शायर सलीम तन्हा के जन्मदिन पर विशेष: “वो जानते हैं कि आज की दुनियादारी क्या है…”

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शायर सलीम तन्हा के जन्मदिन पर विशेष:  “वो जानते हैं कि आज की दुनियादारी क्या है”…

तीस साल पहले डॉ बशीर बद्र साहब की कलम से

सलीम तन्हा के शेर अपनी सच्चाई,अपने सोच की गहराई और इज़हार के तीखेपन की वजह से ग़ज़ल के सरमाए में इज़ाफा बनकर ज़िन्दा रहेंगे। यह कोई मामूली कारनामा नहीं है। पाकिस्तान के मशहूर शायर महबूब खिज़ाँ ने हिन्दौस्तान, पाकिस्तान, मिडीलिस्ट,इंग्लैंड और अमेरिका के लाखों शायरों की ग़ज़ल की बढ़ती भीड़ पर ये शेर लिखा है।

जिसको देखो उसे जुकामे ग़जल।
इतने दीवान एक मिसरा नहीं।।

मैं आपको सलीम तन्हा के अभी बहुत से शेर सुनाऊँगा, जिसमें क्या कहा गया है और कैसे कहा गया है कि सुन्दरता होगी।लेकिन, पहले एक दो शेर ऐसे सुन लीजिए,जिनमें मुझ जैसे हज़ारों सफे गध लिखने वाला भी उन पर कोई गध लिखकर ज़्यादती नहीं करना चाहता। बस, यह बिनती है कि आप इन शेरों को खुद पढ़ें, सोचें खुद महसूस करें तो ऐसे दोस्त आपके दोस्त बनकर मुद्दतों आपके साथ रहेंगे।

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शेर देखिए-
बर्फ की मानिंद गलना, अब उसे आने लगा।
लम्हा- लम्हा देख लेना, जल ही जल हो जाएगा।।
बेरंग,गोरे- काले, मुफलिस, भिखारी बच्चे।
सपनों की सरज़मीं का अलबम अजीब सा है।।

वो एक आम और औसत दर्जे की ज़िन्दगी जीने वाले और बहुत खूबसूरत सोचने वाले और इंसान पर ज़ुल्मों की ज़्यादती देखकर चींख उठने वाले ग़ज़ल के शायर हैं। इनका यह शेर आपबीती है और जगबीती भी।

सोता हूँ आँसू बहते हैं, उठता हूँ आँसू गिरते हैं।
हमको फिर क्यूँ पड़े ज़रुरत अपने मुँह को धोने की।।

उनका ख़याल है कि इंसान देर तक अब अमीरी और गरीबी के तबकों में तक्सीम नहीं किया जा सकता और एक दिन यह दुनिया ज़रूर बदलेगी।

है ये कैसा निज़ाम बोलेंगे।
जग उठे हैं अवाम बोलेंगे।।

वो जानते हैं कि आज की सारी दुनियादारी क्या है,राजनीति हमारे साथ क्या सुलूक कर रही है। फ़सादात कैसे होते हैं,और अमीर के सामने ग़रीब कैसे जीता है। ये दुनिया मुहब्बत के रिश्तों को भूलती जा रही है और इन बड़ी बड़ी ऊँची बिल्डिंगों, और दौड़ती- भागती सड़कों पर इंसान तन्हा खड़ा है।
तन्हा हैरतज़दा- मसलन-

कोई आकर सुलझा जाए, अपनी उल्झन राम-रहीम।
बने हुए हैं इक- दूजे के हम क्यूँ दुश्मन राम-रहीम।।
गुमशुदा फिर आदमियत हो गई।
मित्र,पत्थर दिल सियासत हो गई।।

वो एक मुहब्बत की ज़िन्दगी जीना चाहते हैं। वो ऐसा घर- आंगन चाहते हैं,जहाँ बच्चे फूल जैसे हों,और हम उनके खेलने के लिए दो-चार खिलौने ला सकें।

नए खिलौने लाए अभी हम, टूट गए तो क्या होगा।
नन्हे- नन्हे प्यारे बच्चे रूठ गए तो क्या होगा।

उनके ऐसे बहुत से शेर दिए जा सकते हैं जिनमें आदमी की एक कभी न खत्म होने वाली दिली उलझन है।मसलन-

नफ़रत,ख़ौफ़,मुहब्बत, लालच, भूक,गरीबी, मजबूरी।
तन्हा इस छोटे से दिल में,जाने क्या-क्या होता है।

मुझे इस बात की भी ख़ुशी है कि,वो कई शब्दों को उर्दू के वज़्न पर न बाँध कर हिन्दी की बोलचाल की ज़बान में बांधते हैं, इससे दोनों भाषाओं ( हिन्दी और उर्दू) का विस्तार होता है।

डॉ बशीर बद्र

शायर सलीम तन्हा के बारे में

संक्षिप्त परिचय

सलीम तन्हा 1982 साहित्य और पत्रकारिता में समानरूप से सक्रिय हैं. इस दौरान हिन्दी हेराल्ड, दैनिक सातवीं दुनिया, दैनिक भास्कर, दैनिक नव भारत, दैनिक जागरण, दैनिक स्वदेश, दैनिक राज एक्सप्रेस के अलावा कई समाचार पत्रों के सम्पादकीय विभाग में कार्य कर चुके हैं. अबतक सात साहित्यिक पुस्तकें आ चुकी हैं. आप राज्य स्तरीय अधिमान्य ( स्वतंत्र ) पत्रकार हैं.

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