

धरती माँ की पुकार
प्रभा जैन इंदौर
रो रो कर कह रही,
धरती माँ की पुकार।
हे निर्दयी मनुज,क्यों करता मुझ पर अत्याचार।।
कांच,प्लास्टिक,कूड़ा करकट,सब कुछ मेरे गर्भ भार।
छलनी छलनी कर दिया,बंजर तार तार।।नहीं बचे हैं बाग बागीचे,कर दिया वृक्षों का संहार।
हरियाली को जग तरसे, और प्राणवायु की मारामार।।
जल बिन जैसे मीन तड़पे,वैसे सृष्टि पालनहार।
कृषक बेचारा तके नभ को,
नहीं बरखा मूसलाधार।।
धरती पर सारे प्राणी,
बिन पानी हाहाकार,
जल ही जीवन इसे,बचाओ
जन जन समझदार।।
दया करो है मानव प्राणी,प्राकृतिक जीवाधार।
तभी बचेगी अनमोल प्रकृति,
नहीं तो होगी हिंसा पापाचार।।
धरती माँ की गोद करो न सूनी,पाप से बचो न करो अत्याचार।
गर रहना हो सुरक्षित,सब जीवों का पर्यावरण ही आधार।।
:प्रभा जैन इंदौर
World Earth Day 2025 ; रत्नगर्भा धरा हमारी सुरक्षित रहे!