आग के बहाने ही सही हम सतपुड़ा को याद रखें …

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आग के बहाने ही सही हम सतपुड़ा को याद रखें …

सतपुड़ा भवन की आग ने पूरे मध्यप्रदेश में कोहराम मचा दिया है। आग इतनी प्रचंड थी कि बुझाने में पसीने छूट गए। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लगातार सतपुड़ा भवन में लगी आग बुझाने की मॉनिटरिंग करते रहे। आग बुझाने की समुचित और शीघ्र व्यवस्थाएं करने के निर्देश दिए। मुख्यमंत्री के निर्देश पर प्रशासन ने नगर निगम के साथ आर्मी, आईओसीएल, बीपीसीएल, एयरपोर्ट, सीआईएसएफ, भेल, मंडीदीप और रायसेन से फायर ब्रिगेड कॉल कर आग बुझाई गई। मुख्यमंत्री चौहान ने आग के प्रारंभिक कारणों को जानने के लिए कमेटी घोषित की। एसीएस होम राजेश राजौरा,पीएस अर्बन नीरज मंडलोई,पीएस पीडब्ल्यूडी सुखबीर सिंह और एडीजी फायर इस कमेटी के सदस्य रहेंगे। कमेटी, जांच के प्रारंभिक कारणों का पता कर रिपोर्ट मुख्यमंत्री चौहान को सौंपेंगी।मुख्यमंत्री ने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से बात की। रक्षा मंत्री से बात कर आग बुझाने के लिए एयरफोर्स की मदद मांगी।मुख्यमंत्री चौहान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से फोन पर चर्चा कर सतपुड़ा में दुर्भाग्यपूर्ण आगजनी की घटना की जानकारी दी। मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री को आग बुझाने के प्रदेश सरकार के प्रयासों और केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों (आर्मी, एयरफोर्स,भेल, सीआईएएसएफ, एयरपोर्ट एवम अन्य)से मिली मदद से भी अवगत कराया। प्रधानमंत्री ने मुख्यमंत्री को केंद्र से हर संभव मदद का आश्वासन दिया। और आग बुझ भी गई, पर सवाल छोड़ गई।

दिनांक 12 जून 2023 को दोपहर 4:00 बजे के करीब संचालनालय सतपुड़ा भवन के तृतीय तल में संचालित आदिम जाति कल्याण विभाग के दफ्तर में संभवत एसी शॉर्ट सर्किट के कारण आग लगी जो कि कुछ ही देर में सतपुड़ा भवन में संचालित स्वास्थ्य विभाग के चतुर्थ, पंचम एवं षष्टम तल तक पहुंच गई। विभाग में स्थित समस्त अधिकारी कर्मचारियों को तत्काल कार्यवाही करते हुए ससमय सकुशल बाहर निकाल लिया गया जिस कारण कोई भी जनहानि नहीं हुई। उक्त आग के फैलाव से संचालनालय स्वास्थ्य सेवाएं की स्थापना शाखा, नर्सिंग शाखा, शिकायत शाखा, लेखा शाखा,आयोग शाखा एवं विधानसभा प्रश्न इत्यादि को नुकसान पहुंचा है। पर हॉस्पिटल प्रशासन शाखा जो कि सतपुड़ा के द्वितीय तल पर संचालित है उक्त अग्नि दुर्घटना से अप्रभावित रहा। दवाओं, अस्पताल के लिये उपकरण फर्नीचर ख़रीदी संबंधी फाइल दूसरे तल पर होने से आग से प्रभावित नहीं हैं। आग से हुए वास्तविक नुकसान का आंकलन, आग बुझने के पश्चात किया जाना संभव हो सकेगा।

खैर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सतपुड़ा बिल्डिंग में आग की घटना को लेकर रिव्यू बैठक बुलाई। बैठक में मुख्य सचिव , डीजीपी सहित मंत्री नरोत्तम मिश्रा, प्रभु राम चौधरी, विश्वास सारंग और अधिकारियों में राजेश राजौरा, मो. सुलेमान, नीरज मंडलोई सहित अन्य सबंधित अधिकारी शामिल हुए। आग के बाद राजनैतिक पारा उछाल पर रहा। नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह सहित कांग्रेस विधायकों ने आक्रोश जताया। समिति की रिपोर्ट आएगी और चर्चाएं चलती रहेंगीं। पर आओ हम इसी बहाने सतपुड़ा पर गौर करें और सतपुड़ा के जंगलों को अपनी स्मृति में सहेजें।

सतपुड़ा भवन का नाम जिस सतपुड़ा शब्द पर रखा गया, वह सतपुड़ा भारत के मध्य भाग में स्थित एक पर्वतमाला है। सतपुड़ा पर्वतश्रेणी नर्मदा एवं ताप्ती की दरार घाटियों के बीच राजपीपला पहाड़ी, महादेव पहाड़ी एवं मैकाल श्रेणी के रूप में पश्चिम से पूर्व की ओर विस्तृत है। पूर्व में इसका विस्तार छोटा नागपुर पठार तक है। यह पर्वत श्रेणी एक ब्लाक पर्वत है, जो मुख्यत: ग्रेनाइट एवं बेसाल्ट चट्टानों से निर्मित है। इस पर्वत श्रेणी की सर्वोच्च चोटी धूपगढ़ 1350 मीटर है, जो महादेव पर्वत पर स्थित है। सतपुड़ा रेंज के मैकाल पर्वत में स्थित अमरकंटक पठार से नर्मदा तथा सोन नदियों का उद्गम होता है।सतपुड़ा पर्वत की उत्पत्ति भ्रंसन क्रिया के फलस्वरूप हुई है। इसके उत्तर में नर्मदा भ्रंस आर दक्षिण में ताप्ती भ्रंस स्थित है। सतपुड़ा की सर्वोच्च चोटी धूपगढ़ महादेव पहाड़ी पर है। इसके पूर्व में मैकाल की पहाड़ी स्थित है जो सतपुड़ा का ही बढ़ा हुआ भाग है जिसकी सर्वोच्च चोटी अमरकंटक है, जो नर्मदा नदी का उद्गम स्थल है। सतपुड़ा क्षेत्र से कई महत्वपूर्ण नदियाँ उत्पन्न होती हैं, जैसे कि नर्मदा नदी, महानदी, ताप्ती नदी।

इस बहाने ही सही हम महान कवि भवानी प्रसाद मिश्र की “सतपुड़ा के घने जंगल” कविता पर एक नजर डाल लेते हैं।
सतपुड़ा के घने जंगल।
नींद मे डूबे हुए से
ऊँघते अनमने जंगल।
झाड़ ऊँचे और नीचे,
चुप खड़े हैं आँख मींचे,
घास चुप है, कास चुप है
मूक शाल, पलाश चुप है।
बन सके तो धँसो इनमें,
धँस न पाती हवा जिनमें,
सतपुड़ा के घने जंगल
ऊँघते अनमने जंगल।
सड़े पत्ते, गले पत्ते,
हरे पत्ते, जले पत्ते,
वन्य पथ को ढँक रहे-से
पंक-दल में पले पत्ते।
चलो इन पर चल सको तो,
दलो इनको दल सको तो,
ये घिनौने, घने जंगल
नींद में डूबे हुए से
ऊँघते अनमने जंगल।
अटपटी-उलझी लताऐं,
डालियों को खींच खाऐं,
पैर को पकड़ें अचानक,
प्राण को कस लें कंपाऐं।
सांप सी काली लताएँ
बला की पाली लताएँ
लताओं के बने जंगल
नींद मे डूबे हुए से
ऊँघते अनमने जंगल।
मकड़ियों के जाल मुँह पर,
और सर के बाल मुँह पर
मच्छरों के दंश वाले,
दाग काले-लाल मुँह पर,
वात- झन्झा वहन करते,
चलो इतना सहन करते,
कष्ट से ये सने जंगल,
नींद मे डूबे हुए से
ऊँघते अनमने जंगल|
अजगरों से भरे जंगल।
अगम, गति से परे जंगल
सात-सात पहाड़ वाले,
बड़े छोटे झाड़ वाले,
शेर वाले बाघ वाले,
गरज और दहाड़ वाले,
कम्प से कनकने जंगल,
नींद मे डूबे हुए से
ऊँघते अनमने जंगल।
इन वनों के खूब भीतर,
चार मुर्गे, चार तीतर
पाल कर निश्चिन्त बैठे,
विजनवन के बीच बैठे,
झोंपडी पर फूस डाले
गोंड तगड़े और काले।
जब कि होली पास आती,
सरसराती घास गाती,
और महुए से लपकती,
मत्त करती बास आती,
गूंज उठते ढोल इनके,
गीत इनके, बोल इनके
सतपुड़ा के घने जंगल
नींद मे डूबे हुए से
उँघते अनमने जंगल।
जागते अँगड़ाइयों में,
खोह-खड्डों खाइयों में,
घास पागल, कास पागल,
शाल और पलाश पागल,
लता पागल, वात पागल,
डाल पागल, पात पागल
मत्त मुर्गे और तीतर,
इन वनों के खूब भीतर।
क्षितिज तक फ़ैला हुआ सा,
मृत्यु तक मैला हुआ सा,
क्षुब्ध, काली लहर वाला
मथित, उत्थित जहर वाला,
मेरु वाला, शेष वाला
शम्भु और सुरेश वाला
एक सागर जानते हो,
उसे कैसा मानते हो?
ठीक वैसे घने जंगल,
नींद मे डूबे हुए से
ऊँघते अनमने जंगल|
धँसो इनमें डर नहीं है,
मौत का यह घर नहीं है,
उतर कर बहते अनेकों,
कल-कथा कहते अनेकों,
नदी, निर्झर और नाले,
इन वनों ने गोद पाले।
लाख पंछी सौ हिरन-दल,
चाँद के कितने किरन दल,
झूमते बन-फूल, फलियाँ,
खिल रहीं अज्ञात कलियाँ,
हरित दूर्वा, रक्त किसलय,
पूत, पावन, पूर्ण रसमय
सतपुड़ा के घने जंगल,
लताओं के बने जंगल।
भवानीप्रसाद मिश्र की इस कविता में पूरा सतपुड़ा समाहित है। आज इसके नाम पर बने सतपुड़ा भवन में लगी आग ने सतपुड़ा को भी चर्चा में ला दिया है‌। तो आज सतपुड़ा नाम के कांक्रीट जंगल में आग लगी है, पर दु:ख यह है कि अब सतपुड़ा का जंगल भी वैसा नहीं रहा, जिसका वर्णन पंडित भवानी प्रसाद मिश्र ने किया था। बीसवीं सदी से इक्कीसवीं सदी में परिवर्तन हुए हैं। पर इन सबसे बड़ी बात यही है कि हम सतपुड़ा को याद रखें, क्योंकि सतपुड़ा के जंगल तो हैं आज भी…।