विश्व में भारत की सफलताओं पर बुरी नजर रखने वालों के दामन पर कालिख

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विश्व में भारत की सफलताओं पर बुरी नजर रखने वालों के दामन पर कालिख

विश्व में  शांति , सामाजिक , आर्थिक प्रगति , सामरिक क्षमता  और पर्यावरण संरक्षण के लिए भारत की भूमिका महत्वपूर्ण होती जा रही है | ताजा प्रमाण प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को  फ्रांस और अमेरिका यात्रा  के दौरान हुए भव्य स्वागत सत्कार के साथ हुए  सामरिक और आर्थिक क्षेत्रों के समझौतों से मिलता है |  चीन और पाकिस्तान को भारत के बढ़ते महत्व से  बैचेनी अवश्य सकती  है | लेकिन अमेरिका और यूरोप में भी भारत विरोधी  कुछ नेताओं और संगठनों द्वारा दुष्प्रचार का प्रयास होता है | पहले जहाँ अमेरिका के राष्ट्रपति और संसद में भारत और मोदी की प्रशंसा और तालियों की गूंज हो रही थी , तब भारत विरोधी लाबी के कुछ नेताओं ने मानव अधिकारों के नाम पर आलोचना की कोशिश की | फिर अब प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को फ्रांस में सर्वोच्च सम्मान तथा ब्रेस्टिल परेड के मुख्य अतिथि बनाया गया और सामरिक समझौता हुआ , तब भारत विरोधी लाबी के कुछ नेताओं ने तथ्यों को जाने समझे बिना  यूरोपीय संसद में मणिपुर हिंसा से जुड़ा एक प्रस्ताव पास  करवा दिया  ।

यूरोपीय संसद में  मानव अधिकारों के नाम पर रखे गए इस प्रस्ताव में आरोप लगाया गया कि  मणिपुर में अल्पसंख्यक समुदायों के प्रति असहिष्णुता के चलते ताज़ा हिंसा के हालात पैदा हुए हैं |  वास्तविक तथ्य जाने समझे बिना इस प्रस्ताव में चिंता ज़ाहिर की गई कि राजनीति से प्रेरित विभाजनकारी नीतियों से इस इलाक़े में हिंदू बहुसंख्यकवाद को बढ़ावा दिया जा रहा है |  अल्पसंख्यक समुदायों के प्रति असहिष्णुता के चलते मणिपुर में हिंसा के हालात पैदा हुए हैं | भारत ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई है। विदेश मंत्रालय की ओर से कहा गया है कि यह भारत के आंतरिक मामलों में दखल है और इसे कतई बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। वास्तविकता भी यह है कि मणिपुर में दो आदिवासी समुदायों में एक अदालती निर्णय से हुई नाराजगी के कारण हिंसा की घटनाएँ हुई है | वैसे भी यूरोपीय संसद को किसी भी अन्य देश के आंतरिक मामलों पर बोलने का अधिकार ही नहीं है |

भारत के विरुद्ध जहर उगलने वाले यूरोपीय नेताओं को  फ्रांस में हाल में हुई भयावह हिंसा , नस्ली अत्याचार और यूरोपीय संसद के कुछ सांसदों द्वारा लाखों यूरो / डालर लेकर संसद में लाबी के तहत बोलने व्यवहार करने के आरोपों में हुई गिरफ्तारी पर अपने दामन में लगी कालिख पर ध्यान देना चाहिए | अमेरिका , ब्रिटेन की तरह यूरोपीय संसद के नेताओं को मोटी रकम फीस देकर लॉबिस्ट बनने के तरीकों को दुनिया जानती है | चीन , पाकिस्तान ही नहीं कई देश यूरोप के मंच पर अपने राजनीतिक स्वार्थों के लिए ऐसे सांसदों का उपयोग करते हैं | पिछले साल के अंत में एक सांसद पर करीब 15 लाख यूरो लेकर क़तर और मोरक्को के इशारों और स्वार्थों को पूरा करने के प्रमाण सामने आए | पांच लोगों की गिरफ्तारी हुई और सांसद का निलंबन हुआ | इसलिए कोई आश्चर्य की बात नहीं कि मणिपुर या भारत में मानव अधिकारों की बात उठाने वाले सांसद भारत विरोधी लाबी से फंड लेकर सक्रिय रहे हैं |

 भारत तो यूरोपीय देशों और संगठन का सम्मान करता है और 1962  से उसे सहयोग करता रहा है | भारत ने सबसे पहले इस संगठन को मान्यता दी थी | 27 सदस्य देशों का यूरोपीय संघ अपने भारी आर्थिक विकास के अनुरूप वैश्विक स्तर पर समुचित राजनीतिक भूमिका नहीं निभा पा रहा था, परन्तु अब ब्रिटेन के यूरोपियन संघ से अलग हो जाने के बाद संघ ने विश्व के राजनयिक क्षेत्रों  में अपनी हलचल कुछ बढ़ाई है और इसका इरादा भविष्य में और सक्रिय भूमिका निभाने की है। वैश्विक मामलों में यूरोपीय संघ कभी प्रभावशाली आवाज नहीं बन सका, इसलिए भारतीय सामरिक हलकों में यूरोपीय संघ के साथ रिश्तों को उतनी अहमियत नहीं दी गई। यूरोपीय संघ भी भारत के प्रति अब तक इसलिए उदासीन रहा कि भारत ने मुक्त व्यापार संधि और निवेश संरक्षण संधि को हरी झंडी नहीं दी थी, अब भारत उसे सहयोग देने लगा है |

यूरोपीय संघ एक आर्थिक और राजनीतिक ब्लॉक के रूप में काम करता है। इनमें से 19 देश यूरो को अपनी आधिकारिक मुद्रा के रूप में उपयोग करते हैं जबकि अन्य 9 यूरोपीय संघ के सदस्य (बुल्गारिया, क्रोएशिया, चेक गणराज्य, डेनमार्क, हंगरी, पोलैंड, रोमानिया, स्वीडन और ब्रिटेन) यूरो का उपयोग नहीं करते हैं। यूरोपीय आयोग  यूरोपीय संघ का एक कार्यकारी निकाय है। यह विधायी प्रक्रियाओं के प्रति उत्तरदायी  है। यह विधानों को प्रस्तावित करने, निर्णयों को लागू करने, यूरोपीय संघ की संधियों को बरकरार रखने और यूरोपीय संघ के दिन-प्रतिदिन के कार्यों के प्रबंधन के लिये ज़िम्मेदार है।  आयोग 27 सदस्य देशों के साथ एक कैबिनेट सरकार के रूप में कार्य करता है। प्रति सदस्य देश से एक सदस्य आयोग में शामिल होता है। इन सदस्यों का प्रस्ताव सदस्य देशों द्वारा ही दिया जाता है जिसे यूरोपीय संसद द्वारा अंतिम स्वीकृति दी जाती है।  27 सदस्य देशों में से एक को यूरोपीय परिषद द्वारा अध्यक्ष पद हेतु प्रस्तावित और यूरोपीय संसद द्वारा निर्वाचित किया जाता है।  संघ के विदेशी मामलों और सुरक्षा नीति के लिये उच्च प्रतिनिधि की नियुक्ति यूरोपीय परिषद द्वारा मतदान द्वारा की जाती है और इस निर्णय के लिये यूरोपीय परिषद के अध्यक्ष की सहमति आवश्यक होती है। उच्च प्रतिनिधि यूरोपीय संघ के विदेशी मामलों, सुरक्षा एवं रक्षा नीतियों के क्रियान्वयन के लिये ज़िम्मेदार होता है।

 भारत को ज्ञान देने वाली संसद का हाल तो यह है कि अगले वर्ष अध्यक्ष पद के लिए हंगरी की बारी आने पर ही कुछ देश दादागिरी करके अभी से विरोध कर रहे हैं | संगठन में बारी बारी से हर देश का अध्यक्ष होता है | जैसे जी -20 समूह के संगठन में होता है | लेकिन रुस यूक्रेन के मुद्दे को लेकर हंगरी को अकारण निशाना बनाया जा रहा है | इस तरह की खींचतानी वाले संगठनों को भारत की तरफ उंगली उठाने का हक़ कतई नहीं है | उन्हें आर्थिक संबंधों और हितों की चिंता करना चाहिए | भारत सबसे बड़ा आर्थिक व्यापार का साथी है | यूरोप की करीब छह हजार कंपनियां भारत में काम कर रही हैं | चीन से बाहर निकल रही पश्चिमी देशों की कंपनियां भारत में अपना धंधा करना चाहती  हैं | इसलिए यूरोपीय नेताओं को इन संबंधों को ध्यान में रखकर भारत पर कोई टिप्पणी करनी चाहिए |