23.In Memory of My Father : जब बेटी ने किया पिता का अंतिम संस्कार!

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In Memory of My Father / मेरी स्मृतियों में मेरे पिता

पिता को लेकर mediawala.in में शुरू की हैं शृंखला-मेरे मन /मेरी स्मृतियों में मेरे पिता।. इस श्रृंखला की 23rd किस्त में आज हम प्रस्तुत कर रहे हैं हिंदी की प्राध्यापक और लेखिका सीमा शाह जी को । वे अपने पिता के साथ भावनात्मक रूप से जुड़ी रही। उन्होंने अपने पिताजी की इच्छा अनुसार उनका अंतिम संस्कार भी संपन्न किया। एक बेटी की संवेदनाओं से भरी कविता ही उनकी सादर श्रद्धांजलि है …….

खड़े हैं गर्व से पुलकित
चक्रवातो के बीच
चट्टानों से अटल
नगाधिराज बन जाए
हमारे पिता है वे
पुरुषार्थ की कर्म गीता लिख 
जल धारा सरिता की
कल कल शीतल लहर
भक्ति और आराधना की
गुनगुन धुन के बीच
सुरीली तान बन जाए
हमारे पिता है वह
संवेदना से भरे -सीमा शाहजी

23.In Memory of My Father:जब बेटी ने किया पिता का अंतिम संस्कार!

कितने ही पल मेरे विचार प्रवाह में इस तरह घुल मिल गए हैं कि जब भी पिता के बारे में सोचती हूं तो पाती हूं कि उनके बिंदास शब्द, प्रेरणा और संघर्ष में भी स्वाभिमानी ऊर्जा के अवले ,मेरी स्मृति में धरोहर बन चुके हैं।
जिंदगी की उलझनो में कई भूतहां तंतुओं को सुलझा कर संतप्त मन को सांत्वना की थाह दी , पिता के बलिष्ठ हाथों ने मेरे निर्जीव कंधों को थपथपाया ,” फिकर नॉट मेरे बच्चा “, मेरी” आंखों से झरते आंसू पोंछे हैं मेरे थके कदमों को समय की ताल और लय में चलने की उर्जस्व गतिमान विरासत एक थ्रिल थिंकिंग, जो जीवन के हर पन्ने पर शोख स्याही से लिखी है ।
मैंने अपने पिता को आत्मविश्वास के प्रतीक ” हिमालयो नाम नगाधिराज “के जैसा स्वाभिमान से पुलकित पाया । जीवन तो उनका भी संघर्षों से आपूरित था ,लेकिन सरिता की लहरों जैसी शीतल स्नेहल संवेदना और करुणा से भरा व्यक्तित्व भी था उनका । आज से 5 दशक पहले मेरा जन्म हुआ ,उनके होठों से पहली बधाई वे मम्मी को बोले ” बेटी धन पेटी ” सुनकर माता की स्नेह अश्रु बुंदे छलछला आई थी ,बेटी के लिए प्रेम की थाती, जिसकी कोई परिभाषा हो ही नहीं सकती ।

स्कूल से लेकर कॉलेज तक मेरा हर क्लास में फर्स्ट आना बोर्ड की परीक्षाओं में मेरिट में पास होना , मेरे अक्षरों को सुधारना, बचपन से लेकर आज तक ढेर सारी पुस्तके चंदा मामा नंदन, पराग ,धर्मयुग, मृत्युंजय, जैसी पुस्तकों को शिक्षा के साथ पढ़ने की प्रेरणा प्रदान करते रहना, मेरे रिजल्ट पर अपने मित्रों में परिवार से बात करना, मेरे मन को उत्साह से भर देता ।

शिक्षा पूरी होने के बाद कई सतरंगी सपने देखे ,शादी हुई ,सब कुछ इंद्रधनुषी रंगों जैसा था ,पर शादी हो जाने के बाद जब मुझे पति के बारे में प्रत्यक्ष पता चला, तो लगा कि मैं हार गई, कई लोगों ने चली कटी प्रतिक्रियाएं , परिणीति तलाक के रूप में पूरी हुई ।मेरे पैरों तले एक मरुस्थलीय रेतीला प्रवाह पसर गया  था ,ह्रदय प्रदेश छलनी होकर जार जार रोने के सिवाय और कर भी क्या सकता था ।शोक संतप्त मन पर दबाओ की श्रृंखलाएं भारी पड़ गई थी, फिर भी जब रात में छत पर टहलने जाते तो ,छत पर एक पुराना झूला जिस पर हम बैठकर बतियाते, मच्छरों के होते लाइट बंद करते थे ।वहां जुगनू अंधेरे में भी सर्च लाइट से चमकते, कभी पापा कभी मेरे और कभी मां के कंधों पर बैठकर उड़ जाते । उस समय पापा ने मुझसे कहा था ,देखो बेटी जुगनू जैसा छोटा जीव भी पसरे हुए बड़े देत्याकार अंधकार से नहीं डरता , अपनी जगमग रोशनी से अंधेरे में उजास करने का दम भरता है ।

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कई कई बातें सुबह की चाय भी मां छत पर ले आती,वहां मेरे पर्यावरणीय पिता ने बहुत सारे पौधों की बागवानी सजाई थी, वहां सुबह-सुबह पंछी फुदकते , सकोरे में पानी की बूंद से अपना गला तर करते ,पिता कहते देखो सीमू देखो …पंछी भी आजादी की सरमाए में खुली सांस लेते है कितने उत्फुलित्त लगते है ,सूर्य के उगते ही ,चिड़ियों की ची ची,तोते की राम-राम ,भंवरों की गुनगुन, कबूतरों के गुटर गू ,…कितनी जिंदादिली ,जो प्रकृति की मिठास में घोलकर हमें सुकून से जीने का सबब देते हैं। मुझमें कई विषमताओं से लड़ने की ताकत आ गई थी, पापा की प्रेरणा से फिर से अपनी शिक्षा में जुट गई। पीएचडी करके परिवार और गुरुजनों की स्नेह विश्वास की छाया में कॉलेज में हिंदी साहित्य की प्रवक्ता बन गई।

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कॉलेज में कई बच्चों के संघर्ष प्रसंग मेरे कानों में तिक्तता घोलते हैं ,तब मेरे होठों पर पिता की वाणी संस्कार ,जीवन के सरोकार व्यक्त होने लगते है, लगता है इस स्वावलंबन ,धैर्य ,आत्मनिर्भरता का पाठ पढ़ाकर पिता हवा की मानिंद हमारे अणु अणु को स्टरलाइज कर रहे हैं ।पापा याने कि एक बिंदास पर्सनलिटी , बच्चों में बच्चे जैसे मासूम -बुलबुल ,बड़ों में बड़ो जैसी गरिमा ,….जैसा चाहे वैसा जीवन जिया ….रिश्ते नाते परिवार हो या आध्यात्म दहलीज सभी जगह एक सखा भाव …. किसी बात पर कोई लाग लपेट नहीं ….एक पारदर्शी जीवन ….पिछले कई वर्षों तक उन्होंने अस्वस्थता से भी आंखें चार की ,लेकिन दैनिक क्रिया वैसी ही चलती रही , रिश्ते नाते हो या समाज की दहलीज सभी जगह कंकुई भाव छाया रहा, शुभ स्वस्तिक उकेरता रहा।

स्वस्तिक - विकिपीडिया
14 दिसंबर 2021 मोक्षदा एकादशी का दिन था ,दिन अपने ढलान बिंदु की तरफ बढ़ रहा था , पापा की सांसे किसी योगी की तरह दरवाजे की तरफ ऐसी रुकी कि हम विश्वास ही नहीं कर पाए कि वह अपने जीवन यात्रा को विराम दे चुके हैं । पिता की अंतिम इच्छानुसार जब मैंने उनकी पार्थिव देह के साथ घर की देहरी उलांघी और सभी के साथ अंतिम क्रिया स्थल पर पहुंची , तब मेरे साथ शाहजी परिवार के संस्कार भी साथ-साथ चल रहे थे । पिता तो रोज एक बार कहते थे कि “तुम मेरी बेटी नहीं बेटा हो खूब सेवा की तुमने तुम्हारी मां और मेरी ” कहते हुवे उनकी आंखें गीली हो जाती और फिर मुझसे बतियाने लग जाते । उनकी इच्छा अनुसार अंतिम संस्कार की क्रियाएं मैंने ही पूरी की
मैं मानती हूं की बीमारी में उनके साथ उन्होंने कई बार मुझे अच्छे बुरे अनुभव बांटे हैं और यही मेरी पूंजी है , मैं उन भाग्यशाली बेटियों में से एक हूं जिनको अपने माता-पिता की सेवा करने का अवसर मिला. भगवान की कृपा रहे तो अगले जन्म में भी मुझे ऐसे ही पिता मिले.

पिता के लिए मेरी शब्द रूपी भावांजलि प्रस्तुत है

हमारे पिता है वे
विरासत की जड़ों
संस्कृति संस्कार के

टूटते झरते बिखरते
मूल्यों के बीच
पल्लव को सहेजे सहलाए
मूल्य के बीच
स्नेहिल ऊष्मा का
कवच बन जाए
हमारे पिता है वे
सघन कलुष को तोड़
दीप से दीप जलाए
आंसू दुख दर्द उलझाव में
कंधों से निराश हटाए
प्रेम का सागर छलका है
जननी की सांस में
परिवार की आस में
कण-कण समाए
सत्य का पैनापन
शिव सा तांडव
या
सुंदरम की अनुसूत्र अभिव्यक्ति
सर्वशक्तिमान परमेश्वर
गुरुवर या ईश्वर के बीच परम सत्ता बन जाए
हमारे पिता है वह
सृजन के प्रणेता
नमन कर हाथ जुड़ जाए,….

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डॉ सीमा शाहजी
सहायक प्राध्यापक हिंदी
थांदला जिला झाबुआ
मोबाइल 7987678511

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