Politico web : कमलनाथ का कद व पद तय करेंगे उपचुनाव के परिणाम

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Politico web : कमलनाथ का कद व पद तय करेंगे उपचुनाव के परिणाम

सत्ता के इतने पास फिर भी कितने दूर यानी कमलनाथ-

राजनीति में यदि कोई व्यक्ति अकूत धन संपदा का मालिक होने और पांच दशक तक निरंतर भारतीय राजनीतिक सत्ता के केंद्र बिंदु रहे नेहरू-गांधी परिवार के सबसे नजदीक रहने के बावजूद खुद कभी केंद्र बिंदु न बन सके उसे कमलनाथ कहते हैं। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर 15 महीने के कार्यकाल को अलग रखा जाए तो कमलनाथ दिल्ली में हमेशा (आपातकाल हो या 1984 के दंगे) सत्ता के नवग्रह तो रहे लेकिन मुख्य ग्रह कभी नहीं बन सके।

वर्षों से मन में पल रही मुखिया वाले सत्ता सुख का योग उस समय बना जब दिसंबर 2018 में बिल्ली के भाग्य से छींका टूट गया और कमलनाथ को पहली बार मप्र सरकार के प्रशासनिक मुखिया की भूमिका निभाने का मौका मिला। इस पद के लिए सिंधिया की दावेदारी को दरकिनार कर सोनिया व राहुल गांधी ने कमलनाथ का साथ दे दिया था।

कांग्रेस के इसी फैसले के चलते यहां भी दुर्भाग्य यह रहा कि 15 माह के सत्ता सुख के उपरांत उनके साथी ज्योतिरादित्य सिंधिया ने ऐसा पांसा फेंका कि कमलनाथ को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर मिली सत्ता बालू की तरह हाथ से फिसल गई और वे एक मजबूर व्यक्ति की तरह कभी खुद को तो कभी जाती हुई सत्ता को अपलक निहारते रह गए।

अब एक बार फिर मौका आया है कि मध्यप्रदेश में हो चुके 3 विधानसभा सीटों जोबट, रैगांव और पृथ्वीपुर व खंडवा लोकसभा उपचुनावों के आज आने वाले परिणाम तय करेंगे कि कमलनाथ का प्रदेश में क्या कद रहता है। संभावना है कि यदि इस उपचुनावों में कांग्रेस के अनुकूल परिणाम न आए तो उनके कद व पद में कटौती कर दी जाए यानी पुन: मूषको भव:।

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इंदिरा के तीसरे बेटे

इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) उन्हें अपने तीसरे बेटे के रूप में मानती थीं। इसीलिए आज भी कांग्रेस पार्टी में उनका दबदबा कायम है। बताते हैं कि 13 दिसंबर 1980 को इंदिरा गांधी छिंदवाड़ा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रहे कमलनाथ के चुनाव प्रचार में पहुंचीं थीं।

तब इंदिरा ने चुनावी मंच पर ही बैठे एक युवा उद्यमी की तरफ इशारा करते हुए कहा था, ‘ये सिर्फ कांग्रेस नेता नहीं हैं, राजीव और संजय के बाद मेरे तीसरे बेटे हैं।’ कमलनाथ सच में इंदिरा के तीसरे बेटे की तरह थे। संजय गांधी के बेहद करीबी रहे कमलनाथ उनके लिए जेल भी जा चुके हैं। कमलनाथ और संजय गांधी हॉस्टलमेट थे।

साल 1979 में कमलनाथ ने मोरारजी देसाई (Morarji Desai) की सरकार से मुकाबला करने में कांग्रेस की मदद की थी। कमलनाथ कांग्रेस के उन नेताओं में से एक हैं जो गांधी परिवार की तीन पीढ़ियों के साथ काम कर चुके हैं।

कमलनाथ को तीसरा बेटा इंदिरा गांधी ने यूं ही नहीं कह दिया था। कमलनाथ उसी छिंदवाड़ा से पहली बार सांसद बने, तबसे लगातर 2018 में नौवीं बार छिंदवाड़ा से ही सांसद बनते रहे और ताउम्र इंदिरा गांधी को वे ‘मां’ ही कहते रहे। इंदिरा के बाद संजय गांधी और राजीव गांधी के करीबी रहे। उसके बाद सोनिया गांधी के विश्वासपात्र बने रहे, कृपा पात्र नहीं।

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गांधी परिवार से नजदीकी

कमलनाथ तब दून कॉलेज में पढ़ते थे जब उनकी दोस्ती संजय गांधी से हुई थी। राजनीति में आने से पहले उन्होंने सेंट जेवियर कॉलेज कोलकाता से स्नातक किया। संजय गांधी उन्हें राजनीति में लेकर आए। दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में उनकी दोस्ती खूब जमी।

कभी वे गांधी परिवार की कार चलाते दिखते तो कहीं किसी सभा में संजय गांधी के साथ दिखते। आपातकाल में तो वे गांधी परिवार के साये के रूप में हर जगह देखे जा सकते थे। यहां तक कि नारे भी लगे, ‘इंदिरा के दो हाथ, संजय गांधी और कमलनाथ’

वफादारी निभाने जेल तक गए

संजय गांधी से कमलनाथ की दोस्ती इतनी गहरी थी कि एक बार वे संजय गांधी के लिए जानबूझकर जेल चले गए। 1979 में जनता पार्टी की सरकार के दौरान संजय गांधी को एक मामले में कोर्ट ने तिहाड़ जेल भेज दिया। तब इंदिरा संजय की सुरक्षा को लेकर काफी चिंतित थीं। कहा जाता है कि तब कमलनाथ जानबूझकर एक जज से लड़े। जज ने उन्हें भी अवमानना के चलते सात दिन के लिए तिहाड़ भेज दिया, जहां वे संजय गांधी के साथ साए की तरह रहे।

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13 तारीख इनके लिये शुभ

इंदिरा गांधी ने 13 दिसंबर 1980 को उन्हें अपने तीसरे बेटे के रूप में मान्यता प्रदान की थी। 38 साल बाद उसी तारीख को यानी वही 13 दिसंबर को उनका मप्र का मुख्यमंत्री बनना तय हुआ था।तब राहुल गांधी के हाथ में हाथ डालकर कमलनाथ ने भावुक होकर कहा था कि आज ही की तारीख के दिन इंदिरा गांधी ने मुझे अपना बेटा कहा था। और उसी तारीख पर उनके पौत्र राहुल गांधी ने मुख्यमंत्री के रूप में मेरे नाम पर मुहर लगायी है।

1993 में भी सीएम बनते बनते रह गए थे

1993 में भी कमलनाथ के मुख्यमंत्री बनने की चर्चा जोरों पर थी। लेकिन कांग्रेस के दिग्गज अर्जुन सिंह ने दिग्विजय सिंह का नाम आगे कर दिया था और कमलनाथ मुख्यमंत्री नहीं बन पाए थे। 1996 में कमलनाथ पर हवाला कांड के आरोप भी लगे थे। उस वक्त पार्टी ने उनको टिकट न देकर उनकी पत्नी को टिकट दिया था। वे चुनाव जीत तो गईं लेकिन अगले साल उन्होंने इस्तीफा दे दिया। इसके बाद 1997 के उपचुनाव में कमलनाथ फिर चुनाव लड़े लेकिन सुंदरलाल पटवा ने उन्हें पटखनी दे दी थी। यही एकमात्र चुनाव था जो कमलनाथ हारे थे और जिसकी टीस आज भी उनके दिल में एक फांस की तरह चुभी हुई है।

नौ बार के सांसद

18 नवंबर 1946 को कानपुर में जन्में कमलनाथ ने स्कूली शिक्षा देहरादून स्कूल से की। इसके बाद सेंट जेवियर कॉलेज कोलकाता से उन्होंने कॉमर्स में ग्रेजुएशन किया। वे 1979 में पहली बार छिंदवाड़ा से सांसद चुने गए। इसके बाद 1984, 1990, 1991, 1998, 1999, 2004, 2009 और 2014 में वे लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए। मप्र के सीएम बनने के बाद जून 2019 में हुए उपचुनाव में वे छिंदवाड़ा से विधायक चुने गए थे।दीपक सक्सेना ने उनके लिए छिंदवाड़ा सीट छोड़ी थी।

संगठन में भी सक्रिय रहे

1968 में युवक कांग्रेस में प्रवेश के बाद कांग्रेस संगठन में भी कई पदों पर रहे। 1970 से 1981 तक अखिल भारतीय युवा कांग्रेस की राष्ट्रीय परिषद के सदस्य रहे। 1979 में युवक कांग्रेस की ओर से महाराष्ट्र के पर्यवेक्षक, 2000 से 2018 तक अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव और वर्तमान में मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष हैं।राहुल व सोनिया गांधी के बाद पार्टी अध्य़क्ष के तौर पर उन्हीं का नाम सबसे ऊपर चल रहा था। यह तभी संभव होगा जब कोई गांधी परिवार के बाहर का व्यक्ति इस पद पर आए, जिसकी संभावना काफी कम दिखती है।

केंद्र में कई बार मंत्री भी रहे

कमलनाथ पहली बार 1991 में केंद्र में मंत्री बने। 1991 से 1994 तक केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री रहे। 1995 से 1996 केंद्रीय कपड़ा मंत्री, 2004 से 2008 तक केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री, 2009 से 2011 तक केंद्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्री, 2012 से शहरी विकास मंत्री और 2014 तक संसदीय कार्य मंत्री रहे।

अकूत संपदा के मालिक

2014 में आमचुनाव के दौरान कमलनाथ ने जो हलफनामा चुनाव आयोग को दिया था उसके मुताबिक उनके पास लगभग 207 करोड़ रुपए की चल-अचल संपत्ति है। कमलनाथ और उनके परिवार के स्वामित्व में 23 कंपनियां भी हैं। चुनावी प्रबंधन में माहिर कमलनाथ एक सफल उद्यमी भी हैं। देश के बड़े-बड़े उद्योग घरानों से उनके नजदीकी संबंध हैं। कमलनाथ देश के पांच सबसे अमीर सांसदों में शामिल हैं। हालांकि उनका सारा कारोबार दोनों बेटे बकुलनाथ और नकुलनाथ संभालते हैं।

केंद्र सरकार में निभाईं अहम जिम्मेदारियां

कमलनाथ 1991 से 1994 तक केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री, 1995 से 1996 केंद्रीय कपड़ा मंत्री, 2004 से 2008 तक केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री, 2009 से 2011 तक केंद्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्री, 2012 से 2014 तक शहरी विकास एवं संसदीय कार्य मंत्री रहे। उन्होंने भारत की शताब्दी एवं व्यापार, निवेश, उद्योग नामक पुस्तक भी लिखी है।

कांग्रेस के संगठन में निभाए खास दायित्व

1968 में वे युवक कांग्रेस में शामिल हुए। 1976 में उत्तर प्रदेश युवक कांग्रेस का उन्हें प्रभार मिला। 1970 – 81 तक वे अखिल भारतीय युवा कांग्रेस की राष्ट्रीय परिषद के सदस्य रहे। 1979 में युवा कांग्रेस की ओर से महाराष्ट्र के पर्यवेक्षक, 2000 से 2018 तक वे अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव और वर्तमान मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष हैं। 2006 में रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर ने उन्हें डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया।

विदेश यात्राएं

सन 1982 से 2018 तक 600 से अधिक विदेशी यात्राएं की. संसार के अधिकांश देशों में संयुक्त राष्ट्र संघ की साधारण सभा से लेकर अंतरराष्ट्रीय संसदीय सम्मेलनों में सम्मिलित हुए।

विवादों से पुराना नाता

पचास सालों के राजनीतिक करियर के बावजूद उनका करियर विवादों से हमेशा घिरा रहा। 1984 के सिख दंगों और आपातकाल में भूमिका का ‘भूत’ उनके साथ हमेशा जुड़ा रहेगा। भले ही सिख नरसंहार के लिए वे वैधानिक तौर पर दोषी न पाए गए हों पर लोगों ने उन्हें मानसिक तौर पर दोषी मान रखा है।

पंजाब में जनरैल सिंह भिंडरावाले को खड़ा करने में कमलनाथ ने जो भूमिका निभाई थी, वो भा यदाकदा चर्चा में आती रहती है।

इस किस्से का ज़िक्र मशहूर पत्रकार कुलदीप नैयर ने अपनी आत्मकथा ‘बियॉंड द लाइन्स’ में भी किया है।
लेखक और जाने-माने पत्रकार मनोज मित्ता के अनुसार, “1984 के दंगों में उनकी भूमिका वैसी नहीं जैसी जगदीश टाइटलर या सज्जन कुमार की थी। लेकिन कई मामलों में वो इससे भी बड़ी इन मायनों में थी क्योंकि उनकी मौजूदगी लुट्यन्स दिल्ली यानी उस इलाक़े में दर्ज की गई थी जो संसद से बिल्कुल क़रीब है।”

वकील एचएस फूलका के साथ मिलकर लिखी गई इस पुस्तक में कहा गया है कि गुरुद्वारा रक़ाब गंज की घेराबंदी तक़रीबन पांच घंटों तक जारी रही और कमलनाथ घटनास्थल पर दो घंटे से अधिक वक़्त तक मौजूद थे। कमलनाथ ख़ुद वहां अपनी मौजूदगी से इनकार नहीं करते हैं लेकिन वो कहते रहे हैं कि वो वहां पार्टी के कहने पर गए थे ताकि भीड़ को गुरुद्वारा पर हमला करने से रोक सकें।

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वे कहते हैं कि “इस मामले में एसआईटी ने जांच की, रंगनाथ और नानावती जांच आयोग बने जिन्होंने मुझे आरोप मुक्त किया लेकिन मैं सीबीआई या किसी भी दूसरे तरह की जांच के लिए तैयार हूं,”

एक नवंबर, 1984 के गुरुद्वारा रक़ाबगंज पर हमले और कमलनाथ की भूमिका पर नानवती कमीशन ने कहा, “सबूतों के अभाव में जांच आयोग के लिए ये मुमकिन नहीं कि वो कह पाए कि उन्होंने किसी भी तरह भीड़ को भड़काया था या वो गुरुद्वारा पर हुए हमले में शामिल थे।”

वे अक्सर अपने ही बयानों में उलझ जाते हैं चाहे कोरोना के इंडियन वैरिएंट वाला बयान हो या हनाट्रैप कांड की सीडी होने का दावा करना व मुकरने का मामला हो। 75 साल की आयु के कारण स्वास्थगत मसले भी अक्सर उनके मूवमेंट को बाधित कर देते हैं। वैसे कमलनाथ ने सरकार व पार्टी में शीर्ष पद के अलावा सब कुछ पा लिया है। अब खुद उन्होंने भी स्वीकार कर लिया है कि गांधी परिवार के रहते ऐसी कोई खुशफहमी पालने का कोई औचित्य नहीं बनता है।