हर अनाम शहीद के नाम
उसने कहा था !
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वापस लौट कर आऊंगा उसने कहा था !
तुमको अपना बनाऊंगा उसने कहा था !
बिछोह वनवास का समय पूरा हो चला
तुमको धीरे से जगाऊंगा उसने कहा था !
अनगिनत एहसान सिर पर चढ़ चुके हैं
माटी को शीश झुकाऊंगा उसने कहा था !
ऊंचे पीपल की छांव तले सावन के झूले
बाग में झूला झूलाऊंगा उसने कहा था!
स्मृतियों के अनकहे खजाने खुलने लगेंगे
सारी बातें याद दिलाऊंगा उसने कहा था !
किसे मालूम था प्रतिज्ञा पूर्ण जरूर करेंगे
सरहद पर शीश उढा़ऊंगा उसने कहा था !
इतिहास के पन्नों में अमर होकर चल दिए
तुमको गौरव दिलाऊंगा उसने कहा था !
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# रमेश चंद्र शर्मा
इंदौर
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