कलेक्टर साहब! स्कूल ही नहीं, सरकारी कार्यालयों में भी साड़ी खरीदी जाती है!

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कलेक्टर साहब! स्कूल ही नहीं, सरकारी कार्यालयों में भी साड़ी खरीदी जाती है!

 डॉ. स्वाति तिवारी की ख़ास रिपोर्ट 

Bhopal : स्कूल आने वाली महिला टीचर सिर्फ बच्चों को पढ़ाने नहीं आती, बल्कि वे साड़ियां खरीदने और स्वेटर बुनने भी स्कूल आती हैं। यह सिर्फ कयास नहीं सच्चाई है जो भोपाल कलेक्टर आशीष सिंह ने अपनी आंखों से सरकारी स्कूल का निरीक्षण के दौरान देखी। यह घटना बुधवार की है, जब वे अचानक एक स्कूल में निरीक्षण करने पहुंचे तो यह देखकर दंग रह गए कि क्लास रूम में पढ़ाई के बजाय साड़ी की दुकान लगी है और एक टीचर साड़ी खरीद रही है।
कलेक्टर भोपाल के सूरज नगर, रातीबड़ के स्कूल पहुंचे थे। यहां देखा, तो एक साड़ी वाला बैठा था। महिला टीचर साड़ियां पसंद कर रही थीं। कलेक्टर को आया देखकर महिला टीचर सन्न रह गईं।
कलेक्टर ने अधिकांश स्कूलों में बच्चों की संख्या भी कम पाई। कैम्पस में इंतजाम भी ठीक नहीं थे। कलेक्टर ने नाराजगी दिखाते हुए दो कर्मचारियों को सस्पेंड कर दिया। निरीक्षण के बाद कलेक्टर ने डीईओ को तीन प्राचार्य और दो शिक्षकों को नोटिस जारी करने के निर्देश दिए। उनकी वेतनवृद्धि रोकने को भी कहा।

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कलेक्टर साहब ये तो भोपाल के एक स्कूल का नज़ारा है लेकिन इसके आगे बहुत कुछ इससे मिलता जुलता है राजधानी के कई सरकारी कार्यालयों में। भोपाल के वे दफ्तर जो बड़े बड़े भवन और केम्पस में लगते हैं .यहाँ केवल साडीवाले ही नहीं
गहनेवाले ,काबुलीवाले ,पार्लर वाली ,कश्मीरी सूट और शाल वाले.किराने की मेटाडोर लेकर आनेवाले और मसालेवाले तक फिक्स दिनों में आते है ,फिक्स मौसमो में आते है ,यहाँ के कर्मचारी उनके मोबाइल नंबर भी रखते है .किश्त पर ज्वेलरी तक दफ्तर में बैठ कर खरीदी जाती देखी गयी हैं .
सर्दियाँ आने दीजिये। गर्म वूलन सूट ,कश्मीरी शाल,स्वेटर डिमांड पर भी देने आते है।ये सब अधिकांश महिला कर्मचारी ही नहीं सुनने में आता है कि कई जगह अधिकारी वर्ग की महिलाएं भी खरीदती है .

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श्यामला हिल्स के एक दफ्तर में तो यह स्थिति भी सुनी गयी है कि एक फिक्स कक्ष है जहाँ उपर फेरीवाले को ले जाया जाता है और बाकायदा मोलभाव होता है .एक साथ किश्त पर इतनी थोक खरीदी में फेरीवाले मूल्य भी डिमांड अनुसार घटाते है.एक दिन सामान दफ्तर की अलमारी में जाता है फिर पसंद किया जाता फिर अगले दिन बचा हुआ फेरीवाले को वापस हो जाता है। आजकल महिलाएं स्वेटर नहीं बुनती। तिब्बती ,नेपाली स्वेटर की परमानेंट दुकाने है,परमानेंट ग्राहक भी है .एक खुबसूरत मार्केट तो सचिवालय और संचालनालय भवनों के पास ही लगता है ,जहाँ आते जाते सुबह या शाम को खरीदी करने में तो कोई हर्ज नहीं है। पर, वहां दोपहर में खरीदी की भीड़ ज्यादा देखी गयी थी ,तर्क यह कि शाम को एक तो सामान छंटनी हो जाता है ,दूसरा शाम को घर समय पर भी पंहुचना होता है .और वहां का डोसा -इडली भी बहुत फेमस है.सुनने में तो यह भी आता रहा है कि कुछ सरकारी टेबलों पर फाइलों के स्थान पर मटर छिलाई ,मैथी तुड़ाई तक हो जाती है, और सूट खरीदने के बाद वहीँ से वहीँ के वाहन से समूह न्यू मार्केट के टेलर बाजार तक सब काम निपटा लिए जाते है.

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महिलायें बेचारी भागते दौड़ते स्कूल और दफ्तर आती है। घर के काम भी तो इसी के साथ निपटाने होते है.अब आंवले का मुरब्बा हो या तिल्ली के लड्डू यहीं से ऑर्डर दिए जाते है और यहीं डिलेवरी भी ली जाती है .इतना ही नहीं दिवाली की सम्पूर्ण तैयारी यहीं से हो जाती है .ऑर्डर लेने के लिए व्यक्ति मिलने आता है ,सब फोन पर बताते जाते है ,एक किलो चिवडा ,एक किलो चकली ,गुजिया सब दफ्तर से मैनेज हो जाता है ,सोफे कवर और परदे तक के विक्रेता इन दफ्तरों में अपना बिना टेक्स का बिजनेस चलाते देखे जा सकते हैं।
ये कथा खरीदी यही समाप्त नहीं होती। आगे कथा सुनी है कि भोपाल के कुछ दफ्तरों में तो महिला लॉबी इतनी स्ट्रांग है कि एक्शन लेने वाले अधिकारी के खिलाफ अघोषित धरने और खिलाफत के हथियार निकाल लिए जाते है। यह लाबी संगठन में विश्वास करती है और इतनी मजबूत रही है कि मजाल है कि कोई बड़े अधिकारी तक खबर पंहुचा दे .उस दफ्तर में सामान्य रूप से इसके लिए लेखा और स्थापना शाखा का बड़ा हाल उपयोग किया जाता है .
एक दफ्तर में सभी महिलाये दफ्तर आने के बाद अपनी अपनी टेबल पर अपने बेग, पानी की बोतल रख कर पंद्रह मिनिट बाद इस ऊपर वाले कक्ष में ब्रेकफास्ट के लिए जाती हैं जो सामूहिक होता है .जिसमें बाकायदा पपीते जैसे फल को काटा जाता है। अलग अलग इलाके से आने वाली समूह सदस्य कचोरी ,समोसे ,बैरागढ़ के फेमस दाल पकवान तक लेकर आती है,वो सब इन्जाय करती है। इसके साथ आसपास का वह छोटा सा साँची सेंटर या चायवाला मौसम अनुसार चाय ,लस्सी .शिकंजी ,मठ्ठे के पैकेट सामूहिक दे जाता है जिसका आनंद लिया जाता है .संगठन कंट्रीबुशन में विश्वास करता है पर कभी कभी जन्म दिन ,एनिवर्सरी , सेलिब्रेशन भी होते है .इन सब में घरेलु सुख दुःख भी बाँट लिये जाते है .तब तक टेबल पर फाईलें भी आने लगती हैं ,ये सब होते होते कभी कभी बारह भी बज जाते है .टेबल पर वापसी में अब आनंद के मूढ़ में दखल उस वक्त पड़ता है जब कोई सनकी अधिकारी पूछ ले कि आपने फाईल क्यों नहीं देखी .तब फाईल में भी निपटने की गुंजाइशें होती है।उसके साथ ही फाईल वापस मार्गदर्शन दिए जाने की टिप के साथ भेज दी जाती है .अब आप क्या कर लोगे ?

तब तक लंच टाइम हो जाता है ,फिर सभी महिलाएं उसी हाल में होती है।अब बड़ी सरकारी दरी बिछायी जाती है। सामूहिक लंच दरवाजा बंद करके होता है। फिर आराम के लिए अलमारी से सोफे के कुशन और तकिए निकलते है।
इसी बीच किसी को अत्यंत जरुरी काम हो तो दरवाजा नॉक करने पर जिस चिढ और उपेक्षा से खुलता है,उसे कौन झेले। अतिआवश्यक होने पर एक बड़े साहब के पीए अपनी महिला मित्र को फोन पर खबर देकर अलर्ट भी कर देते है। तो सरकारी दफ्तरों में तो सब चलता है. केवल इतना ही नहीं कुछ दफ्तर तो और आगे है वहां यह संगठन एक बीसी भी चलाता है .महीने के पहले सोमवार को और आखरी सोमवार को सभी महिलायें घर से पार्टी के अनुरूप सुन्दर सुन्दर ड्रेस ,साडी पहनकर आती है ,फिर 12 बजे के आसपास PA साहब सरकारी वाहन का इंतजाम भी कर देते है। सब किसी मर्जी के रेस्टोरेंट में जाती है। बीसी भी खुलती है और कभी गुजराती थाली ,कभी साउथ इन्डियन का जायका भी बदल लेती है। उनमें अधिकाँश दबी कुचली बच्चे पालने वाली महिलायें नहीं,वे महंगे फोन .उपयोगी मित्र ,और अपना पैसा अपने पर भी खर्च करती आत्मनिर्भर महिआयें भी है .पति थोड़े ही हर सप्ताह रेस्टोरेंट ले जायेंगे ,तो वे इस सरकारी समय , सरकारी वाहन और बिना काम के भी सब इंजॉय करती हैं।

भोपाल कलेक्टर की इस पहल का स्वागत होगा ,परिणाम भी  अच्छे ही होंगे यह विश्वास है ,लेकिन यह सतत होने वाला निरीक्षण होगा यह माना जा सकता है ,एक  स्कूल नहीं  दूसरे स्कूलों  में भी यह होगा तभी सरकारी पढाई रंग लाएगी और हाँ !अगर बड़े बड़े साहब लोग अपने अपने दफ्तरों के अन्दर PA से रिपोर्ट लेने के बजाय स्वयम ओचक निरीक्षण करें.एक बार अनायास अपने कक्ष केबिलकुल पास के कक्ष में ही झांक भर लें तो फाईलो की चाल बदल सकती है.
यह कहानी किसी एक दफ्तर की नहीं,इसे राजधानी के कई दफ्तरों में देखा और परखा जा सकता है। क्या कलेक्टर साहब इधर भी एक नज़र डालेंगे?

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