गणतंत्र की जयकार के साथ संविधान और कर्तव्यों की चिंता जरुरी 

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गणतंत्र की जयकार के साथ संविधान और कर्तव्यों की चिंता जरुरी 

गणतंत्र की गौरव गाथा की जयकार करते हुए भारतीय संविधान निर्माताओं के लक्ष्यों और भावनाओं का स्मरण भी होना चाहिए | संविधान को अंतिम रुप दिए जाने के बाद 26 नवम्बर 1949 को संविधान सभा के अध्यक्ष डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने कहा था – ” यदि चुनकर आए लोग योग्य , चरित्रवान और ईमानदार हुए तो वे दोषपूर्ण संविधान को भी सर्वोत्तम बना देंगे | यदि उनमें इन गुणों का अभाव रहा तो संविधान देश की कोई मदद नहीं कर सकता |आख़िरकार संविधान एक मशीन की तरह निर्जीव है | इसमें प्राणों का संचार उन व्यक्तियों पर निर्भर है , जो इस पर नियंत्रण कर चलाते हैं | देश का हित सर्वोपरी रख ईमानदार लोग ही यह काम कर सकेंगे | ”

गणतंत्र का उल्लेख भारतीय सन्दर्भ में रामराज्य के रुप में होता है | आदर्श गणतंत्र ,जहाँ सबको आगे बढ़ने और स्वतंत्र अभिव्यक्ति का अधिकार हो | गणतंत्र जिसमें पांच परमेश्वर है | गणतंत्र , जहाँ सुदूर गांवों में संघर्षरत गरीब व्यक्ति न्याय पाने की अपेक्षा रख सकता हो |पिछले 70 वर्षों में भारतीय गणतंत्र फैला फूला है | बड़े बड़े राजनीतिक तूफानों को झेलने के बावजूद उसकी जड़ें कमजोर नहीं हुई है | दुनिया के कई लोकतान्त्रिक देशों के मुकाबले भारत की राजनीतिक शक्ति में बढ़ोतरी हुई है | सामान्य आंतरिक आलोचना – विरोध भले ही हो , अमेरिका , ब्रिटेन , जर्मनी , फ्रांस , जापान जैसे सम्पन्न शक्तिशाली देश भारत के लोकतंत्र और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व की सराहना कर अंतर्राष्ट्रीय शांति तथा विकास में महत्वपूर्ण भूमिका मान रहे हैं |

संसद का नया भव्य भवन तैयार हो गया है | संसद को लोकतंत्र के मंदिर की संज्ञा दी जाती है | 1952 से 2023 तक की संसद में सांसदों की अहम् भूमिका से सामाजिक आर्थिक बदलाव हुए हैं | इसलिए संसद के हंगामों , सत्ता के दुरुपयोग और भ्रष्टाचार के आरोपों के आधार पर संसद का अवमूल्यन उचित नहीं है | असली खतरा नक्सल संगठनों या कट्टरपंथी संगठनों से है | संविधान प्रदत्त अधिकारों की दुहाई और न्याय व्यवस्था की कमजोरी का लाभ उठाकर ऐसे तत्व समाज में हिंसा और अराजकता फ़ैलाने की कोशिश करते हैं | इससे भी महत्वपूर्ण मुद्दा यह है कि अमेरिका या यूरोपीय देशों के लोकतान्त्रिक अधिकारों से तुलना करने और उनकी अर्थ व्यवस्था से प्रतियोगिता करने वाले नेता और संगठन संविधान पर अमल के लिए आवश्यक कर्तव्यों के पालन और उनके लिए व्यापक जागरूकता के साथ निभाने के लिए कितने प्रयास करते हैं ? संसद द्वारा पारित कानूनों को नहीं स्वीकारने की घोषणा करने में भी उन्हें कोई हिचक नहीं होती | कांग्रेस सहित कई दलों के अपने संविधान में मद्य निषेध और सादगीपूर्ण जीवन की अनिवार्यता लिखी है , लेकिन कितने नेता उनका पालन कर रहे हैं ? कर्तव्य नहीं स्वीकारने की पराकाष्ठा यह है कि संविधान की शपथ लिए हुए मुख्यमंत्री सड़क पर धरना – आंदोलन और संसद द्वारा पारित कानून के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र के जरिये जनमत संग्रह तक की शर्मनाक मांग करने लगे हैं ? दुनिया के किस देश में राज्यों में बैठे सत्ताधारी क्या इस हद तक अपनी ही राष्ट्रीय सरकार और नीतियों का विरोध करते हैं ? अपनी सेना को भड़काते हैं ? जब नेता स्वयं अधिकारियों , शिक्षकों , डॉक्टरों , इंजीनियरों को अपने कर्तव्यों से हटकर गलत काम करवाते रहेंगे तो अप्रत्यक्ष रूप से संविधान के तहत सामान्य नागरिकों के हितों को नुकसान नहीं पहुंचेगा ?

लोकतंत्र की मजबूती के लिए उन्माद नहीं सही मुद्दों और समाज को जागरूक एवं शिक्षित करने की जरुरत होती है | इन दिनों तो विभिन्न राज्यों में प्रतिपक्ष के नेता गलत जानकारी और भय का वातावरण बनाकर जनता को भ्रमित करते दिख रहे हैं | संविधान निर्माता डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने स्पष्ट शब्दों में कहा था ” बिना चरित्र और बिना विनम्रता के शिक्षित राजनीतिक व्यक्ति जानवर से ज्यादा खतरनाक है |यह समाज के लिए अभिशाप होगा |”

| बहुत से लोग वर्तमान स्थिति से निराश होकर चिंता व्यक्त करते हैं | उनके लिए मैं एक पत्र की ओर ध्यान दिलाना चाहता हूँ | पत्र में लिखा था ” मैं शिद्धत से महसूस कर रहा हूँ कि कांग्रेस मंत्रिमंडल बहुत अक्षम तरीके से काम कर रहे हैं | हमने जनता के मन में जो जगह बनाई थी , वह आधार खिसक रहा है |राजनेताओं का चरित्र अवसरवादी हो रहा है | उनके दिमाग में पार्टी के झगड़ों का फितूर है |वे इस व्यक्ति या उस गुट को कुचलने की सोच में लगे रहते हैं | ” यह पत्र आज के कांग्रेसी का नहीं है | यह पत्र महात्मा गाँधी ने 28 अप्रैल 1938 को लिखा और नेहरू को भेजा था , जब राज्यों में अंतरिम देशी सरकारें बनी थी | फिर नवम्बर 1938 में गांधीजी ने अपने अख़बार हरिजन में लिखा – “यदि कांग्रेस में गलत तत्वों की सफाई नहीं होती तो इसकी शक्ति ख़त्म हो जाएगी ” मई 1939 में गाँधी सेवा संघ के कार्यकर्ताओं को सम्बोधित करते हुए महात्माजी ने बहुत दुखी मन से कहा था ” मैं समूची कांग्रेस पार्टी का दाह संस्कार कर देना अच्छा समझूंगा , बजाय इसके कि इसमें व्याप्त भ्र्ष्टाचार को सहना पड़े | ” शायद उस समय के नेताओं पर गाँधीजी की बातों का असर हुआ होगा , लेकिन क्या आज वही या अन्य पार्टियां भी उस विचार आदर्श से काम कर रही हैं ?

क्षेत्रीय हितों की रक्षा के लिए आवाज उठाना उचित है , लेकिन उसके नाम पर सत्ता में आने के बाद केंद्र की सरकार से निरंतर टकराव की नीति से प्रदेशों का सामाजिक आर्थिक विकास कैसे संभव होगा ? संविधान निर्माताओं ने कभी कल्पना नहीं की होगी कि स्वायत्तता के नाम पर प्रादेशिक सरकारें कानून व्यवस्था की केन्दीय एजेंसियों को अंगूठा दिखाने लगेंगी , शिक्षा के मामले में मनमाने पाठ्यक्रम लादने लगेंगीं , जाति और धर्म के नाम पर स्वयं उन्माद पैदा करने लगेगीं | जिम्मेदारी राष्ट्रीय पार्टियों की भी है कि वे स्वयं क्षेत्रीय आकांक्षाओं को ध्यान में रखकर क्षेत्रीय नेतृत्व को तैयार करे और उन्हें मजबूत भी करे |

गणतंत्र में कार्यपालिका तो विधायिका के साथ जुडी हुई है | तीसरा आधार स्तम्भ है – न्यायपालिका | इन दिनों सरकर , संसद और न्याय पालिका के बीच गंभीर तनाव और टकराव की स्थिति दिख रही है | यह खतरे की घंटी है | टकराव को समाप्त करने के लिए दोनों पक्षों को संवाद के जरिए हल निकालना होगा | केवल अपनी शक्ति सर्वोपरि होने के दावे से व्यवस्था नहीं चल सकती | हाँ संविधान निर्माताओं ने चुनी हुई संसद को सर्वोच्च स्थान दिया था | एक तरह से संतुलन और निगरानी के लिए न्यायपालिका को अधिकार दिए थे | इसीलिए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश वेंकटचलैया और जे एस वर्मा ने जजों की नियुक्ति के लिए एक आयोग बनाने और न्यायाधीशों के साथ सरकार के प्रतिनिधि को रखा जाना चाहिए | जज द्वारा स्वयं जज का नाम तय करने के अधिकार से कुछ पक्षपात और भाई भतीजावाद के आरोप के खतरे रहे हैं |बहरहाल कुछ लोगों और आशंकाओं के आधार पर न्यायपालिका की विश्वसनीयता कम नहीं आंकी जा सकती है | आज भी करोड़ों लोगों की न्याय व्यवस्था पर आस्था है | चौथे स्तम्भ मीडिया के विरुद्ध राजनीतिक अभियानों से उसकी विश्वसनीयता को खतरा पैदा हो रहा है | अदालत की तरह मीडिया में भी कुछ कमियां – गड़बड़ी हो सकती है , लेकिन अब भी स्वतंत्र अभिव्यक्ति और बढ़ती प्रतियोगिता से समाज लाभान्वित हो रहा है | इसलिए गणतंत्र के उत्सव पर पूरे उत्साह से बोली जाए – जय |