Hydraulic Vehicle: पांच करोड़ का लाय बम्बा खिलौने जैसा निकला हो दीदी खड़ा रहा वहां हाथी सरीका

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    Hydraulic Vehicle: पांच करोड़ का लाय बम्बा खिलौने जैसा निकला हो दीदी खड़ा रहा वहां हाथी सरीका

                       शालू के प्रश्न और देश का चिंतन, मैं तो परेशान हो गयी जवाब देते देते 

हो बई, इससे तो अपनी बाल्टी, लोटा, मग्गा, तामलोट ही अच्छा रेता हैगा. झोपड़ी की आग बुझा देता है, कद्दी लग जाय तो पांच करोड़ का लाय बम्बा खिलौने जैसा निकला हो दीदी. खड़ा रहा वहां हाथी सरीका. हो हिला बीनी हो? आज सुबह से ही उसके दिमाग से शहर का विनाशक अग्निकांड भूत की तरह दिमाग में डेरा डाले हुए है. हो भी क्यों नहीं, उसका पति पहले वहीं डेली वेजेस पर काम करता था फिर एक सरकार आई थी तो डेली वेजेस बंद हो गए थे. अभी उसकी  पड़ोसन का पति चौकीदार है उधर ही किधर. रोज ही वह मेरा सामान्य ज्ञान बढ़ाने के लिए कोई मुद्दा सोच कर आती है. अभी दो दिन पहले लड़की बोरिंग में गिरी. अब इसका क्या लेना देना, पर नहीं, आते ही शुरू हो गयी थी.

“दीदी सरकार ढक्कन का नियम नहीं बना सकती है क्या, देखो ना छोरी गिर गयी बापड़े की. फिर “छोरी मिल गयी दीदी पर वो — मर गयी, आज मन नहीं है काम का कल कर दूंगी”. वो चली गयी कुछ इधर कुछ उधर हाथ घुमा कर, हो गयी सफाई. हाँ मेरे दिमाग के जाले जरुर झाड़ देती है इन बातों से. आज उसका लाय बम्बा पुराण चालू था.

आते ही कहा “दीदी पांच करोड़ का लाय बम्बा लिया था सरकार ने, और मेरी पड़ोसन का आदमी वहींज काम करता है, के रहा था “हो कई काम नी आये कमरे में लगे तिकोने लाल आग बुझाने वाले डिब्बे. आग वाली बिल्डिंग में तो वो डिब्बे कजाने कब से लटके हेंगे दीवार पर, पर पढ़े-लिखे लोग भाग खड़े हुए हो, रोज रोज जिस डिब्बे के आमने सामने से निकलते और कमरों में बैठते देखते और कजाने कित्ते भरवाई के बिल सरकार में हर साल जमा होते हैं वो लाल-लाल डिब्बे खोल देते तो भी थोड़ी कम हो जाती आग, है किनी दीदी?’

‘बात तो तूने पते की की है शालू. पर डिब्बे खोलने के पहले सरकार के दफ्तरों में बड़े लम्बे काम होते हैं, पहले नोटशीट लिखनी पड़ती है. फिर वो टेबल-टेबल पर आराम-आराम से जाती है फिर उसमें संशोधन के लिए लिखना पड़ता है फिर आराम-आराम से वापस आती है, फिर सलाह मशवरे से संशोधन करने के बाद वो फिर चलती है टेबल-टेबल, आराम-आराम से तब साहब लोगों की टेबल पर शोभा बढ़ाती है, फिर वापसी का टिकट मिलने पर उसी गति से वापस आती है, अब डिब्बा लाल हो कि पीला साहब के गुस्से से लाल-पीले मुंह के आगे फीका ही रहता होगा. कौन जवाब देगा, जब कारण बताओ का नोटिस मिलेगा? तेरे को नी पता अरे बुखार आने की छुट्टी लेने पर तो कितने लफड़े करते हैं साहब लोग? मेडिकल बोर्ड से लिखवा कर लाओ. जांच के एक्से, ब्लड की रिपोर्ट, टट्टी-पिशाब तक की रिपोर्ट मांग ली थी एक साहब ने तो.”

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हें दीदी, ऐसा भी होता है सरकारी नौकरी में?

मैंने उसे चाय का प्याला पकड़ा दिया, चुप रहेगी पर चाय गरम थी अभी-अभी उबाली हुई. और उधर अभी 18 घंटे बाद भी आग ठंडी नहीं हुई थी लपटें थी कि फिर उठ रही थीं, और शालू का दिमाग विपक्ष हो रहा था, सवाल थे कि सुलगते जा रहे थे. आग कभी ना कभी तो बुझ ही जाएगी, सेना पानी छिड़कने आने ही वाली है. पर सवालों को कौन बुझाए जो जिज्ञासाएं लिए हुए हैं. शालू दुखी हो रही थी “हो दीदी मेरा आदमी यूँ ही जल्दी हटा दिया था उस सरकार ने अभी होता उधर तो आराम से छ: महीने कोई काम नी करना पड़ता. आराम से घर बैठकर तनखा लेता. “ही ही ही –छुट्टी घोषित कर दी  सबकी. अब इत्ते लोग बैठेंगे किधर? और करेंगे क्या? न फाइलें बची न कंप्यूटर?

“अच्छा ही हुआ शालू सबके सब कागज जल गए होंगे अब बिचारे शर्मा जी और वर्माजी की पेंशन फाइल जल गयी है तो पेंशन कैसे होगी उनकी ये तो सोच?”  तेरे पति को भी उस जले मलबे में से कागज़ पन्ने बटोरने पड़ते उधर ही रेता तो. दमे का मरीज है बिचारा धुएँ के कमरे हो गए होंगे सब.

“पर दीदी बिल्डिंग इत्ती बड़ी है और कभी कोई बेवड़ा चौकीदार कहीं कौने कौसरे में पड़ा रे जाता तो?”

“अब छोड़ शालू तेरे ‘तो’ के क्या जवाब दूँ”

“दीदी! पर हाथी के दांत सरीके यंत्र करोड़ों रुपे के खिलौने जैसे, सरकार खरीदती क्यों है? कागज़ पे खेलती हैगी क्या?’

कौन से खिलौने, वो कोई खिलौने वाला विभाग थोड़ी है पगली.

‘वो दीदी जो लाय बम्बा लिया ना.’

लाय बम्बा?

“अरे दीदी हमारे गाँव में आग बुझाने वाली बम्बा गाड़ी को लाय बम्बा बोलते हैं. क्या बोलते हो आप फायर बिग्रेड. टीवी वाले बता रहे थे पांच करोड़ की गाड़ी ऐसी चमाचम लाल चमक री थी वहां खड़ी-खड़ी कि नजर लग जाय. खूब सुन्दर गाड़ी है.

बोल रिया था टीवी वाला जब आई थी ना ये “हंस वाहिनी” {शालू ने नामकरण कर दिया} जब गाड़ी खरीदी थी ना उस दिन आयी थी दिनभर, हो मैंने भी ये सब बंगलों में सुनी थी खबर, अब टीवी तो आप लोगों के घर में चलता रेता हैना, तो सूनी फिर शाम को घर जाके “राजधानी में अब 18 मंजिल या 170 फीट की ऊंचाई पर लगने वाली आग पर आसानी से काबू पाया जा सकेगा क्योंकि अब शहर के फायर ब्रिगेड के बेड़े में एक आधुनिक फायर ब्रिगेड वाहन को शामिल कर लिया गया है। इसकी कीमत 5 करोड़ रुपए बताई जा रही है। यह प्रदेश में दूसरा सबसे बड़ा फायर ब्रिगेड वाहन है, इससे पहले दिल्ली के पास वाले बड़े शहर में  फायर ब्रिगेड के बेड़े में यह वाहन शामिल किया गया था।’

पप्पू के पापा तो ऐसे इतराने लगे थे देख के पूछो ही मत तुम तो? हो मैंने बोला भी कि खुश कांय के लिए हो रिये हो?तुमारी झोपड़ी में आग लगेगी तो इत्ती बड़ी मशीन को निकालने लाने और उसका ड्राइवर आने तक तो सब स्वाहा हो जाएगा, तुम अपनी बाल्टी, रस्सी और लौटे, तामलोट सब खाट के नीचे रखे रेन देना वोइच काम आयेंगे, ये महलों वाली गाड़ी कौन बुलाएगा?”

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मैं दुखी थी सुबह से ही आग तो आग है किसको छोड़ती है. क्या घर, क्या दफ्तर? क्या अमीर,क्या गरीब? पर शालू का फायर ब्रिगेड ज्ञान सुन कर हंसी आ गयी थी.

उसको बुरा लगा मेरा हँसना, “आप हंस क्यों रे हो दीदी? गलत बोल री थी क्या मैं? देखा नी आपने कैसे हाथी सरीका खड़ा था वो बम्बा? और आपको पता है दीदी जब टीवी वाले ने ड्राइवर से पूछा कि इसको चलाया काहे नहीं? तो क्या बोलता है वो?”

क्या?

वो बोला पेली बात इसका वो क्या बोलते हैं उसको —-वो जो चलाता है मशीन?

“ओपरेटर?”

हो, वो कोई हे ही नी तो जब तक पद नहीं निकलेंगे भरती के तो दूसरा कैसे चलाएगा? और दूसरी बात जो उसने बतायी कि बिल्डिंग पुरानी है ये गाड़ी नई? अब नई गाड़ी के लायक रास्ता नी था वहां घुसने का, कैसे ले जाता वो?

हें!

हाँ, दरवाजे बगीचे के न केम्पस के छ:-छ: हेंगे पर छोटे निकले सब के सब?

ओह! वो ई तो, उसकी क्या गलती है इसमें?

पर दीदी तोड़ देते इत्ते लोग मिलके कौन अम्बुजा सीमेंट से बनी थी खम्बे की दीवार?

पर दीदी सोचने वाली बात ये है कि या तो बिल्डिंग पेले नई बनवा लेते फिर आग बुझाने की गाड़ी खरीदते या पुरानी गाड़ी  रिपेयर करावा लेते. फिर आग लगती तो कुछ बच सकता था, कित्ते मेंगे मेंगे टीवी, कंप्यूटर, सोफे, अलमारी, केबिन, कूलर लगे होंगे दीदी, कोई गरीब ले जाता तो चोरी का केस चलता हेगा उस पर?

मेरा सर दर्द कर रहा था गर्मी के मारे रात भर पतिदेव को AC नहीं चलाने दिया था, क्या पता किस कंपनी के AC में ब्लास्ट हुआ हो. पहले नक्की हो जाए वो LG के थे, या वोल्टाज के, गोदरेज के भगवान जाने कौन सी कंपनी के लगे थे 30 AC में ब्लास्ट. क्या दृश्य रहा होगा, जिसने भी देखा होगा, कई रात उसे सपने में भी बस आग ही आग दिखेगी.

हो दीदी मैं जा री हूँ कल नहीं आऊँगी. हमारी बस्ती की सब मिल कर जली बिल्डिंग देखने जाने वाली हैं, कैसा शमशान सा दिखता होगा वहां? फिर उधर ही कुछ चाट पकौड़े खाने का सोच रिये हैं हम. जय राम जी की. मन भोत बुरा बुरा हो रहा है, जाके देखती हूँ.