In Memory of My Father / मेरी स्मृतियों में मेरे पिता
पिता को लेकर mediawala.in में शुरू की हैं शृंखला-मेरे मन /मेरी स्मृतियों में मेरे पिता। इसकी 13th क़िस्त में इंदौर के व्यवसायी एवं बागवानी विशेषज्ञ श्री महेश बंसल अपने पिता स्व.श्री गिरधारीलाल जी बंसल के जीवन मूल्यों को, उनके सामाजिक सरोकारों को, याद करते हुए उस समय की मानवीय भावनाओं को जिनमें दया ,प्रेम, करुणा,अपनत्व और सहयोग का भाव हुआ करता था को भी परिभाषित करते हुए अपनी सादर श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं .
होता अनन्य साधारण महत्व
मानवीय मूल्यों का जीवन में.
ईश्वरीय सृष्टि में अनेक भाव है समाएं
सबसे ऊंचा श्रेष्ठ भाव
दिल में रखो करुणा भाव.
दया, प्रेम, करुणा, स्नेह से
मिटा जगत से संत्रास
अंधेरा ना रहे किसी घर में
फैलाओ इतना करुणा उजास…चन्द्रकला भारतीय
13.In Memory of My Father: माइग्रेन के घरेलू इलाज विशेषज्ञ, कई डॉक्टर उनसे कराते थे इलाज!
102 साल पूर्व काकाजी मतलब पिताजी श्री गिरधारीलाल जी बंसल का जन्म 25 नवंबर, 1922 को गाँव सिंधी बडौदा इंदौर में हुआ था । आधा जीवन गाँव में , तथा बाद का आधा जीवन शहर में व्यतीत हुआ । 14 वर्ष पूर्व 12 जनवरी, 2010 को एक दिन की अस्वस्थता के बाद श्रीजीशरण हुए थे । हम उन्हें काकाजी बुलाते थे .
पिताजी पर संस्मरण लिखते समय मुझे एक-एक कर अनेक दृश्य स्मरण आ रहे हैं ……उनका ट्रक में से खली के 100-125 बेग्स (केटलफीड का व्यवसाय था ) को अपनी पीठ पर रखकर खाली करना , सांप द्वारा काटने पर भी हम परिवारजनों को यह कहना मानो कुछ विशेष घबराने की बात ही नहीं है . वे कहते थे दया धर्म का मूल है, जैसे मूल के बिना वृक्ष टीक नहीं सकता। वह फल-फूल नहीं सकता और उसका अस्तित्व समाप्त हो जाता है। वैसे ही दया के अभाव में धर्म नहीं हो सकता, वह बढ़ नहीं सकता। दयाहीन व्यक्ति धार्मिक तो क्या इंसान कहलाने लायक नहीं होता।इसी वजह से वे हम लोगों को कबूतर को दाना एवं चिटियों को आटा देने हेतु भेजते थे . घर आये साधु-संत-फकीर को भोजन कराना , आम की टोकरी लाकर घर में पाल लगाना .. चूसने वाले आम पानी की बाल्टी में रखकर सपरिवार एक साथ बैठकर खाना , जानवरों हेतु घर के बाहर पानी की हौद रखना , सिर दर्द से पीडि़त व्यक्तियों को माईग्रेन की दवाई लगाना , साम्प्रदायिक दंगों के समय हम सभी को घर से बाहर सुरक्षित जगह भेजकर स्वंय मिर्ची लेकर दंगाईयों से घर की सुरक्षा करना ,हमें कन्धे पर बैठाकर अनंतचतुर्दशी का जुलूस दिखाना , परिवारजनों व मित्रों के साथ ताश खेलना ,तिजोरी की चाबी घर के सभी सदस्यों के लिये सुलभ कर सभी के प्रति विश्वास रखना ,जुनी इंदौर के सार्वजनिक हनुमानजी के मंदीर मे शिव परिवार मंदीर का जीर्णोधार करवाना , बच्चों को टाँफी का वितरण । शहर में रहने के पूर्व कृषक रहे , गाँव में खेती करते थे । बहुत कम पढे़ लिखे होने के बावजूद हम आठ भाई-बहनों की परवरिश बहुत अच्छी तरह की ।
न पिताजी रहे और न ही माँ .. काकाजी ( पिताजी ) को गये 14 साल एवं माँ को गये 4 साल हो गये । आज सोचता हूं कि क्या मैंने बेटे का कर्तव्य पूर्णरूपेण निभाया ? सच कहूं तो .. पूर्णरूपेण कदापि नहीं ।
मुझे दो संस्मरण याद आ रहे है .. एक बार पिताजी ने कहा था .. महेश ! मुझे जलेबी खाना है , बाजार से ले आ । मैंने पुछा था .. काकाजी आज कोई विशेष बात है क्या ? जो जलेबी का मन हो रहा है । काकाजी ने उस समय कहा था कि – बेटा तुम तो शादी ब्याह में अच्छे पकवान खा लेते हो , हम तो जा नहीं पाते .. अतः आज जलेबी खाने का मन हो गया । यह बात सिद्ध करती है कि मैं पिताजी की इच्छाओं से कितना अनभिज्ञ रहा ।
दूसरी घटना मेरी बिटिया एवं पिताजी-माताजी की एकमात्र पोती स्वाति के विवाह से सम्बंधित है । दोनों का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता था । अतः बिटिया की शादी में उडी़सा जाने हेतु उन्होंने असमर्थता दर्शायी थी । ट्रेन से लम्बी दूरी का सफर व जिस स्टेशन पर हमें उतरना था वहां केवल 2 मिनट का ही स्टाप होने से मैंने भी विशेष आग्रह नहीं किया था । लेकिन अब लगता है कि मुझे आग्रह पूर्वक ले जाना चाहिए था । वस्तुतः मुझे परेशानी नहीं हो , इसलिए उन्होंने जाने से इंकार किया था , लेकिन यदि मैं निश्चय कर लेता तो सम्भवतः चलने हेतु राजी हो जाते । ट्रेन का एक विशेष डब्बा हमने अलग से आरक्षित किया था .. लगभग 60 परिवारजन साथ थे .. 2 मिनट स्टेशन पर रुकी ट्रेन से जब सभी परिजन सामान सहित उतर गए तो व्हील चेयर की व्यवस्था कर माताजी पिताजी को भी उतारा जा सकता था .. लेकिन .. यह चूक अनेकों बार चुभती है । बातें और भी हो सकती है लेकिन यह दोनों घटनाएं ही मेरी अक्षमता को सिद्ध करती है ।
पिताजी ने दो क्लास तक ही पढ़ाई की थी, फिर भी पहाड़े अद्धा ,पोना , सवय्या के कंठस्थ थे । ५ वीं तक सरकारी स्कूल जो औदुम्बर धर्मशाला में लगता था, उसमें मेरी प्रारम्भिक शिक्षा हुई । संघ द्वारा संचालित दयानंद स्कूल में मुझे कक्षा 6 में भर्ती कराने का उनका निर्णय मेरे जीवन को दिशा देने वाला रहा। उनके ही सुझाव पर भतीजे का नामकरण आंनद रखा गया था। पिताजी तो नहीं रहे लेकिन गत वर्ष आनंद की सिनेमेटोग्राफी फिल्म एलीफेंट व्हिस्पर को आस्कर अवार्ड मिला तो अपने नाम को सार्थक करने पर परिवारजनों को अद्भुत आनंद की प्राप्ति हुई थी। कालोनी के नन्हें बच्चे नित्य टाफी लेने अपने टाफी वाले दादाजी के पास आते थे। माइग्रेन के त्वरित उपचार की ख्याति के चलते अनेक डाक्टर भी स्वयं का इलाज कराने पिताजी के पास आते थे। माइग्रेन के रोगी आते समय दर्द से परेशान रहते थे लेकिन दो मीनिट के उपचार से दर्द गायब हो जाता था। माइग्रेन सहित अनेक बीमारी के नुस्खे उन्हें याद थे । समाचारपत्र नवभारत ने विस्तार से इस संदर्भ में समाचार प्रकाशित किया था।
माईग्रेन का त्वरित उपचार
मेरे पूज्य पिताजी ने अपने जीवनकाल में असंख्य रोगियों को माईग्रेन की बीमारी से निजात दिलवाई थी । बहुत कम रोगी रहते थे जिन्हें फायदा नहीं हो पाता था । वही प्रयोग मैंने वीडियो में दर्शाया है ।
सामग्री – पापड़ खार ( Dry Fruit Hub , साजजी खार , संचोरा ,एल्कलाइन नमक ) चूना जिसे पान में लगाया जाता हैं । आधा चम्मच पापड़ खार में चूना इतना मिलाए कि वह पतला पेस्ट बन जाए । यह पेस्ट एक ही समय में तीन बार लगाने की विधि हेतु वीडियो देखें ।
* सिर दर्द के समय ही दवा किसी अन्य से लगवाए । आँखों में नहीं जाए ।
* एक बार दवा लगाने के बाद प्रायः फिर सिरदर्द नहीं होता है , लेकिन यदि पुनः सिरदर्द हो तो 2-3 दिन के बाद दर्द के समय पुनः दवा लगा सकते है ।
* दवा के प्रयोग के बाद पिताजी 5 रोटी गाय अथवा कुत्तों को खिलाने का अवश्य रोगी को कहते थे ।
-[नोट -यह चिकित्सा का घरेलू इलाज है जो लेख में स्मृति के सन्दर्भ में पिताजी की स्मृति के अंतर्गत प्रकाशित किया गया है ,किसी बीमारी के इलाज के लिए अपने चिकित्सक से परामर्श अवश्य लें . महेश बंसल , इंदौर]
पिताजी से संबंधित दो अनमोल धरोहर मेरे पास है। पहली कुछ वर्ष पूर्व धार में रहने वाले मेरे मामाजी ( कुछ ही दिन पूर्व मामाजी का 94 वर्ष की उम्र में देहावसान हुआ, जिनका देहदान किया गया था ) ने पिताजी के विवाह की कुंकुम पत्रिका वर एवं वधू दोनों पक्ष की मुझे दी थी। दूसरी धरोहर पिताजी की जन्मपत्रिका है जो कि रोल की हुई हस्तलिपि है। उस समय पंडित इसी प्रकार की जन्मकुंडली बनाते थे।
कोई भी कार्य छोटा नहीं होता , परिश्रम जीवन का अभिन्न अंग है , सभी पर विश्वास करो, जीव-जन्तु के प्रति सेवा-भाव रखो, एवं और भी बहुत कुछ सीखा है काकाजी से , हम सभी बच्चों ने ।
महेश बंसल, इंदौर
14. In Memory of My Father : समय से आगे चलते थे मेरे पिता
12. In Memory of My Father: भूले नहीं भूलता वो मूंछदार रौबदार चेहरा, मेरे पिता मेरे आदर्श