अपनी भाषा अपना विज्ञान: ” सोनोरन –एक रेगिस्तान का वनस्पति विज्ञान”
सोनोरन रेगिस्तान। संयुक्त राज्य अमेरिका के दक्षिण पश्चिमी भाग में स्थित एरिजोना प्रांत में। सोनोरन दुनिया का सबसे नया रेगिस्तान है। लगभग 15 से 20000 वर्ष पुराना। यह अभी सूख रहा है। प्रक्रिया जारी है। ढेर सारे पौधे और वृक्ष। खुब हरियाली। हरा-भरा रेगिस्तान। इस तरह के विरोधाभासी शब्द युग्म को अंग्रेजी में ऑक्सीमोरोन(oxymoron) कहते हैं।
फिनिक्स शहर से कुछ मील बाहर निकलते ही इस संसार की शुरुआत हो जाती है। अनूठा जगत है। खास इकोलॉजी (पारिस्थितिकी) है। प्रमुख प्रतीक है सेगुआरो कैक्टस। ऊंचे, मोटे, गुदेदार सेगुआरो के दृश्य हालीवुड की फिल्मों में देखे होंगे। ओल्ड वेस्टर्न फिल्म्स। वेस्टर्न या पश्चिम का अमेरिकी इतिहास व संस्कृति में विशेष महत्व है।
जीप टूर और पैदल भ्रमण के लिए हमारा गाइड स्टीव था। भरापूरा शरीर। धूप और हवा की मार से चेहरा मानो झुलसा हुआ। झबरीली मूँछे । स्पेनिश हेट। मोटी, खुरदुरी आवाज। मैक्सिकन छवि बनाई हुई थी, हालांकि स्वयं उत्तर के राज्य विस्कांसिन का रहने वाला था। धंधे के अनुसार खुद को ढाल लिया था। ठीक वैसे ही जैसे सोनोरन रेगिस्तान के वृक्ष अपने आप को ढाल लेते हैं। मैक्सिकन या स्पेनिश एरीजोना से मेल खाता है। इस राज्य की दक्षिणी सीमा मेक्सिको राष्ट्र से मिलती है।
मौसम खुशनुमा ही रहता है। साल में 330 दिन धूप खिलती है, चटक नीला आकाश। हवा एकदम पारदर्शी। तापमान अपने उत्तर भारत के मैदानों जैसा। धुप में चिल्का तेजी व गर्मी थी पर हवा ठंडी और बहने वाली थी। छोटी पहाड़ियों और घाटियों, ग्रेनाइट के बड़े-बड़े बोल्डर और चट्टानें विचित्र शिल्प गढ़ रहे थे।
प्रकृति के साथ समझौते के सबसे नायाब नमूने रेगिस्तान के वृक्षों में देखे जा सकते हैं। कैसे अपने आपको ढालना, इसके रोचक उदाहरण है। धूप बहुत है और तेज है। हवा सूखी है। नमी यदा-कदा मिलती है। साल में सिर्फ 10 इंच बारिश होती है। चौबीस घंटों के भीतर दिन और रात के अधिकतम न्यूनतम तापमान में भारी बदलाव होते हैं। दोपहर में तपता रेगिस्तान, आधी रात के बाद रोज ठिठुरता है।
स्टीव बता रहा था ‘छू कर देखो पत्तियों और तनों को, सब के ऊपर मोम की परत चढ़ी हुई है, जो पौधे के अंदर के पानी को धूप में भाप बनकर उड़ने नहीं देती, और देखो इस वृक्ष की पत्तियों को। नहीं दिखी? जरा पास आओ, आंखें गड़ओ – सबसे छोटी पत्तियों का विश्व रिकॉर्ड है। बारिक महीन रोये के समान। और इस झाड़ी में एक भी पत्ता नहीं। तमाम शाखाओं का बारीक जाल है। सब हरी है। प्रकाश संश्लेषण तने में होता है।“
कांटों की बहार है। फूल और कांटों की उपमा का उपयोग विपरीत ध्रुवों को दर्शाने के लिए करते हैं। काँटों लाक्षणिक संदर्भ प्रायः दुख, पीड़ा, दुर्दशा से जोड़ते हैं। पर रेगिस्तान के पौधों के लिए कांटे जीवनदाई हैं। उनका अपना सौंदर्य संसार है। सनसनाती हवा के स्पर्श को कांटे धीमा करते हैं। पानी कम उड़ता है। तने को छाया मिलती है। प्रजनन की संभावना को कांटे दूर तक ले जाते हैं। टूटे हुए हिस्से अन्य प्राणियों पर चिपक कर नई भूमि तक पहुंचते हैं और शिशु पौधा उगने लगता है।
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चोआ केक्टस
चोआ नामक कैक्टस के जमीन पर पड़े टुकड़े को मैंने जूते से किक मारकर दूर फेंकने का उपक्रम किया।
(चित्र- चोआ केक्टस)
स्टीव चिल्ला पड़ा – नहीं.. नहीं.. रुको.. रुको. मै रुक ना पाया। स्टीव नाराज था। कैक्टस के कांटे मेरे जूतों में धँसे थे। स्टीव ने अपना बहु उपयोगी औजार निकाला। “स्विस आर्मी नाइफ” जैसा, उसके पिंचिस से एक-एक काटे को मेरे जूते से निकालने में उसे खासी मशक्कत करनी पड़ी। फिर उसने एक कांटा अपने हाथ के पृष्ठ भाग की चमड़ी में भेदकर बताया कि क्यों इतनी ताकत लगाना पड़ती है उसे बाहर निकालने में। प्रत्येक कांटे पर अत्यंत सूक्ष्म बारीक काटें होते हैं, साइड में निकले हुए, जो नंगी आंखों से नहीं दिखते और जिस पदार्थ में धस जाए वहां से बाहर नहीं आने देते।
पानी की जमाखोरी कोई कैक्टस से सीखे। मोटे गोल तनों में पानी ही पानी भरा होता है। कंजूस सेठ की तरह सारी दौलत अंदर छुपाए रहते हैं। तने को काटो, फोडो, छेद करो, चूसो तो रिसाव तत्काल दिखने लगता है। दबाव तो नरम। मसलों तो गीला गूदा।
पत्तियां या तो होती नहीं, या बारिक होती है। जो होती है, अपनी दिशा लम्बवत खड़ी रखती है ताकि सूर्य की किरणें उन की सतह पर ना पड़े। पत्तियों का भूरा रंग कुछ इस किस्म का होता है जो प्रकाश को सोखाता नहीं, उसे परावर्तित कर देता है। जमकर धँसने वाले कांटों का गुच्छा दूर से सफेद रूई के फाहे सा प्रतीत होता है। इसे रेगिस्तान का “वेल्क्रो” कहते हैं। चोला की कलियाँ मरुस्थल वासियों के लिए प्रोटीन का स्त्रोत है। चोला के एक हिस्से को स्टीव ने अपने औजार से काटा, डंठल से पकड़ा, सिगरेट लाइटर से बाहरी कांटे जलाए, चाकू से फल को काटा और अंदर गीला, हरा, तेलीय, चिकना, चिपचिपा सा तीखी गंध वाला गूदा सब को दिखाया। विटामिन सी व केल्शियम से परिपुर्ण यह फल बहुपयोगी है।
सोनोरन रेगिस्तान में 35 सौ के करीब पौध प्रजातियां है जिनमें से अनेक विश्व में कहीं और नहीं मिलती।
सेगुआरो कैक्टस
सेगुआरो कैक्टस, यहां की खास पहचान है। इस इलाके के मूल निवासियों के लिए यह पवित्र वृक्ष है।
ठीक वैसे ही जैसे अपने थार मरुस्थल के बिश्नोईयों के लिए खेजड़ी व अन्य वृक्ष। ‘पवित्र’ होना एक प्रतीक है मनुष्य और प्रकृति के गहन अंतरसंबंधों का। विशालकाय सेगुआरो की शुरुआत नन्हे बीज से होती है जो किसी अन्य वृक्ष(पालोवर्दो या क्रिओसोट झाड़ी) की गोद में छाया और सुरक्षा और झड़ते हुए भागों से पोषण पाता है। अत्यंत धीमी चाल से बढ़त होती है। नो दिन चले अढ़ाई कोस। 10 साल में 1 इंच। 20 से 50 वर्ष में जाकर 3 फुट। एक अकेला स्तंभ उठता जाता है। 50 से 100 वर्ष की उम्र में भुजाएं उगना शुरू होती है। कभी एक तरफ, कभी दोनों तरफ। अपने शबाब पर सेग्युआरो की ऊंचाई चालीस-पचास फीट तक पहुंचती है। इसे पाने में 250 से 300 वर्ष लगते हैं।
आकाश को छूते हुए प्रतीत होने वाले इन दैत्यों की जड़ें उथली होती है। जमीन में मुश्किल में 45 इंच गहरी। भीतर जाने की क्या जरूरत? रेती में पानी है नहीं। अतः जड़े सतह के समानांतर (हॉरिजॉन्टल) दिशा में दूर तक फैलती है ताकि विशालकाय खंभों को स्थायित्व प्रदान किया जावे।
पानी की इफरात के दिनों में पौधे का 90% वजन पानी का होता है। प्रति फूट लगभग 35 किलो वजन। एक वयस्क सेगुआरो में 1 टन पानी। जंगी कैक्टस की भुजाओं के नीचे जब हम अपना चित्र खिंचवाने खड़े हुए तो स्टीव ने आंख मारते हुए आगाह किया कि यदि एक शाखा टपक पड़े तो आदमी बच नहीं पाता। हमारी “चीज” वाली मुस्कान जाती रही और शरीर के रोए कैक्टस के कांटे के समान तन गए।
बूढ़े सग्युआरो की भुजाएं लटकने लगती है। कभी कभी उनसे रोचक मुद्राओं का आभास होता है जैसे नमस्ते, दुआ, सलाम, आलिंगन थम्स-अप, बाय-बाय, हाय फाईव आदि।
मूल रेड इंडियंस निवासी जून जुलाई माह में इन फलों को बटोरते हैं उबालकर शोरबा बनाते हैं। उससे प्राप्त सुरा(Wine) का उपयोग वर्षा का आह्वान करने वाली पारंपरिक रस्म में किया जाता है। बीजों को सुखाकर पीसने से आटा मिलता है। ।
गिलबिले गुदे के भीतर कस कर ठुंसी हुई लकड़ी की छड़ों का गट्ठर होता है जो तने को मजबूती प्रदान करता है। पीमा और तोहन प्रजाति के रेड इंडियंस इन ‘रिब्स’(पसलियों) का उपयोग अपनी झोपड़ियाँ और बागड़ बनाने में करते थे ।
‘जैक रैबिट’ नामक खरगोश नन्हे सेग्युआरो (2 फीट ऊंचाई, 25 वर्ष उम्र) का गूदा शौक से खाते हैं और थोड़ी सी छाया भी पा जाते हैं। मई-जून में स्तंभ के ऊपरी सिरे पर 3 इंच आकार के, सफेद, मोमदार फूल उगते हैं जो रात में खिलते हैं। महीने भर बाद लाल रसीला फल बनता है जिसमें बारीक काले बीज होते हैं। 50 वर्ष की उम्र और 10 फीट की ऊंचाई हासिल कर लेने के बाद यह संभव होता है। अनेक चिड़ियाए और चमगादड़ इन फूलों का मधु पीने आते हैं।
“गिला” नाम का कठफोड़वा पक्षी फल खाता है और अपनी सख्त चौंच से तने में छेद करके घर बनाता है जो गर्मियों में ठंडा और रात में गर्म होता है। कृतज्ञ पक्षी कैक्टस की मदद करता है। तरह-तरह के कीड़ों को चट करता है जो सेग्युआरो को नुकसान पहुंचाते है।
मूल तने और भुजा की कांख में कपोत पक्षी घोंसला बनाते हैं। पुराने खाली छोड़ दिए गए कोटर में उल्लू बसेरा जमाते हैं। चिड़ियाए फुनगी पर आराम फरमाती है। उन्हें भरोसा है सख्त नुकीले काटो भरे तने पर कोई शिकारी पशु नहीं आ सकता। एक भरे पूरे कैक्टस की तुलना हम होटल से कर सकते हैं, जिसमें ढेर सारे कमरे हैं तथा मेहमान आते हैं और जाते हैं।
200 सालों की जिंदगी के बाद यह भीम काय रचनाएं धराशाई होने लगती है। आंधी-पानी में गिर पड़ते हैं। मर कर भी उपयोगी रहते हैं। सूखते तने की छाया में बिच्छू, सांप, कनखजूरा, चींटे, दीमक, आदि अनेक दिनों का सहारा पाते हैं।
क्रयोसोत झाड़ियाँ
सोनोरन रेगिस्तान में सबसे बहुतायत में पाई जाने वाली झाड़ी है क्रयोसोत। इसका चिपचिपा गूदा टोकनियों व मटकों को वाटरप्रूफ (जल रोधी) बनाता है। औषधियों गुणों पर खोज जारी है। झाड़ी की छांव में छोटे प्राणी व पौधे सहारा पाते हैं। मूल बीज से निकलने वाली शाखाएं एक केंद्रिय वृत्तो की श्रंखला बनाती है। नई शाखाएं बाहरी और होती है।
(चित्र: क्रयोसोत झाड़ी)
‘बैरल कैक्टस’
जमीन पर पड़े हुए एक मोटे बेलनाकार ‘बैरल कैक्टस’ को दिखाकर स्टीव ने पूछा क्या आप यहां चारों दिशाएं बता सकते हैं। अन्य यात्री आकाश में सूरज और चंद्रमा की स्थिति से अनुमान लगाने लगे पर दोपहर के समय सूर्य सिर पर था। संयोगवश मैंने रात को होटल के कमरे में सोनोरन के बारे में पढ़ते समय जान लिया था कि यह दक्षिण दिशा की ओर झुक कर, आड़े पड़े जाते हैं। उत्तरी अक्षांसो पर सूर्य प्रायः दक्षिणायन दशा में होने से। “कम्पास कैक्टस” (कुतुबनुमा ) की इस खासियत के बारे में बताकर आनंद आया।
(चित्र: कम्पास बेरल केक्ट्स)
‘आयरन वुड’ नामक पौधे का कंद इतना भारी होता है कि वह पानी में तैरता नहीं, डूब जाता है। लौह तत्व के कारण।
‘जोजोबा’ के बीजों का मोम व तेल, सौंदर्य प्रसाधनों में लोकप्रिय है।
‘ओकोटीलो’ की मजबूत कांटेदार बेंत नुमा शाखाएं बागड़ या फेंसिंग बनाने के काम आती है।
‘पालोवर्दो’ एरीजोना का राजकीय वृक्ष है। स्पेनिश भाषा के इस शब्द का अर्थ है हरी झाड़ियां। पत्ते नहीं होते। इनकी आयु 300-400 वर्ष होती है।
‘प्रिकली पियर’ (कांटेदार नाशपाती) हमारे यहां की नागफनी से मिलता-जुलता है। मोटा रसीला गुदेदार तना व फल खाने योग्य होते हैं।
बहुत साल पहले ‘नेशनल ज्योग्राफिक पत्रिका’ में सोनोरन रेगिस्तान पर लेख छपा था। उसका उपशीर्षक मुझे याद रह गया था ‘एनीथिंग बट एम्पटी’। “विरानी या खालीपन के अलावा सबकुछ”। 10 जनवरी 2006 की दोपहर इस उक्ति की सच्चाई का एहसास भला लगा। देखने को बहुत कुछ बाकी था समय की सीमा थी। खास चीज जो नहीं मिली – इस मरुस्थल के इंसानी बाशिंदे। किसी भी पारिस्थितिकी को मानव जाति परिपूर्णता प्रदान करती है। लेकिन तभी तक जब तक मनुष्य उस जगत का दास या मित्र बन कर रहे ना कि स्वामी बनकर। ऐसी प्रजातियां आज भी एरीजोना में हैं। हालांकि उनका भी आधुनिकीकरण हो चुका है।
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