,
हरदम प्राणी दो जून की रोटी वास्ते,दौड़ लगाते सब मजदूरी जीवन।

धरती माँ सूखी बंजर हो,अश्रुपूरित नैनो से कहे कहानी,
छलनी मत करो हे निर्दय मानव,कूड़ा करकट मत भरो कर नादानी।

जब अन्न दान ,नुकसान न कर उतना ही लोगे थाली में,
तब दो जून की रोटी बहुत पुण्य से ही पाओगे जीवनमें।

जग के सारी प्राणी तृप्त हो,स्वयं दुनिया मे खुश विचरेंगे।
दो जून की रोटी पाने को,ईमानदारी बरतेंगे।
🙏
प्रभा जैन इंदौर

जनादेश के सात चरण

299th Birth Anniversary of Ahilyabai Holkar: पुण्यश्लोका : देवी अहिल्या बाई /