Kissa-A-IAS: संघर्ष से सफलता तक के सफर की अनथक दास्तां!
सफलता संघर्ष से ही मिलती है और ऐसी सफलता ही व्यक्ति को हमेशा आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है। जयपुर के शुभम गुप्ता के संघर्ष और सफलता की कहानी भी इससे अलग नहीं है। वे एक मिडिल क्लास परिवार से आते हैं। जिस तरह उनका बचपन बीता उसे मिडिल क्लास भी नहीं बल्कि लोअर मिडिल क्लास ही कहना ठीक होगा। लेकिन, प्रतिभा कभी अभाव की मोहताज नहीं होती। बचपन में ही शुभम का परिवार जयपुर छोड़कर महाराष्ट्र शिफ्ट हो गया। उन्होंने बताया कि उस वक्त आर्थिक स्थिति इतनी खराब थी कि उन्हें अपना शहर तक छोड़ना पड़ा। वहां उनके पिता को जूते की दुकान खोलनी पड़ी। शुभम बचपन से ही पिता के साथ उनकी जूतों दुकान पर बैठते थे। काम ऐसा था कि पिता को बड़े अफसरों से मिलना होता था। उसी दौरान पिता ने एक सपना देखा और उसे बेटे को बताया। पिता ने कहा कि कलेक्टर बन जाओ और बेटे ने अपने पिता की बात का दिमाग में बैठा लिया।
उनके गांव में हिंदी और अंग्रेजी मीडियम का कोई स्कूल नहीं था। ऐसे में 10वीं कक्षा की पढ़ाई मराठी भाषा में करना मुश्किल था। शुभम को मराठी समझ नहीं आती थी, इसलिए पिता ने शुभम और उनकी बहन का दाखिला गांव से दूर एक स्कूल में करवाया। स्कूल घर से 80 किमी की दूरी पर था इसलिए वे अपनी बहन के साथ सुबह 6 बजे की ट्रेन पकड़ते और स्कूल से 3 बजे घर आते थे।
पिता को लगा की एक दुकान से काम नहीं चलेगा इसलिए उनके पिता ने बेटे के स्कूल के पास भी अपनी जूते की दुकान खोली। उस पर शुभम ने बैठना शुरू कर दिया। वे दुकान पर काम करने के साथ -साथ पढ़ाई भी किया करता रहा। काम के साथ पढ़ाई करने के बावजूद भी शुभम ने सीजीपीए हासिल किया। अच्छे नंबर के कारण लोगों ने कहा कि तुम्हें विज्ञान विषय के साथ आगे बढ़ना चाहिए पर शुभम को वाणिज्य ज्यादा पसंद था इसलिए वे वाणिज्य के साथ गए।
बारहवीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद वे दिल्ली आ गए। दिल्ली से शुभम ने दिल्ली विश्वविद्यालय में बीकॉम में दाखिला लिया और वहीं से ही एमकॉम की भी पढ़ाई पूरी की। 2015 में वे यूपीएससी की तैयारी में लग गए। पहले प्रीलिम्स में वे सफल नहीं हो पाए। उन्होंने स्वीकार किया कि मैं अपनी असफलता का कारण अपनी लापरवाही और ठीक प्रकार से न बनाया गया टाइम टेबल को मानता हूं। इसके बाद शुभम ने अपने आपको अनुशासन में बांधा और तैयारी की।
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अपनी तैयारी में उन्होंने सरकार की पॉलिसी के हर पहलू को समझने के लिए हर छोटे-छोटे बिंदु को समझा। शुभम गुप्ता यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा में लगातार दो बार फेल हुए, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और अपनी मंजिल प्राप्त करने की ठान ली। पढाई की बेहतर रणनीति बनाई और कड़ी मेहनत कर तैयारी की। तीसरे प्रयास में उन्होंने यूपीएससी पास कर ली, लेकिन ऑल इंडिया रैंक 366 आई। इससे उन्हें आईएएस सेवा नहीं मिली। आखिरकार उन्होंने एक और प्रयास किया और 2018 में चौथे प्रयास में ऑल इंडिया रैंक 6 हासिल कर आईएएस बनने का सपना पूरा कर लिया। उन्हें महाराष्ट्र कैडर मिला है और शुभम फ़िलहाल गढ़चिरोली के भमारगढ़ में असिस्टेंट कलेक्टर के पद पर कार्यरत हैं।
शुभम का मानना है कि अगर आप यूपीएससी में सफलता प्राप्त करना चाहते हैं, तो सबसे पहले यूपीएससी के सिलेबस को अच्छी तरह अपने दिमाग में बैठा लें। उसी के अनुसार अपना स्टडी मैटेरियल तैयार करें और सही शेड्यूल बनाकर तैयारी करें। पढ़ाई के अलावा अपने आसपास की घटनाओं पर नजर रखें और करंट अफेयर्स को लेकर सजग रहें।