Controversy on central vista: नया संसद भवन: तुम करो तो पाप, हम करें तो पुण्य

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Controversy on central vista: नया संसद भवन: तुम करो तो पाप, हम करें तो पुण्य

जिस कांग्रेस ने कभी किसी आदिवासी को राष्ट्रपति तो ठीक मुख्यमंत्री तक नहीं बनाया। जिस कांग्रेस ने अपने करीब साठ साला कार्यकाल में देश भर में अनेक स्मारकों का शिलान्यास, उद्घाटन प्रधानमंत्री या कांग्रेस अध्यक्ष रहते एक ही परिवार के लोगों ने किया। जिसने देश के 60 साल के इतिहास में 6 दर्जन से अधिक राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों, भवनों को नेहरू, गांधी (इंदिरा-राजीव) के नाम कर दिया। जिसने भारतीय जनता पार्टी द्वारा राष्ट्रपति पद के लिये प्रत्याशी बनाये गये आदिवासी (द्रोपदी मुर्मु) का विरोध करते हुए संयुक्त विपक्ष की ओर से सवर्ण प्रत्याशी (यशवंत सिन्हा) खड़ा किया। जिसने 2017 के राष्ट्रपति चुनाव में राजग के दलित प्रत्याशी रामनाथ कोविंद के खिलाफ भी प्रत्याशी उतारा। हद तो यह है कि जिस कांग्रेस पार्टी ने दलितों के पूज्य संविधान निर्माता डॉ.भीमराव अंबेडकर को लोकसभा का सदस्य तक नहीं बनने दिया, वह कांग्रेस नये संसद भवन का उद्घाटन आदिवासी राष्ट्रपति से न कराये जाने का विलाप तो ऐसे कर रही है, जैसे देश में ऐसा कुछ अनर्थ हो रहा है, जिसे रोका नहीं गया तो देश का अस्तित्व ही संकट में पड़ जायेगा।

यदि मध्यप्रदेश के संदर्भ में ही बात करें तो 1980 के विधानसभा चुनाव में बहुमत पाने के बाद आदिवासी नेता शिवभानु सोलंकी के पक्ष में कांग्रेसी विधायकों का बहुमत होने के बावजूद अर्जुन सिंह को मुख्यमंत्री बना दिया गया। इसी तरह से 1998 से 2003 तक लगातार आदिवासी नेता जमुना देवी की भी उपेक्षा की जाती रही। फिर भी कांग्रेस आदिवासी प्रेम का ढोंग करती रहे तो किसे फर्क पड़ता है?

 

केंद्रीय सत्ता से बाहर हुए नौ साल बीत जाने के बाद भी कांग्रेस अभी तक इस सच को स्वीकार ही नहीं कर पा रही है कि यह देश कांग्रेस की तिजोरी में पोटली में बांधकर रखा हुआ लोकतांत्रिक मुल्क नहीं, बल्कि जनपथ पर सरपट दौड़ता स्वस्थ, संपन्न संप्रभु राष्ट्र है। कांग्रेस और कुछ विपक्षी दलों ने संसद के नये भवन के उद्घाटन समारोह के बहिष्कार का निर्णय लिया है, जो उनका लोकतांत्रिक अधिकार है। वे ऐसा हर कदम उठाने को स्वतंत्र है, जो जनता के बीच गहराई से संदेश दे कि उनका एकमात्र ध्येय भाजपा सरकार और खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ मोर्चा लेना है। लोकतंत्र में जिम्मेदार विपक्ष की भूमिका निभाने से उसे सख्त परहेज है और विरोध करना उसके लिये हाजमोला,गटागट या ईसबगोल लेने जैसा है। वैसे,वाकई कांग्रेस का लोकतांत्रिक हाजमा बुरी तरह बिगड़ चुका है।

कांग्रेस सहित विपक्षी दलों के इस आयोजन से दूर रहने के शोर-शराबे के बीच ऐसे अनेक प्रसंग निकलकर सामने आ रहे हैं, जब इन दलों ने अपने प्रभाव वाले राज्यों में शासकीय निर्माण कार्यों का शिलान्यास, उद्घाटन करने के लिये राज्यपाल, प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति को नहीं बुलाया, बल्कि पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी को बुलाया, जो केवल सांसद थे या उन राज्यों के मुख्यमंत्री ने ही रस्म पूरी कर ली। जब वे कुछ गलत नहीं कर रहे थे, तब भाजपा सरकार या प्रधानमंत्री कैसे गलत कर रहे हैं? कौन-सी परंपरा तोड़ दी या राष्ट्रपति का अपमान कर दिया?

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विपक्षी विलाप के बीच असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने एक ट्वीट कर कुछ तथ्य सामने रखे हैं। उन्होंने बताया है कि 2014 में झारखंड और असम में नये विधानसभा भवन के शिलान्यास कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों ने किये थे। 2018 में आंध्र के विधानसभा भवन का शिलान्यास वहां के मुख्यमंत्री ने किया था। 2020 में छत्तीसगढ़ विधानसभा भवन का शिलान्यास सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने किया था। 2023 में ही तेलंगाना विधानसभा भवन का शिलान्यास वहां के मुख्यमंत्री ने किया। इनमें से किसी भी आयोजन में उन राज्यों के राज्यपालों को नहीं बुलाया गया या उनसे शिलान्यास नहीं कराया गया।

ऐसे में स्वाभाविक सवाल तो यह है कि जब आप किसी परंपरा या शिष्टाचार का पालन नहीं करते। आप तो किसी संवैधानिक हैसियत के बिना भी शिलान्यास,उद्घाटन कर सकते हैं, तब देश का प्रधानमंत्री संसद भवन का उद्घाटन करे तो आपत्तिजनक क्या है और क्यों है? दरअसल, 2024 के लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है और विपक्ष के पास केंद्र की भाजपा सरकार के खिलाफ अभियान चलाने के लिये ठोस मुद्दे ही नहीं हैं तो वह हमेशा की तरह नरेंद्र मोदी पर व्यक्तिगत हमले जारी रखना चाहता है। वह नरेंद् मोदी जो हाल ही में विश्व मंच पर वाहवाही लूट रहे थे,देश का मान बढ़ा रहे थे,उससे विपक्ष के पेट में मरोड़े मचल रही थी। देश के लिये जब-जब भी गौरव के क्षण आते हैं, तब-तब विपक्ष इसी तरह से अनर्गल बयानबाजी, धरने, प्रदर्शन कर देश में तो कटुतापूर्ण माहौल खड़ा करता ही है, इस तरह से वह विश्व समुदाय को भी संदेश देने का विफल प्रयास करता है कि नरेंद्र मोदी को आप कितना ही मान-सम्मान देते रहो, देश में हम उसे कुछ नहीं समझते।

विपक्ष यह भूल रहा है कि सरकारों के विरोध का लोकतांत्रिक अधिकार सुरक्षित रखते हुए वह देश की बेहतरी,उन्नति और गौरव से जुड़े मसलों पर सरकार और सत्ताधारी दल के साथ कदम मिलाकर दुनिया को यह जता सकता है कि हमारी लड़ाई हम आपस में लड़ लेंगे, लेकिन विश्व मंच पर हम साथ-साथ हैं। दुर्भाग्य से कांग्रेस समेत समूचा विपक्ष इस बड़प्पन भरे आचरण के आसपास भी नहीं पहुंच पाया। इस मुद्दे को चुनावी अभियान का हिस्सा भी वे बना सकते थे, लेकिन समारोह में उपस्थित होकर। वे भी संसदीय लोकतंत्र का महत्वपूर्ण अंग हैं और सम्मानपूर्वक इस अवसर के साक्षी बनकर ब्रिटिश सरकार की निशानी संसद भवन से मुक्ति पाकर स्वनिर्मित संसद भवन में शान और उल्लास से प्रवेश कर स्वर्णिम क्षण को महसूस करते तो देश में उनके प्रति कुछ समर्थन ही बढ़ता। वे एक और उम्दा अवसर चूक गये।