देश के पहले कानून एवं न्याय मंत्री डॉ. भीमराव अंबेडकर की पुण्यतिथि आज 6 दिसंबर है। 65 साल जिये डॉ. अंबेडकर की यह 65 वीं पुण्यतिथि है। डॉ. भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्यप्रदेश के छोटे से गांव महू में हुआ था। 6 दिसंबर 1956 को 65 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया।
बाबा साहब के पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल और माता का नाम भीमाबाई था। दुनिया के विभिन्न धर्मों का गहन अध्ययन करने के बाद उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया था। भारत में सदियों से मौजूद रही जाति व्यवस्था में अस्पृश्यता और छुआछूत को खत्म करने का महाअभियान चलाने वाले डॉ. अंबेडकर की सोच थी कि सामाजिक भेदभाव खत्म हो। भारत रत्न डॉ. अंबेडकर की विचारधारा पर आज हर राजनीतिक दल अग्रसर है।
जिस तरह राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की विचारधारा हर राजनीतिक दल के लिए महत्वपूर्ण है तो डॉ.अंबेडकर भी उसी अग्रिम पंक्ति में शुमार हैं। लेकिन डॉ. अंबेडकर को श्रद्धांजलि देने का सबसे अच्छा तरीका यही है कि यह आकलन किया जाए कि देश के पहले कानून मंत्री की सोच के साथ उनके जाने के 65 साल बाद कितना न्याय हुआ है? समाज में बदलाव लाने की दिशा में देश कितने कदम आगे बढ़ा है? वैसे तो हर राजनीतिक दल के नेता आज डॉ. अंबेडकर को श्रद्धांजलि देंगे लेकिन विशेष बात यही है कि मंथन हो कि अंबेडकर की सोच पर देश कितने कदम चल चुका है और कितने कदम चलना बाकी है?
पुण्यतिथि पर हम भारत रत्न बाबा साहब और संविधान निर्माता के रूप में उनकी भूमिका के बारे में बात करें तो वह एक दूरदर्शी, समाज सुधारक और न्यायप्रिय व्यक्तित्व के धनी साबित होते हैं। डॉ. अंबेडकर संविधान की मसौदा समिति के अध्यक्ष थे। गांधी व कांग्रेस की कटु आलोचना के बावजूद अंबेडकर की प्रतिष्ठा एक अद्वितीय विद्वान और विधिवेत्ता की थी।
जिसके कारण जब, 15 अगस्त 1947 को भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद, कांग्रेस के नेतृत्व वाली नई सरकार अस्तित्व में आई तो उसने अंबेडकर को देश के पहले क़ानून एवं न्याय मंत्री के रूप में सेवा करने के लिए आमंत्रित किया, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। 29 अगस्त 1947 को, अंबेडकर को स्वतंत्र भारत के नए संविधान की रचना के लिए बनी संविधान की मसौदा समिति के अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया गया। संविधान निर्माण के कार्य में अंबेडकर का शुरुआती बौद्ध संघ रीतियों और अन्य बौद्ध ग्रंथों का अध्ययन भी काम आया।
अंबेडकर द्वारा तैयार किए गए संविधान के पाठ में व्यक्तिगत नागरिकों के लिए नागरिक स्वतंत्रता की एक विस्तृत श्रृंखला के लिए संवैधानिक गारंटी और सुरक्षा प्रदान की गई है, जिसमें धर्म की आजादी, छुआछूत को खत्म करना, और भेदभाव के सभी रूपों का उल्लंघन करना शामिल है।
अंबेडकर ने महिलाओं के लिए व्यापक आर्थिक और सामाजिक अधिकारों के लिए तर्क दिया, और अनुसूचित जातियों (एससी) और अनुसूचित जनजातियों (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के सदस्यों के लिए नागरिक सेवाओं, स्कूलों और कॉलेजों में नौकरियों के आरक्षण की व्यवस्था शुरू करने के लिए असेंबली का समर्थन जीता, जो कि सकारात्मक कार्रवाई थी।
भारत के सांसदों ने इन उपायों के माध्यम से भारत की निराशाजनक वंचित वर्ग के लिए सामाजिक-आर्थिक असमानताओं और अवसरों की कमी को खत्म करने की उम्मीद की। संविधान सभा द्वारा 26 नवंबर 1949 को संविधान अपनाया गया था।
अपने काम को पूरा करने के बाद, बोलते हुए, अंम्बेडकर ने कहा था कि “मैं महसूस करता हूं कि संविधान, साध्य है, यह लचीला है पर साथ ही यह इतना मज़बूत भी है कि देश को शांति और युद्ध दोनों के समय जोड़ कर रख सके। वास्तव में, मैं कह सकता हूँ कि अगर कभी कुछ गलत हुआ तो इसका कारण यह नहीं होगा कि हमारा संविधान खराब था बल्कि इसका उपयोग करने वाला मनुष्य अधम था।
अंबेडकर ने देश के पहले कानून मंत्री के नाते जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 का विरोध किया था। अंबेडकर वास्तव में समान नागरिक संहिता के पक्षधर थे और कश्मीर के मामले में धारा 370 का विरोध करते थे। अंबेडकर का भारत आधुनिक, वैज्ञानिक सोच और तर्कसंगत विचारों का देश होता, उसमें पर्सनल कानून की जगह नहीं होती।
संविधान सभा में बहस के दौरान, अंबेडकर ने एक समान नागरिक संहिता को अपनाने की सिफारिश करके भारतीय समाज में सुधार करने की अपनी इच्छा प्रकट की। 1951 में संसद में अपने हिन्दू कोड बिल (हिंदू संहिता विधेयक) के मसौदे को रोके जाने के बाद अंबेडकर ने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया। हिंदू कोड बिल द्वारा भारतीय महिलाओं को कई अधिकारों प्रदान करने की बात कही गई थी। इस मसौदे में उत्तराधिकार, विवाह और अर्थव्यवस्था के कानूनों में लैंगिक समानता की मांग की गयी थी।
तो 21 वीं सदी में भारत की राजनीति अंबेडकर की सोच के इर्द-गिर्द नजर आ रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश पर दाग अनुच्छेद 370 को खत्म कर दिया है। तीन तलाक बिल लाकर पर्सनल कानून पर प्रहार किया है। तो देश अब समान नागरिक संहिता की तरफ कदम बढ़ा रहा है। यानि कि मोदी के फैसले यह साबित कर रहे हैं कि अंबेडकर की सोच में न्यायप्रियता थी और देश और समाज का हित कूट-कूट कर भरा हुआ था। यही वजह है कि राष्ट्रहित में मोदी अंबेडकर की सोच पर आगे बढ़ रहे हैं।